For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

March 2018 Blog Posts (147)

होरी खेलें लखनौआ

होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला

अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला

खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी

फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी

भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके

प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2018 at 7:17pm — 5 Comments

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

1222 1222 1222 1222

तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,

हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।

तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी

यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।

मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,

इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,

झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।

नहीं कम ब्लॉग में मस्ती…

Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2018 at 11:30am — 9 Comments

सराबोर कर दे तेरे रंग से अब----होली विशेष

122 122 122 122

मुझे ढ़ाल दे अपने ही ढंग से अब
सराबोर कर खुद के ही रंग से अब

ज़रूरी है  ख़श्बू फ़िज़ाओं में बिखरे
बदन की तुम्हारे मेरे अंग से अब

न मुझसे चला जा रहा होश में है
तू मदहोश कर रूप की भंग से अब

है महफ़िल में भी मन हमारा अकेला
उमंगें इसे दे तेरे संग से अब

न जाने है कैसी जो मिटती नहीं है
मनस सींच तू प्रीत की गंग से अब

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2018 at 10:30am — 8 Comments

होली के दोह - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

होली के दोह

मन करता है साल में, फागुन हों दो चार

देख उदासी नित डरे, होली  का त्योहार।१।

चाहे जितना भी  करो, होली  में हुड़दंग

प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।

तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल

रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।

फागुन  में  गाते  फिरें, सब  रंगीले फाग

उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।

घोट-घोट के पी  रहे, शिव बूटी कह भाँग

होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अब कहाँ वो मर्द साहिब (ग़ज़ल 'राज' )

2122  2122  2122  2122

इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब 

चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब 



जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला 

पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब



जो रफू कर  दें किसी औरत के आँचल को नज़र से 

अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब



हो गये पत्थर के जैसे  फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ 

हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब 



क्या बचा है मर्म इसमें  क्या करोगे इसको…

Continue

Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments

रूठो न दिलदार कि होली आई है- होली गीत-सलीम रज़ा

रूठो न दिलदार कि होली आई है

झूम उठा संसार कि होली आई है

-

साजन हैं परदेस न भाए रंग-अबीर 

गोरी के आँखों से बहता झर-झर नीर

ख़त में साजन को ये लिखकर भेजा है 

तुम बिन नहीं क़रार कि होली आई है

-

होली के दिन बदला हर रुख़सार लगे 

रंग-बिरंगा होली का श्रंगार लगे

पिए भांग हैं मस्त फाग की टोली में 

बरसे रंग-फुहार कि होली आई है

-

होली के दिन बड़ों का आशीर्वाद रहे 

छोटो के संग होली का पल याद रहे

हर मज़हब के लोग खुशी मे खोए हैं 

रंगो का…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on March 1, 2018 at 5:51pm — 25 Comments

कविता- वो आँखें


समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर
उन दिनों आँखें
बड़ी व्यस्त रहती थी
किसी के दिल को लुभाती थी
किसी के मन को भाती थी
सारा संसार समाया था इनमें
लेकिन धीरे-धीरे
इनका यौवन फीका पड़ गया
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा
अब ये आँखें
पथराई-सी
डबडबाई-सी
लाचार-सी रहती है
बस यही पहचान रह गई है इनकी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on March 1, 2018 at 5:00pm — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
14 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
14 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service