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April 2016 Blog Posts (116)


सदस्य कार्यकारिणी
दिलों को लूटती मेरी ग़ज़ल (राज)

१२२२ १२२२ १२

जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल

मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल

 

कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ 

कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल

 

कदूरत के समंदर चार सू

किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल

 

न खिड़की है न रोशनदान है

जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल

 

सुलगते तल्खियों के अर्श पे

सितारे  गूँथती मेरी ग़ज़ल

 

लिखे हर बार लफड़े रोज के

कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल

 

अमन का रंग गर मिलता यहाँ

दिलों को लूटती मेरी…

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Added by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:16am — 26 Comments

शून्याकृति

शून्याकृति

 

अकेलापन…

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Added by vijay nikore on April 3, 2016 at 8:00pm — 12 Comments

प्रेम (पाँच छोटी कविताएँ)

(१)

 

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती

वो नफ़रत करते हैं

बेइंतेहाँ नफ़रत

 

जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है

उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता

 

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती

वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं

 

(२)

 

तुम्हारी आँखों के कब्जों ने

मेरे मन के दरवाजे को

तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है

 

इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2016 at 3:01pm — 18 Comments

लो ये खिलते गुलाब ले जाओ

बह्र:-2122-1212-22

क्या नही है जनाब ले जाओ।
लो ये खिलते गुलाब ले जाओ।।

अब नही मेरा वास्ता उससे।
याद-ए-दौर-ए-शबाब ले जाओ।।

मुझको चाहो तो छोड़ दो तन्हा।
ये न करना की ख्वाब ले जाओ।।

जो भी आगोश में तेरी गुजरे।
उन पलों का हिसाब ले जाओ।।

मेरी तक़दीर में अंधेरे हैं।
आप यह माहताब ले जाओ।

है अगर मुझको छोड़कर जाना।
जिंदगी की किताब ले जाओ।।

आमोद बिन्दौरीमैलिक /अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:35pm — 7 Comments

मय वो दौलत है जो जन्नत से यहाँ तक पहुँचे

बह्र:-2122-1122-1122-22



उसने ख़त लिख्खे रूमानी, वो कहाँ तक पहुँचे।।

मेरा दावा है रकीबों की ,जुबाँ तक पहुँचे।।



आह मत ले तु गरीबों की ,अमीराँ हो कर।

छोड़ दौलत को दुआयें ही, वहाँ तक पहुँचे।।



दौरे हाजिर में मुकाबिल है कहीं भी बेटी।

मेरी ख्वाहिस है बुलंदी के मकाँ तक पहुँचे।।



खुद खुदा ने ही खुदाई की खिलाफत करदी।

बे समय पानी ये पत्थर भी किसां तक पहुचे।।



नाम लेना भी गुनाहों में गिना क्यों तुमने।

मय वो दौलत है जो जन्नत से… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:32pm — 6 Comments

बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222



उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते

कि दादुर  कूप के यारो  कभी बाहर नहीं होते ।1



समर्थन पाक  को हासिल हमारे बीच से वरना

कभी  कश्मीर पर  इतने कड़े  तेवर नहीं होते।2



पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है

कभी  मासूम हाथो  में लिए  पत्थर  नहीं होते।3



बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में

कभी जयचंद जाफर  तब छिपे भीतर नहीं होते।4



समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता

हमेशा  इस सियासत में  भरे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments

गड़ाधन (लघुकथा )राहिला

"गुरूदेव महाराज!बड़े ही सही समय पर आगमन हुआ आपका।अब आप ही समझाओ इनको।"कहते-कहते रमा की आँखों से आँसू छलक पड़े।

"चिंता मत करो बेटी! मुझे जैसे ही रामदयाल के बीमार होने की सूचना मिली,मैं तुरंत ही आ गया।"

परिवार के धर्म गुरू ने रमा को तसल्ली दी।रमा उन्हें पति के कमरे में ले गई ।जहां बीमारी से कमजोर रामदयाल अचानक गुरूदेव को देखकर भावुक हो गया। रूंधे हुये गले से अभिनंदन कर,बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठा ।

"ये क्या हाल बना रखा है रामू?"

"अब आप से क्या छुपा महाराज!बड़े भाईयों ने गद्दारी… Continue

Added by Rahila on April 2, 2016 at 8:00pm — 15 Comments

रोटी (लघु कथा )

रोटी (लघु कथा )

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ऑफिस में लंच का वक़्त होते ही आज़ाद ने खाना खाने के बाद रोज़ की तरह बाहर  आकर एक मिट्टी के बर्तन में पानी भरके पास में बाजरे के दाने डाल दिए ,ताकि चिड़ियाँ भी अपनी भूक और प्यास बुझ सकें | सामने दो कुत्ते भी इंतज़ार में खड़े हुए थे , आज़ाद ने बची हुई रोटी के दो टुकड़े करके उनकी तरफ फेंक दिए | ....... अचानक बड़ा कुत्ता एक टुकड़ा मुंह में दबा कर दूसरे टुकड़े की तरफ बढ़ने लगा , यह देख कर छोटा कुत्ता फ़ौरन आगे बढ़ा ,...... देखते ही देखते दोनों कुत्ते आपस में…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2016 at 12:16pm — 16 Comments

गीत- भावना के वाह को अब रोक लो

भावना के वाह को अब रोक लो तुम।

कहो कुछ भी किन्तु पहले सोंच लो तुम।।

भावना के वाह...........



शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।

सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।

कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,

हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।

भावना के वाह.............



मान देकर हृदय सबका जीत तो लो।

शब्द-मधु बरसा उरों को सींच तो लो।

मान दोगे मान पावोगे सदा ही,

बोल मीठे बोल दो तो बोल लो तुम।

भावना के वाह...........



है बड़ा कोई यहाँ छोटा… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am — 10 Comments

ग़ज़ल -चाहता हूँ उसे कमल कहना ।

चाहता हूँ उसे कमल कहना
चाँदनी और गंगा जल कहना
उसकी तारीफ़ जो रहा करता
भूल ही जाउंगा ग़ज़ल कहना
मायने अब समझ नहीं आते
अब विफल को नहीं विफल कहना
दिल दुखाने में जो सफल हो जाए
आजकल उनको ही सफल कहना
मुस्कुराहट मुझे सिखाती है
आँसुओं पर कोई ग़ज़ल कहना ।


मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by सूबे सिंह सुजान on April 2, 2016 at 12:08am — 4 Comments

ग़ज़ल (क़ियामत से पहले )

ग़ज़ल (क़ियामत से पहले )

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122 --122 --122 --122

जुदा हो गए हैं वो क़ुरबत से पहले |

क़ियामत उठी है क़ियामत से पहले |

तड़प आह ग़म अश्क वह इम्तहाँ हैं

जो होंगे मुहब्बत कि जन्नत से पहले |

कहीं बाद में हो न अफ़सोस तुम को

अभी सोच लो तरके उल्फ़त से पहले |

ख़ुशी ज़िंदगी भर भला किसने पाई

कई कोहे ग़म हैं मुसर्रत से पहले |

न इतराओ करके तसव्वुर किसी का

अभी ख़्वाब…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 1, 2016 at 9:35pm — 20 Comments

नव गीत

नव गीत उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ  मैं आप हैं कि मुझे आजमाने लगे

यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से  मांजने में इसे पर जमाने लगे

गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं

यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा

टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से

तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा

ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे

नेह की भावना में प्रखर भक्ति हो

एक पूजा उदय हो उदय शक्ति हो

प्यार-व्यापार हो कामना से रहित

ज्योति सी…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2016 at 8:58pm — 13 Comments

पी लेने दो ...

पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )

२२ २२ २२ २२

इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!

एक   कतरा  है पैमाने में
खो के  हस्ती  पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!

दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!

जाने   कैसा   तूफां   है   ये 
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments

हवा

हवा का बहता झोका

तन मन को है छूता

मानवता को दर्शाता

मित्र शत्रु को हर्षाता

कोई भेद नहीं करता

बारिस में वर्षा लाता

भूमि की प्यास बुझाता

दुनिया में प्यार बांटता

प्यार में धोखा खाता

हवा बवंडर बन जाता

अपनी दिशा भटकता

समाज में तबाही लाता 

जड़ से दरख्त उखाड़ता

जग से अस्तित्व मिटाता

उसे अंबर तक ले जाता

निर्दोषों को देता सजा

वृक्षो की डाली तोड़ता

छीनता पक्षी का…

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Added by Ram Ashery on April 1, 2016 at 4:00pm — 3 Comments

छक्का मारा आज (ओ बी ओ की वर्षगाँठ पर)

छक्का मारा आज (16-11 मात्राएँ)

===========

छ वर्षों से बना हुआ है,जो सबका सरताज

ओबीओ के वेब पेज ने, छक्का मारा आज |



उत्सव हम सब मना रहे है,खिले प्रीति के रंग

काव्य सुधा रस मिले जहा पर, करे वहां सत्संग |



जाल बिछाया था बागी ने,योगराज का यत्न,

बिखेर रहे सौरभ भी खुश्बू,मना रहे सब जश्न |



काव्य गजल लघु कथा सभी में,बना दिया प्रतिमान

ज्ञान पिपासू शरण यहाँ ले, बढ़ा रहे सब ज्ञान |



भेद भाव को भूल भाल कर, करते सद्व्यवहार…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 1, 2016 at 11:30am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.

शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.

जन्मदिन फिर से आया है

नए वसंत का हार लिए

कविता, गीत, मुक्तक, ग़ज़ल के

अनुपम सब उपहार लिए.

(2)

कहीं परिचर्चा, कहीं टिप्पणी

कहीं पर मुक्त विचार मिले

यह वह उपवन है जिसमें

शिक्षा का हर फूल खिले.

(3)

मन की भावना व्यक्त करना ही

शब्दों का खेल है

फिर भी देखो विचित्र विचारों का

यहाँ कैसा मेल है.

(4)

यहाँ अग्रज हैं, हैं अनुज भी

कहीं लेखनी साज़…

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Added by sharadindu mukerji on April 1, 2016 at 2:49am — 4 Comments

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