For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

February 2016 Blog Posts (154)

पिता

वो छुपाते रहे अपना दर्द

अपनी परेशानियाँ

यहाँ तक कि

अपनी बीमारी भी….

 

वो सोखते रहे परिवार का दर्द

कभी रिसने नहीं दिया

वो सुनते रहे हमारी शिकायतें

अपनी सफाई दिये बिना ….

 

वो समेटते रहे

बिखरे हुये पन्ने

हम सबकी ज़िंदगी के …..

 

हम सब बढ़ते रहे

उनका एहसान माने बिना

उन पर एहसान जताते हुये

वो चुपचाप जीते रहे

क्योंकि वो पेड़…

Continue

Added by नादिर ख़ान on February 3, 2016 at 6:30pm — 12 Comments

बात आई गयी [लघु कथा ] प्रदीप कुमार पांडे

अपने बंगले के बगीचे की दीवार के पास जमा भीड़ देखकर उसने गाड़ी रोक दी I

" क्या हुआ "? बाहर निकल उसने पूछा I

"कोई भिखारी मर गया "I

" कैसे ?"

" कैसे क्या साहब ,ठण्ड से अकड़ कर I पिछले कुछ दिनों से  यहीं पड़ा रहता था दीवार के पास I"

गाड़ी  में  बैठते उसे लगा ,उसका सारा शरीर ठण्ड से जमा जा रहा है I चार दिन पहले पत्नी ने कहा था कि पुराने गर्म कपडे कम्बल  काफी जमा हो गए हैं , कहीं दान करने चलना है I और फिर बात आई गयी हो गयी थी I

" अरे, अब क्या चद्दर डाल रहे हो…

Continue

Added by Pradeep kumar pandey on February 3, 2016 at 6:18pm — 7 Comments

ढोर( लघुकथा)राहिला

सांझ ढले एक गडरिया अपनी भेड़े चरा कर लौट रहा था।रास्ते में एक बाजार से गुजर हुआ।वहां एक दुकान मे लगे काले शीशे में अपना अक्स देख,सबसे आगे चल रही भेड़ को दुकान के अंदर दूसरी भेड़ होने का भ्रम क्या हुआ,वो तो दुकान में घुसी ही,साथ उसके भेड़चाल से सारी की सारी भेड़े भी जा घुसी । देखते ही देखते अंदर धमाचौकड़ी मच गई । काफी जतन के बाद जैसे-तैसे उन्हें बाहर निकाला गया ।लेकिन इस घटना के चलते दुकानदार का काफी नुकसान हुआ और नौबत झगड़े तक पहुँच गई । लेकिन कुछ सियाने लोगों के हस्तक्षेप से मामला तूल नहीं… Continue

Added by Rahila on February 3, 2016 at 6:05pm — 29 Comments

शनि (लघुकथा)

विवाद समाप्त होते न देख,मामले को कोर्ट के सुपुर्द कर दिया।शनि को भी पार्टी बनाया गया,बकायदा समन भेजा गया।निर्धारित तारीख पर कोर्ट में उपस्थिति हेतु आवाज लगाई।सभी पार्टियां मुस्कुरा रही थी,हूंह अब शनि आयेंगे गवाही देने।तत्क्षण विटनेस बाक्स में भुजंग काला सुगठित शरीर,गदा लिए,दिव्य प्रकाश के साथ उपस्थित हुए।विस्मय से चकित न्यायाधीश ने शपथ की कार्रवाई कराई ।

"सत्य बोलूंगा,सत्य के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा,जो भ्रमित है ,उन्हें भी सत्य पर चलना सिखाता हूँ।"

" तो प्रवेश पर रोक क्यों…

Continue

Added by Pawan Jain on February 3, 2016 at 8:47am — 15 Comments

उपेक्षित......

उपेक्षित....

दसों दिशाओं में डंका बजाता

चक्रवर्ती सम्राट......दिन!

यशस्वी-प्रकाशवान

निरंतर गतिमान

नित्य महासमर के उपरांत शिथिल,

क्लांत वश पिघल जाता

रक्त का कण-कण

संगठित करता लाल सागर

विचलित होती आत्मा

अश्रु आश्चर्यचकित...!

कपोलों पर ठिठके...

हवाएं अट्टहास करती

मचलती ज्वार-भाटा आदत से…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2016 at 7:12am — 9 Comments

भर कर जेबें रोज चढ़े है - ( ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर "

2222    2222     2222    222



सुनते सुनते  गीत प्रेम का क्या सूझी पुरवाई को

कोयल आँसू भर भर देखे आग लगी अमराई को /1



बात कहूँ तो बन जाएगी जग की यार हँसाई को

जैसे तैसे झेल रहा  हूँ  जालिम की रूसवाई को /2



दिन तो बीते आस में यारो शायद चलती राह मिले

किन्तु पुराने खत पढ़  काटा  रातों की तनहाई को /3



वो साहिल की रेत देख कर चाहे यूँ ही लौट गया

ख्वाबों में  देखेगा  लेकिन  दरिया की गहराई को /4



भर कर जेबें  रोज चढ़े है मस्ती  को सैलानी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:05am — 16 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
यशोधरा.......अतुकांत // डॉ० प्राची

सुधि-बुधि बिसराई

व्याकुल पनीली आँखें,

अधखुले केश, बेसुध आँचल

अस्त-व्यस्त आभूषण...

कराहती सिसकती चीत्कारती

पल-पल जमती जाती करुण वाणी से

कहाँ-कहाँ नहीं पुकारा-

पर,

लौट-लौट आती थी

हर पुकार की कर्णपटों को बेधती

हृदय विदारक प्रतिध्वनि...

लिख चुकी थी नियति

यशोधरा के भाग्य में

अंतहीन  निष्ठुर विरह...

कितनी प्रबल रही होगी

सत्यान्वेषण को आतुर

अंतरात्मा की वो पुकार,

कि नहीं थम…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 2, 2016 at 11:30pm — 4 Comments

ख़िज़ाओं का नहीं होता दरख़्तों पर असर कोई (ग़ज़ल)

1222 1222 1222 1222



गया है सींचकर जो बाग़-ए-दिल को, इक नज़र कोई

ख़िज़ाओं का नहीं होता दरख़्तों पर असर कोई



दिलों के दरमिया इक़रार कोई हो गया था,पर

न थी उनको ख़बर कोई, नहीं मुझको ख़बर कोई



मुक़द्दर हर किसी पे मेह्रबां होता नहीं यारो

कहीं क़दमों में है मंज़िल, भटकता दर-ब-दर कोई



भरोसा है हमें चारागरी पर हद से भी ज़्यादा

मरीज़-ए-इश्क़ पालेगा न मर्ज़ अब उम्र-भर कोई



सियासत खून पीने की बड़ी शौक़ीन लगती है

छुड़ा पाता ये चस्का खून का ऐ काश अगर… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 2, 2016 at 8:30pm — 23 Comments

वेदना और तृप्ति (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सही कहा जाता है कि दिन सभी के बदलते हैं।"

"कहाँ से कहाँ-कहाँ पहुँच गए थे! क्या से क्या हो गए थे हम!"

"आख़िर अब साथ साथ यहाँ पहुँच ही गए!"

"कितना सुकून मिलता है यहाँ आकर, सारी हसरतें पूरी हो जाती हैं, है न! "

'रिसेप्शन (प्रीति-भोज)' के शानदार काउन्टरों के चमकते डिशों से वेस्टबिन तक पहुँची जूठनें अब भूखे भिखारियों और बाल-मज़दूरों की क्षुधा शांत कर रहीं थीं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 2, 2016 at 8:17pm — 4 Comments

रुक गई बहती नदी (नवगीत)

काम सारे

ख़त्म करके

रुक गई बहती नदी

ओढ़ कर

कुहरे की चादर

देर तक सोती रही

 

सूर्य बाबा

उठ सवेरे

हाथ मुँह धो आ गये

जो दिखा उनको

उसी से

चाय माँगे जा रहे

 

धूप कमरे में घुसी

तो हड़बड़ाकर

उठ गई

 

गर्म होते

सूर्य बाबा ने

कहा कुछ धूप से

धूप तो

सब जानती थी

गुदगुदा आई उसे

 

उठ गई

झटपट नहाकर

वो रसोई में…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 2, 2016 at 3:44pm — 12 Comments

ये शबे -गम किसने दी दिल को / गजल

ये शबे-गम किसने  दिया  दिल को

किसने अपना बना लिया दिल को



मेरी नजरों में तेरे ख्वाब सनम

कह रहे हैं ये शुकरिया दिल को



इश्क तुमसे किया है शिद्दत से

और बे चैन कर लिया दिल को



पीला-पीला बसंती सा आंचल

मिस्ल-ए-गुलशन बना गया दिल को



चाँदनी दूर जा के चमके कहीं

हमने अब तो जला लिया दिल को



रूठी तकदीर आज जागी है

कौई तकदीर दे गया दिल को



छुप गया चाँद रात होने पर

उसने जब प्यार से छुआ दिल को



तंग…

Continue

Added by kanta roy on February 2, 2016 at 1:00pm — 5 Comments

कायम जड़ें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सर, आज इसको भी आतंकवादियों ने निपटा दिया!"

"देखो, शायद जान बाक़ी है इसमें!"

"सर, इसका तो पूरा धड़ उड़ा दिया हत्यारों ने!"

"लेकिन पैर हैं, जड़ें कायम हैं, आहार मिलेगा तो शायद जी उठे!"

बच्चे पुलिस-पुलिस और सी.आइ.डी. का खेल खेलते हुए पेड़ के बचे ठूंठ पर ऐसा बोल गये जैसे कि किसी धर्म और संस्कृति पर बात हुई हो!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 2, 2016 at 9:25am — 7 Comments

अनवरत संघर्ष ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

ऋग्वेद से लेकर पुराणोँ तक में देव-दानवों के युद्ध के वर्णन मिलते हैं। दानवों से त्रस्त देवता प्रायः ब्रह्मा के पास मार्ग- दर्शन , सहायता और सहयोग के लिए जाते हुए चित्रित मिलते हैं। युद्ध और युद्ध में शस्त्र की महत्ता को स्वीकार करते हुये देवता दधीच ऋषि के पास भी जाते हुए दर्शाये गए हैं। देवता विजयी भी होते थे पर न दानव समाप्त हुए न देवता अकेले रह कर सदैव के लिए अपना वर्चस्व ही स्थापित कर पाये। वास्तव में ये दोनों अच्छाई और बुराई के प्रतीक के रूप में देखें जाएँ तो स्थिति अधिक स्पष्ट होती नज़र… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2016 at 8:21am — 5 Comments

सनसनाते हुए बाण: लघुकथा :हरि प्रकाश दुबे

 

शाम का समय था और गाँव के बाजार में अचानक किसी ने मास्टर जी की साईकिल को पीछे से पकड़ कर रोक लिया और बोला, “अरे पहचानिए–पहचानिए ।’’

 

“अच्छा रुकिये जरा नजदीक से देखने दीजिये -मास्टर जी ने अपना चश्मा लगाया और बोले -अरे रामजी मिश्रा, तुम! कब आये दिल्ली से? और बताओ, कर क्या रहे हो आजकल ?”

 

“रिक्शा ठेल रहा हूँ साले तुम्हारी कृपा से, साला जिंदगी नरक हो गयी है दिल्ली की सड़कों पर, जिसको देखो वही १-२ रुपयों के लिए लतिया कर चल देता है, न ढंग की जगह है रहने को, न…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 12:52am — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service