For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2012 Blog Posts (147)

मै भी लड़ना चाहती हूँ!

मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!

हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.

जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.

.

प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ बोर!

मै नए किरदार बनना चाहती हूँ.

मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.

.

सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!

धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,

गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.

.

अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!

खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,

'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.

मै…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 11:03am — 10 Comments

हक़ीकत

हक़ीकत


आज नहीं तो कल सबके ही दिन आएँगे

सुंदर दिखते चेहरे इक दिन बदसूरत हो जाएँगे
फिर न दिखेगी चमक दमक सब फीका हो जाएगा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 10:33am — 2 Comments

हमें माफ़ कर दो आफरीन.....

प्रिय आफरीन, 
हम तुम्हे पहले से कहाँ जानते थे. वो तो जब तुम्हारे अपने  पापा ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश की तब अख़बार वालो ने हमें तुम्हारे बारे में बताया...पूरे पाँच दिन तुम ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लडती रही , लेकिन अफ़सोस .....हार गयी.....हमारा तुमसे कोई रिश्ता कहाँ है, लेकिन इन पांच दिनों में, एक एक पल हम तुम्हारे लिए बेचैन रहे , और आज ...जब तुम चुपचाप जिंदगी से लड़ते लड़ते, हार कर अपनी दुनिया में लौट गयी.....बता…
Continue

Added by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 10:00am — 24 Comments

कुछ हाइकू

 
ईमानदार
बेईमानी बचाता
थक ही गया

 
इन्सान ही हैं
दिन गुजारते जो
तंग गली में

 
जिन्दा दिल हैं
काश समझ पाते
जिन्दा दिल को
 
 
 
बड़ा खतरा
बाहर वाले नहीं
अपने ही हैं

Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2012 at 10:00am — 2 Comments

कविता : सिस्टम

मच्छर आवाज़ उठाता है

‘सिस्टम’ ताली बजाकर मार देता है

और ‘मीडिया’ को दिखाता है भूखे मच्छर का खून

अपना खून कहकर

 

मच्छर बंदूक उठाते हैं

‘सिस्टम’ ‘मलेरिया’ ‘मलेरिया’ चिल्लाता है

और सारे घर में जहर फैला देता है

 

अंग बागी हो जाते हैं

‘सिस्टम’ सड़न पैदा होने का डर दिखालाता है

बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं

उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग

 

‘सिस्टम’ के पास नहीं है खून बनाने वाली…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2012 at 8:30pm — 8 Comments

किसका किसका हिसाब बाक़ी है

किसका किसका हिसाब बाक़ी है,

जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......

नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,

हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....

दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,

तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....

सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,

तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....

मेरे गुनाहों की…

Continue

Added by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 6:11pm — 15 Comments

अपना बना लेंगे

अपना बना लेंगे 


यकीं हमको नहीं होता 
कि वोह हैं बेवफ़ा यारो
चलो वोह बेवफ़ा ही सही
मुहब्बत हम सिखा देंगे
दिलों से नफरत मिटाने का
जनूं हम भी तो रखते हैं
देखना एक दिन उनको भी …
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 11, 2012 at 5:27pm — 2 Comments

महकायो इस जग को.



लम्हा-लम्हा सरक रहा है,

     जीवन तेरा- मेरा.
साँस चले तक सब कुछ समझो,
     उसके बाद अँधेरा!
सफ़र अनिश्चय-भरा हुआ है,
     ठौर नहीं है बस में.
जाने कब उठ जाये जग से,
      जीवन का ये डेरा. 
कितना भी तुम रहो संभाले,
       जीवन की  ये जेबें.
हालातों की रेज़र ले के
     बैठा वक़्त…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on April 11, 2012 at 2:30pm — 5 Comments

सोचा न था

कभी प्यार हमें भी हो सकता है  , हमने  सोचा न था

दिल हमारा भी यूँ धड़क सकता है , हमने सोचा न था
जिस एहसास से हम गुज़र रहे है वो एहसास,
जिसमे हर पल किसी को पाने की है आस 
हमे भी होगा, सोचा न था |
कोशिशें की उन्हें भुलाने की इस दिल को पत्थर बनाने की
यादों को उनकी मिटाने की 
ख्वाबों को  उनके  भुलाने की
लाखों कोशिशों के बाद भी ये  मिट न पाएंगे,
सोचा न था |
एक बात मगर फिर भी इस…
Continue

Added by Rohit Dubey "योद्धा " on April 11, 2012 at 11:00am — 5 Comments

मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

 

जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .

मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.

खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.

साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.

मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.

देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.

हर कोई देखता है तुमको ही, रब…

Continue

Added by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:42am — 11 Comments

और मैं कवि बन गया (हास्य) / शुभ्रांशु

सुबह-सुबह एक अजीब सा खयाल आया. आप कहेंगे ये सुबह-सुबह क्यों ? खयाल तो अक्सर रात में आते हैं, जोरदार आते हैं. फिर ये सुबह के वक्त कैसे आया ! यानि, कोई रतजगा था क्या कल रात जो इस खयाल को आने में सुबह हो गयी ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. वस्तुतः, मेरे हिसाब से, ये खयाल कुछ अजीब सा था, इसीलिये इसे समझते-बूझते सुबह हो गयी.

चूँकि सुबह के वक्त जो कुछ भी आता है बहुत जोर से आता है, सो, खयाल की भी हालत कुछ वही थी. एकदम से बाहर निकल आने को बेकरार ! अब सुबह-सुबह अपना खयाल कहाँ, किसपे साफ़ करुँ ? एकदम…

Continue

Added by Shubhranshu Pandey on April 10, 2012 at 10:00pm — 19 Comments

यह भी अपना देश है

(प्रस्तुत पंक्तियों को उल्लाला छंद में लिखने का प्रयास किया गया है,इसके प्रत्येक चरण में 13-13मात्रायें होती हैं।लघु-गुरू का कोई विशेष नियम नहीं होता,किन्तु 11वीं मात्रा लघु होनी चाहिए)



भूखी आंतों के लिए,

सेंसेक्स बस बवाल है।

तीसमार खां कह रहे,

मार्केट में उछाल है॥



जेब नहीं कौड़ी फुटी,

जनता सब बेहाल है।

भारत विकसित हो रहा,

वाह!बढ़िया कमाल है॥



कर्ज बोझ सिर पे लदा,

कृषक हुआ बदहाल है।

हम विकसित हो जायगें,

यह कोरा भौकाल…

Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 10, 2012 at 9:30pm — 12 Comments

फुरसत

फुरसत



शहर की  मशहूर सी उस गली के दोनों किनारों पर बने घरों में रोशनी करने के लिए बिजली  के तार एक दूसरे से उलझे हुवे एक घर से दूसरे घर में, दुसरे घर से तीसरे घर में और इसी तरह  गली के सारे घरों से जुड़े हुवे थे. बिजली के इन तारों में उलझ कर एक दिन एक बंदर की मौत हो गयी. गली में बने सभी घरों में रहने वाले लोगों को बंदर की मौत से लगने वाले पाप से छुटकारा पाने की चिंता हो गयी.  गली के सभी बाशिंदओं ने आपस में रायशुमारी करने के…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on April 10, 2012 at 8:30pm — 5 Comments

लायेगा अब कौन सुराज

आजाद था भारत पहले से कब गुलामी की  बेड़ियों में जकड़ा था 
सोच हमारी थी गलत फिर भी  न बदली  इसी बात का  रगडा था 
था सोने की चिड़िया भारत देश कहते अब भी है  इनकार नहीं 
पहले था  लूटा विदेशियों ने अब लूटते  वो जिनके घर बार यहीं 
हमेशा पूजा लुटेरों को निज स्वारथ घर भेदी बन सत्कार किया …
Continue

Added by MANISHI SINGH on April 10, 2012 at 6:27pm — 13 Comments

व्यथा - एक पेड़ की

 तनहा खड़ा एक पेड़ हूँ मैं 

मन ही मन खड़ा  छटपटाता हूँ 

अतीत की धुंद में खो जाता हूँ 

कभी था बाग़ ए बहार यहाँ 

उजड़ा गुलशन बिखरा ये चमन 

लगता अब जैसे शमशान यहाँ 

आज न वो आँगन है 

न ही वे संगी साथी …

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 1:17pm — 6 Comments

एक आश्वासन भक्त का

मुझे सुनाई दी, बोली

मुझसे मेरी आत्मा बोली

पढ़ले पहले तू वेद, पुराण

या कुरान कलमां|

मै बैठा हूँ –

गिरजाघर और मंदिरों में, 

मिल जाएँगी परछाई-

गुरुद्वारों औ मस्जिदों में: 

कण कण में, ख्वाईशो में,

इश्क की फरमाईशो मे

प्यार दिल से करों तो –

मै मिलूंगा सोहणी-महिवाल में 

सच मानो मै मिलूँगा –

हीर-राँझा…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2012 at 11:30am — 2 Comments

'दरख़्त'



ताबूत  बनाते  हैं  दरख्तों  से   

या  'दरख़्त' को  कब्र  हैं देते ..

किसी  का  तो  जनाज़ा  है …

Continue

Added by Lata R.Ojha on April 10, 2012 at 1:30am — 2 Comments

हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !

दूर क्षितिज छाये है लाली

पक्षी-पर -ना रुकता देखो कैसे उड़ता जाता !!

नीचे -सागर विस्तृत कितना पानी -पानी

माझी-नौका -तूफाँ -लड़ते फिर पतवार चलाता !!

मंजिल कितनी दूर -न जाने -पीता पानी

राही पल -पल जोश बढ़ाये डग तो भरता जाता !!

पर्वत नाले पार किये बढ़ जाती धरती

कहीं छुएगी आसमान को साहस बढ़ता जाता !!

बीज दबा है बोझ से फिर भी

टेढ़ी - मेढ़ी राह धरे दम भरते निकला आता !!

अपनी मंजिल सब पाए जब आस बंधी

हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !

एक आँख…

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 5:49pm — 4 Comments

बुलंदी

ना कर  खुदी  को  बुलंद  इतना

कि अपनो का साथ छूट  जाएँ

और खुदा  भी  ना  पूछे,

बता  तेरी  रजा  क्या  हे

गर बढ़ना हे आगे 

तो अपनों को साथ 

लेकर चल

मंजिल पर पहुच कर

कही अकेला ना रह जाये

हर ख़ुशी बेमानी हे

गर अपनों से ना बांटी जाये

Added by Sanjeev Kulshreshtha on April 9, 2012 at 11:55am — 1 Comment

तनहा सफ़र

तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का

चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर

मौसम है बादलों की बरसात हो ही…

Continue

Added by RAJEEV KUMAR JHA on April 9, 2012 at 8:30am — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service