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September 2015 Blog Posts (160)

तभी हुई है ग़ज़ल ( इस्लाह के लिये)

म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन

1212 1122 1212 112



सजल नयन से नदी उतरी तो हुई है ग़ज़ल।

जो पीर वाली फसल निखरी तो हुई है ग़ज़ल।।



न पूछो मिलती किधर हमको जी प्रेरणा ये कहाँ ।

हंसी प्रियम के अधर बिखरी तो हुई है ग़ज़ल।।



कभी कहीं जो सुवासित हवायें बहनें लगी।

जो रूपसी कहीं सव्री तो हुई है ग़ज़ल।।



कोई पथिक जो चला जीवन की इस कठिन सी डगर।।

किसी के सिर पे पड़ी गठरी तो हुई है ग़ज़ल।।



कहीं पे रिश्ता जो नाता है भंग होता कभी।

जो… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 26, 2015 at 12:00am — 14 Comments

आत्मिक प्रेमतत्व

आत्मिक प्रेमतत्व …

जलतरंग से

मन के गहन भावों को

अभिव्यक्त करना

कितना कठिन है

हम किसको प्रेम करते हैं ?

उसको !

जिसके संग हमने

पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर

सात फेरे लिए

या उसको

जिसके प्रेम में

स्वयं को आत्मसात कर हम

जीवन के समस्त क्षण

उसके नाम कर दिए

एक प्रेम

जीवन के अंत को जीवन देता है

और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है

जिस प्रेम को बार बार

शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो …

Continue

Added by Sushil Sarna on September 25, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

हो ग़म तो शख़्स वो हँसता बहुत है (ग़ज़ल)

1222  1222  122

मेरा दिल प्यार का भूखा बहुत है

ये दरिया है,मगर प्यासा बहुत है

-

मुकद्दर ने हमें मारा बहुत है

ज़माने से मिला धोखा बहुत है

-

उठाएँ हम भला हथियार कैसे

वो दुश्मन है,मगर प्यारा बहुत है

-

छुपाने का हुनर क्या खूब ढूँढा

हो ग़म तो शख़्स वो हँसता बहुत है

-

डराओ मत उसे क़ानून से तुम

कि उसके जेब में पैसा बहुत है

-

यूँ कहने को सितारे साथ हैं "जय"

मगर वो चाँद भी…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 24, 2015 at 12:32pm — 11 Comments

"आतंकी सोच"-- (लघु कथा)

"आतंकी सोच"- (लघु कथा)



"अजी सुनते हो, संगीत सोम है न जो उसको धमकी भरा ख़त मिला है .....और..."



"और क्या ? तुम तो समाचारों की सुर्खियां सुनाती भर जाओ"- सुबह सुबह बिस्तर पर पड़े हुए खन्ना साहब ने अपनी पत्नी से कहा।



"और फ़िल्म कलाकारों के घर में लाखा !!!"



"लाखा ?"



"हां 'लाखा'....होंगे किसी गुट के आतंकी !

जूही चावला, जितेन्द्र और अनिल कपूर के घर में 'लाखा' !"



"अरे ! वो 'लाखा' नहीं ' लार..वा' है 'ला..र..वा' डेंगू का लारवा ! मतलब… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2015 at 10:25am — 5 Comments

''मन महकाये जब बौंराई अमिया''

22/22/22/22/22

तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया

सागर से बारिश बारिश से नदिया

.

मीठी होती है मेहनत की रोटी

मैंने देखी है माँ दरते चकिया

.

ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा

याद आती है नीम-छांव की खटिया

.

पक्की छत में जगह उसी को न मिली

सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया

.

याद मुझे पुरनम बस तू है आती

मन महकाये जब बौंराई अमिया

.

दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?

नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 8:50am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये- ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये

अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये



निस्बतों की अहमियत जो जानते थे लोग वो

याद अपनी दे गये हमसे मुहब्बत ले गये



ताक़ पर रिश्तों को रख जज़्बात बेच आये कहीं

आज तन्हा रह गये जो सिर्फ़ दौलत ले गये



अपनी वो मस्रूफ़ियत से एक लम्हा छोड़कर

पास बैठे दो घड़ी क्या मेरी फुरसत ले गये



वो हसद का एक शो’ला मेरे दिलमें डालकर

काम अपना कर दिया मेरी वजाहत ले गये



रोककर… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:36am — 16 Comments

बेटी अभिमान है / गीत

बेटी से हैं सृष्टि सारी

बेटी से संसार है न्यारी

बेटी घर देहरी फुलवारी

बेटी से मान और गान है ..............

बेटी अभिमान है

देश का सम्मान है



शिक्षा ,पोषक में रही अधूरी

सदियों मर कर जीती आई

बहुत हुआ ये भेदभाव

बहुत हुआ अब अपमान है ...........

बेटी अभिमान है

देश का सम्मान है



धोखा धोखा है जग आशा

बेटी पर ना किया भरोसा

बेटा ही बेटा करते आये

समझा क्या बेटी शान है ...........

बेटी अभिमान है

देश का सम्मान…

Continue

Added by kanta roy on September 24, 2015 at 4:30am — 6 Comments

कविता - तो कुछ बात बने

तो कुछ बात बने

 

अंधेरों   की नहीं ,जीवन में उजाले की  कोई बात करो  तो कुछ बात बने

निकला हैं दिन अभी,सूरज की किरणों की कोई बात करो तो कुछ बात बने .

 

 क्यूँ बात  करते हों उन  पतझड़ों की,नव कोपलों की कोई बात करो तो कुछ बात बने

 न  बातें करो उदास रतजगों की ,प्यार  भरी बंसी की कोई बात करो तो कुछ बात बने

 

सूखी हुई धरा  पर बरसा हैं बरखा का जल अभी ,बरस जाए ये भरपूर तो कुछ बात बने

मेहरबां हुई  हैं तुम्हारी नजर एक मुद्द्त के बाद , ठहर…

Continue

Added by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on September 23, 2015 at 11:00pm — 1 Comment

आप से इस हृदय का अनुबंध तोड़ा ना गया

2122 2122 2122 212

प्रीत या अनुराग का अनुबंध कब तोड़ा गया।

इस हृदय का आप से सम्बन्ध कब तोड़ा गया।।



तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।

धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोड़ा गया।।



तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।

धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोडा गया।।



गीत मैं सुर हो तुम्हीं हाँ शब्द मैं सरगम तुम्हीं।।

इस पुरुष का तुझ प्रकृति से बन्ध कब तोड़ा गया।।



राजपथ पर ख़्वाब के हो हमसफ़र बस एक तुम।

तुझसे अरमानों का सब गठबन्ध कब तोड़ा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 23, 2015 at 8:00pm — 12 Comments

कब आओगे सरहद से ?

तुम और कॉफी दोनों का साथ

कब होगा मेरे साथ ?

तुम्हारे घर का बगीचा

पात-पात शांत

बर्फ की ओढनी ओढ़े

मुकुलित कालिका लजाती

सोखती स्वर्ण-आभा

चोटी पर तिरती सूर्य-किरणें 

खुशबू के गुंफन ने छुआ मुझे

लगा कि तुमने उढ़ाया हो,शॉल गुनगुना सा

आवृत्तियों ने मुझे घेरा

याद आने लगे वो दिन जब तुम

बैठे रहते थे बिल्कुल सामने मेरे

और तुम्हारी मूँगे जैसी आँखों में

छल्क पड़ती थी मैं बार-बार

और…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on September 23, 2015 at 7:30pm — 8 Comments

भाव ( लघुकथा ) // शशि बंसल

" सुनिए , परसों से श्राद्ध शुरू हो रहे हैं । पड़ोस वाली चाची जी कह रही थीं , बहू घर में सुख शांति चाहिए हो तो , सोलह दिन पितरों की खूब सेवा कर । अब मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि जो हैं ही नहीं , उनकी सेवा कैसी ?



" शरीर तो ईश्वर का भी नहीं है । फिर कौन सा तुम्हे हाथ पाँव दबाना है या दवा - दारू करनी है । परम्परा अनुसार कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाना , हाथ जोड़ना और खाना - खिलाना ,बहुत हुआ तो चार रिश्तेदार भी बुला भेजना । इस बहाने थोड़ी जय - जयकार भी हो जायेगी तुम्हारी । बस हो गया श्राद्ध ।वो तो… Continue

Added by shashi bansal goyal on September 23, 2015 at 7:13pm — 5 Comments

हो के मजबूर उसूलों से बग़ावत की है

जाने क्या सोच के उसने ये हिमाक़त की है

हो के दरिया जो समंदर से अदावत की है

खींच लायी हे तेरे दर पे ज़रुरत मुझको

हो के मजबूर उसूलों से बग़ावत की है

हमने ख़ारों पे बिछाया हे बिछोना अपना

हमने तलवारों के साये में इबादत  की है

अच्छे हमसाये की तालीम मिली हे हमको

हमने जाँ दे के पडोसी की हिफाज़त की है

आज आमाल ही पस्ती का सबब हैं वरना

हमने हर दौर में दुनिया पे हुकूमत की है

दम मेरा कूच…

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Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on September 23, 2015 at 12:00pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल :: (बह्र-ए-शिकस्ता) -- कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है -- मिथिलेश वामनकर

फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन 

1121 - 2122 - 1121 – 2122

 

कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है

मेरा दर्द तो हमेशा, दिलो-जां जिगर रहा है…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on September 23, 2015 at 10:00am — 18 Comments

क्षणिकायें - 7 --- डॉo विजय शंकर

1. फूल जानता है
कितनी है जिंदगी ,
फिर भी खिलता है ,
तो मुस्कुराता है ,
हँसता है ,
खुशियाँ बिखेरता है।

2. पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ तो
रुक पाते नहीं ..........

3. क्या फितरत है
तुम्हारी
हमें छोड़ गए और
अपना
न जाने क्या क्या
हमारे पास छोड़ गए ……

4. सादगी भी
अजीब चीज़ है
कितने रंगीन
सपने दिखा देती है ………

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2015 at 9:55am — 10 Comments

पूजेंगे उन्हें हम फिर

कब हुयी थी बात जनता से

कब आए थे तुम हमारे गाँव

कब फांकी थी तुमने गलियारे की धूल

कब तुम्हारी खादी पर जमी थी गर्द की परतें

कब दिया था आख़री भाषण यहाँ पर डूब कर पसीने में

कब किया ब्यालू यहाँ के एक हरिजन संग

और पानी था पिया अकुआगार्ड का जो साथ थे लाये

गाँव को तो याद है वह दिन, भूल जाते हो मगर तुम

देश की संसद बड़ी है, डूब जाते हो वही तुम

देश का दुर्भाग्य है वह नहीं मिल पाता कभी भी

चाह कर तुमसे बड़े बंधन है अजब…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 9:30am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - आइनों से पत्थरों के वास्ते ( गिरिराज भंडारी )

 2122        2122        212 

खुशनुमाँ से अवसरों के वास्ते

आसमाँ तो हो परों के वास्ते

 

मै तो आईना लिये फिरता हूँ अब

आइनों से पत्थरों के वास्ते

 

अब तो दीवारें गिरायें यार हम

गिर रहे हैं उन घरों के वास्ते

 

थोड़ी अकड़न भी अता करना ख़ुदा

बे सबब झुकते सरों के वास्ते

 

कुछ बहाने और हैं, ले जाइये

आदतन से कायरों के वास्ते

 

मैं हक़ीकत बाँध के लाया हूँ आज 

कुछ छिपे अंदर डरों के…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 23, 2015 at 6:49am — 15 Comments

गजल

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन



तू भले कुछ भी कहे मैं कामना करता रहूँगा

रूप रस की चाहना- आराधना करता रहूँगा।

जल रहा संसार खुद से आग अपनी ही जलाये

बाँट आया प्यार घर- घर याचना करता रहूँगा।

जो लगाते आग चलते ज्वाल उनको हो मुबारक

मैं चला हूँ मेघ बनकर साधना करता रहूँगा।

दे रही जो दर्द चपला कर सकूँ बे-दर्द उसको

हो धरा मैं सोंख लूँ यह कामना करता रहूँगा।

आदमी हो आदमी का हो गया सब भूलकर भी

आदमी के हित रहूँ मैं प्रार्थना करता…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 22, 2015 at 10:00pm — 8 Comments

इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा ) –

इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा )  –

"हे पवन देव ,कृपया मेरी  सहायता कीजिये"!आम के वॄक्ष ने कराहते हुए कहा

“क्या हुआ  बन्धु, कोई कष्ट है क्या"!

"क्या आप नहीं देख रहे, यह उदंड मानव झुंड, पत्थर मार मार कर मुझे घायल कर रहा हैं"!

"तो इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं"!

"आप अपने वेग से मुझे झकझोर कर मेरे फ़लों को नीचे गिरा दीजिये ताकि यह  संतुष्ट होकर,  पत्थर प्रहार बंद कर दें"!

"तुम बहुत भोले हो मित्र, ऐसा कुछ भी नहीं होगा,ये इंसान  हैं"!

"आपके इस…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on September 22, 2015 at 8:56pm — 13 Comments

ग़ज़ल : जब कभी तनहाइयों का

2122      2122     2122    212

जब कभी तनहाइयों का आईना मुझको मिला ।

अपने अन्दर आदमी इक दूसरा मुझको मिला ।।

 

हमसुखन वो हमनफ़स वो हमसफ़र हमजाद भी ।

जान लूँ इस चाह में कब आशना मुझको मिला ।।

 

वक्ते रुखसत हाल उसका भी यही था दोस्तों ।

अक्स मेरा चश्मे नम पर कांपता मुझको मिला ।।

 

मंज़िलों से  और बेहतर हसरते मंज़िल लगे ।

लिख सकूं तफसील जिसकी रास्ता मुझको मिला ।।

 

जो बजाते खुद हुआ इल्मो अदब का आफ़ताब…

Continue

Added by Ravi Shukla on September 22, 2015 at 3:20pm — 8 Comments

इंतज़ार (कविता)

डाकखाने का डाक बाबू 

जब अपनी साइकिल पर

चिट्ठियों का थैला लेकर

गाँव की गलियों में आता

तो घर की चौखट पर

अधखुले दरवाजे के पीछे

घूँघट की ओट से दो आँखे

डाक बाबू की राह तकती

आज तो उसके नाम कि भी

जरूर कोई डाक होगी

पुकारेगा डाक बाबू

आज उसका नाम

बलम परदेसी ने …

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Added by Rajni Gosain on September 22, 2015 at 1:30pm — 8 Comments

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