For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2011 Blog Posts (91)

पानी चुराकर बिजली उत्पादन कर रहा सीएसपीएल

अमझर गांव में संचालित छत्तीसगढ़ स् टील एण्ड पावर लिमिटेड द्वारा पिछले 3 वर्षो से भू-जल की चोरी कर बिजली पैदा किया जा रहा है। भू-जल दोहन की शिकायत पर प्रशासनिक अधिकारियों ने प्लांट में छापामार कर कंपनी प्रबंधन को बोर से पानी चोरी करते…

Continue

Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:49am — No Comments

वसुंधरा का दोहन आखिर कब तक ?

विकास की अंधी दौड़ में हम मं गल और चन्द्रमा पर आशियाना बनाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन इस आपाधापी में पृथ्वी को भूल रहे हैं। आज पृथ्वी के बेहतरी लिए गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। एक ओर हम वातावरण में कार्बन बढ़ाने वाले स्त्रोत बढ़ाते जा रहे…

Continue

Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:45am — 1 Comment

लेह में गुम हुए परिजनों के इंतजार में पथराई आंखें

महंत गांव की वृद्धा धनकुंवर व गं गाबाई की आंखे भले ही कमजोर हो गई है, लेकिन वे दोनों हर रोज घर के बाहर घंटों बैठकर अपने परिजनों का इंतजार करती है। इनके परिजन लेह में आए जलजले के बाद… Continue

Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:33am — No Comments

कविता :-खुली किताब हूँ मैं

कविता :-खुली किताब हूँ मैं…

Continue

Added by Abhinav Arun on April 23, 2011 at 9:00am — 4 Comments

हमारे दिल के ही महमान थे

 हमारे दिल के ही महमान थे   

  कभी तुम भी हमारी जान थे 

 

 बिछड़ते…

Continue

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on April 22, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

मैं कोई मसीहा नहीं

 ------
मैं कोई मसीहा नहीं
जो चढ़ सकूं 
सलीब पर
हँसते हँसते 
एक  अदना इंसान हूँ मैं
मुन्तजिर हूँ में 
मेरे दर्द के
 मसीहा की



 

Added by rajni chhabra on April 22, 2011 at 1:00pm — 4 Comments

इस मरुस्थल को नदी की धार दो

गीली माटी हूँ, मुझे आकार दो

मेरे जीवन को कोई आधार दो



घाव दो या अश्रुओं का हार दो

जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो



फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी…

Continue

Added by Saahil on April 22, 2011 at 2:30am — 4 Comments

मेरी पहचान



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अन्वेषण स्वयं का 

जैसे 

अनंत शून्य में भटकना 

क्या सत्य है मेरा ,

या कोई मिथ्या 

अंतरद्वंद या छलावा 

मैं बुद्ध नहीं 

महावीर भी नहीं हूँ 

जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |

नहीं बैठ सकता कंदराओं में…

Continue

Added by Shashi Ranjan Mishra on April 21, 2011 at 6:39pm — 10 Comments

जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं.......

जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,

रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.

 

अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,

छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.

 

कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,

अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…

Continue

Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments

मेरे गाँव के जाड़े की रात

सब कुछ शांत है...मौन | दो छूहों पर टिकी छप्पर वाली दालान में रजाई ओढ़े हुए मैं इस सन्नाटे की आवाज़ सुनने की कोशिश करता हूँ | इस रजाई की रुई एक तरफ को खिसक गयी है; लिहाज़ा जिस तरफ रुई कम है उस तरफ से सिहरन बढ़ जाती है | हल्का सा सर बाहर निकालता हूँ तो तैरते हुए बादल दीखते हैं; कोहरा है ये जो रिस रहा है धरती की छाती पर | छूहे की खूँटी पर टंगी लालटेन अब भी जल रही है...हौले हौले | अम्मा देखेंगी तो गुस्सा होंगी; मिटटी का तेल जो नहीं मिल पाता है गाँव में....दो घंटों तक खड़ा रहा था कल, तब जाकर तीन लीटर…

Continue

Added by neeraj tripathi on April 21, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..

करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..

मेरे शब्दों को साथ कर देना..

मेरे स्वप्नों को हार कर देना..

गीत जो संग संग गाए थे..…

Continue

Added by Lata R.Ojha on April 20, 2011 at 11:00pm — 7 Comments

अनाम होता है

बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है
 
जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है
 
तफसरा ज़िन्दगी  पे देते हैं 
जब भी हाथों में जाम होता है
 
वक़्त धोबी है पूरे आलम का 
आदतन बेलगाम धोता है
 
ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है
 
मुफलिसी के तमाम…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 20, 2011 at 9:30pm — 5 Comments

ये कैसा प्यार ?????

तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए  
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,

मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ. 
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,

तुम शौके बहार बन आए जीवन में 
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......  

तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै 
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं. 
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 20, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

कश्मकश ....

 

एक दोराहे पे खड़ा है दिल मेरा ,
एक अजीब सी कश्मकश
चलती रहती है मेरे अंदर
दोस्ती और मोहब्बत की रस्सी से बने पुल पर |
 
उसकी ख़ुशी में जो मुस्कुराना चाहूँ
तो मोहब्बत रोकती है…
Continue

Added by Veerendra Jain on April 20, 2011 at 11:30am — 9 Comments

एक गीत - जय कृष्ण राय 'तुषार'

पिछले दिनों जय कृष्ण राय 'तुषार' जी ने फोन पर एक गीत सुनाया, जिसे सुनकर मन प्रसन्न हो गया 

आज उनकी सहमती लेकर वह गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा करता हूँ की, ओ.बी.ओ. परिवार को गीत पसंद आयेगा व कमेन्ट द्वारा आप तुषार जी को अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायेंगे -- आपका वीनस केसरी…

Continue

Added by वीनस केसरी on April 20, 2011 at 3:00am — 7 Comments

अब अपनी पहचान लिखूंगा

बहुत लिख चुका मरण यहाँ मैं, अब मैं अमृतपान लिखूंगा,

जाने क्या समझे थे मुझको, अब अपनी पहचान लिखूंगा ;

क्यों शोक करें, उल्लास भी जब इतने सस्ते में मिलता है,

एक देह की दुनिया है ये, फिर तू क्यों आहें भरता है,

सूरज रोज़ सुबह उगता और सांझ ढले ढल जाता है,

पर उसको जो कुछ करना वह इसी बीच कर जाता है,

संकल्पों के अडिग ह्रदय पर,सावित्री का मान लिखूंगा,

मृत्यु जहाँ आकर के लौटी, ऐसा सत्यवान लिखूंगा ;



क्या मुझसे तुम लिए कभी और क्या मुझको दे जाओगे,

पर जब भी… Continue

Added by neeraj tripathi on April 19, 2011 at 12:03pm — No Comments

गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम

गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।

गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।

भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।

शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।

रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।

अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।

जेब कतरों का पेट नहीं भरता।

मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।

लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।

बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।

अन्नाजी आपका बहुत आभार ।

अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।

दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…

Continue

Added by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment

षटपदियाँ : संजीव 'सलिल'

षटपदियाँ :

संजीव 'सलिल'

*
इनके छंद विधान में अंतर को देखें. प्रथम अमृत ध्वनि है, शेष कुण्डलिनी
*
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:30am — No Comments

एक मुक्तक: संजीव 'सलिल' *

एक मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
हार मिलीं अनगिन मैंने जयहार समझ उनको पहना.
जग-जीवन ने अपमान दिया मैंने मना उसको गहना..
प्रभु से माँगा 'जो जब देना, मुझको सिखला देना सहना-
आखिर में साँसों-आसों की चादर को सीख सकूँ तहना..

Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:25am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service