For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2011 Blog Posts (78)

एक गीत: आईने अब भी वही हैं -- संजीव 'सलिल'

एक गीत:

आईने अब भी वही हैं

-- संजीव 'सलिल'

*



आईने अब भी वही हैं

अक्स लेकिन वे नहीं...

*

शिकायत हमको ज़माने से है-

'आँखें फेर लीं.

काम था तो याद की पर

काम बिन ना टेर कीं..'

भूलते हैं हम कि मकसद

जिंदगी का हम नहीं.

मंजिलों के काफिलों में

सम्मिलित हम थे नहीं...

*

तोड़ दें गर आईने

तो भी मिलेगा क्या हमें.

खोजने की चाह में

जो हाथ में है, ना गुमें..

जो जहाँ जैसा सहेजें

व्यर्थ कुछ फेकें…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 5, 2011 at 2:12am — 1 Comment

चाहत

जिनको चाहा था, वो अनजानों की भीढ़ में खो गए

जो चाहते हें, वो अपनो  की भीढ़ में खो गए

हम तनहा थे तनहा ही रह गए

काश भीढ़ में चाहत होती

अपनो का ना सही, अनजानों का साथ तो होता

Added by Sanjeev Kulshreshtha on October 4, 2011 at 8:49pm — 1 Comment

रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले

तू ज़रा सोच कभी अपनी अदा से पहले
कहीं मर जाये न इक शख्स क़ज़ा से पहले 

इस लिए आज तलक मुझ से ख़ताएँ न हुईं 
रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले 

हो सके तो कभी देखो मेरे घर में आकर 
ऐसी बरसात जो होती है घटा से पहले 

ग़मे जानां की क़सम अश्के मोहब्बत की क़सम 
थे बहुत चैन से हम दौरे वफ़ा से पहले 

वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे सिया से पहले 

Added by siyasachdev on October 4, 2011 at 8:03pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कसौटी जिन्दगी की .. (छंद - हरिगीतिका)

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?

इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1||…



Continue

Added by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 1:30pm — 33 Comments

आती हमको लाज.

हिंदी को समर्पित दोहे.



मठाधीश सब हिंदी के,करते ऐसा काज.
हिन्दीभाषी कहलाते,आती हमको लाज.


हिंदी दिवस कहे या फिर सरकारी अवसाद.
अपने भाई-बन्दों  में,बंटता है परसाद. 


हिंदी का जिन सूबों में,होता गहन विरोध.
राजनीती सब छोड़ के,करिए इस पर शोध.


अंग्रेजी का हम कभी,करते नहीं…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on October 3, 2011 at 8:06pm — 7 Comments

लघुकथा : निपूती भली थी -- संजीव 'सलिल'

 लघुकथा 

निपूती भली थी  …

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 6:30pm — 3 Comments

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥

सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ

दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥



कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं

राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥ 



अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में 

वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥ 



प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है 

अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ 



तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥ 



दिल मंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"

आशाओं के…

Continue

Added by siyasachdev on October 2, 2011 at 4:59pm — 12 Comments

एक रचना: कम हैं... --संजीव 'सलिल'

एक रचना:

कम हैं...

--संजीव 'सलिल'

*

जितने रिश्ते बनते  कम हैं...



अनगिनती रिश्ते दुनिया में

बनते और बिगड़ते रहते.

कुछ मिल एकाकार हुए तो

कुछ अनजान अकड़ते रहते.

लेकिन सारे के सारे ही

लगे मित्रता के हामी हैं.

कुछ गुमनामी के मारे हैं,

कई प्रतिष्ठित हैं, नामी हैं.

कोई दूर से आँख तरेरे

निकट किसी की ऑंखें नम हैं

जितने रिश्ते बनते  कम हैं...



हमराही हमसाथी बनते

मैत्री का पथ अजब-अनोखा

कोई न…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 8:00am — 5 Comments

ग़ज़ल

 

 

तिनका तिनका टूटा है-

दर्द किसी छप्पर सा है-



आँसू है इक बादल जो

सारी रात बरसता है-




सारी खुशियाँ रूठ गईं


ग़म फिर से मुस्काया है-



उम्मीदों का इक जुगनू


शब भर जलता बुझता है-



मंजिल बैठी…

Continue

Added by विवेक मिश्र on October 2, 2011 at 7:30am — 16 Comments

ग़ज़ल

अदब के साथ जो कहता कहन है 

वो अपने आप में एक अंजुमन है

 

हमें धोखे दिये जिसने हमेशा

उसी के प्यार में पागल ये मन है

 

हुई है  दिल्लगी बेशक हमीं से 

कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है

 

अँधेरे के लिए शमआ जलाये

जिया की बज्म में गंगोजमन है  

 

नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब

बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है 

 

खिले हैं फूल मिट्टी है महकती 

यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है 

 

कहाँ परहेज मीठे से हमें…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 12:30am — 19 Comments

व्यंग्य - अन्ना जी, आप भी...

‘मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना’, यहां भी अन्ना, वहां भी अन्ना’, ‘अन्ना नहीं ये आंधी है, नए भारत का गांधी है’, ऐसे ही कुछ नारों से पिछले दिनों रामलीला मैदान गूंजायमान था। तेरह दिनों तक चले अनशन के बाद अन्ना, गांधी जी के अवतरण कहेे जा रहे हैं। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि दुनिया में दूसरा गांधी, कोई हो नहीं सकता। खैर, अन्ना के आंदोलन के बाद दुनिया में एक अलग लहर चली है, आजादी की दूसरी लड़ाई की।

हमारे अन्ना अब चुनाव लड़ने की नहीं, लड़वाने की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं कि ऐसे युवा जिनकी छवि बेदाग हो,… Continue

Added by rajkumar sahu on October 1, 2011 at 11:39pm — No Comments

सूखी नदी के सामने

(1)

मुकद्दर की बात.



कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल…

Continue

Added by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

तहे दिल से शुक्र गुज़ार

सबसे पहले मैं आप  सबसे माफ़ी चाहती हूँ कुछ मसरूफियत की वजह से मैं ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा  आप सबके खूबसूरत कमेंट्स  का शुक्रिया अदा नहीं कर पाई , मैं आप जैसे ज़हीन लोगो के  के बारे में क्या  लिखूं...यहाँ सब के सब इतने काबिल हैं 

 …
Continue

Added by siyasachdev on October 1, 2011 at 1:53pm — 3 Comments

शान-ए-हिन्दोस्तान श्री जय देव 'विद्रोही'जी को 'कालिदास सम्मान' रिपोर्ट: दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

शान-ए-हिन्दोस्तान श्री जय देव 'विद्रोही'जी को 'कालिदास सम्मान'

रिपोर्ट: दीपक शर्मा 'कुल्लुवी' 


6 नबम्बर 2011 को नई दिल्ली स्थित मंडी हाउस  के निकट 'त्रिवेणी कला संगम' आडोटोरियम में आयोजित एक भव्य समारोह में आथर्स गिल्ड आफ  हिमाचल प्रदेश के संस्थापक अध्यक्ष,वरिष्ठ पत्रकार,लेखक कई पुस्तकों के रचयिता  श्री जय देव 'विद्रोही'जी को अखिल भारतीय…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 1, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

हरिगीतिका



हरिगीतिका

(1)

मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है,

सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है, 

अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,

रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||



(2)

यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है,

यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार  है,

सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है, 

निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 1, 2011 at 2:31am — 15 Comments

आशिकों को इस कदर दिलदार होना चाहिए

 

 

दिल  लगाना   हमने  सुना   है , एक गुनाह  है  यहाँ  

 सारी  दुनिया  को  फिर तो  गुनाहगार  होना  चाहिए ..

 

 

सुना  है , मजा    है बहुत , महबूब  के  इन्तजार  में  …

Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on October 1, 2011 at 12:33am — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
3 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service