For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

November 2012 Blog Posts (173)

पापा मम्मी आप भी आओ

पापा मम्मी आप भी आओ



उन पुरानी गलिओं से फिर

ख्याल अपने दिल तक आये

आँगन में थे खिलते उन कलियों से

सवाल अपने दिल तक आये

दौरते आते सारे किस्से

कोई बैठकर मुझे सुनाओ

आँखे तरस रही दर्शन को

पापा मम्मी आप भी आओ





गहरी जाती उन घाटीयों से

संकराति गूंजे घूम रही हैं

चट्टानों पे रेत की बूंदे

अब भी मानो झूम रही हैं

भूलते जाते उन पन्नो से

पुरानी कुछ गजलें सुनाओ …

Continue

Added by AJAY KANT on November 3, 2012 at 12:27pm — 3 Comments

आज के दिन दिनांक 3 नवम्बर,1688 को जयपुर के संथापक सवाई जय सिंह का जन्म हुआ था, उन्हें काव्यमय श्रद्धांजलि -

 

वेध शालाओ के संथापक -
धर्म ज्योतिष व् संस्कृति के मसीहा,
राजाओ में राजा एक हुए तनहा 
राजनीतिज्ञ,कुशल प्रशासक 
जयपुर के संस्थापक
अश्वमेघ यज्ञ के अंतिम चक्रवर्ती
जाकी शोभा जगत में…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2012 at 11:23am — 2 Comments

यूं ही खामोश रहो ...

जब कभी मेरी बात चले 

ख़्वाब में भी कोई ज़िक्र चले 

मेरे हमदम मेरे हमराज़ 

यूं ही खामोश रहो 

शायद ही कभी 

ठिठुरते हुए बिस्तर पे 

कभी चांदनी बरसे 

या फिर झील के ठहरे हुए पानी में 

कभी लहरे मचले 

जब कभी आँखों के समंदर में 

कोई चाँद उतरे 

मेरे हमदम मेरे हमराज 

यूं ही खामोश रहो…

Continue

Added by Gul Sarika Thakur on November 2, 2012 at 10:05pm — 9 Comments

गीत: उत्तर, खोज रहे... --संजीव 'सलिल'

गीत:

उत्तर, खोज रहे...

संजीव 'सलिल'

*

उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।

मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।

*

कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।

लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।

नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...

*

नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।

भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।

दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...

*

एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।

संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 5:56pm — 7 Comments

किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों ..........

मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों

देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों



हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी

किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों



क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है

रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों



खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ

हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों



हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ

खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों 



कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो…

Continue

Added by Sonam Saini on November 2, 2012 at 1:55pm — 12 Comments

झर गए पारिजात (श्रद्धेय सुनील गंगोपाध्‍याय की स्‍मृति में)

मूक हो गई

रांगा माटी

नीरव नभ

अनुनाद

रम्‍य तपोवन

गुमशुम-गुमशुम

झर गए पारिजात

कासर घंटे

ढाक सोचते

ढूंढ रहे

वह नाद

भरे-भरे मन

प्राण समेटे

भींगे सारी रात

कमल-कुमुदिनी

मौन मुखर हैं

कहां भ्रमर

कहां दाद

पंकिल पथ पर

हवा पूछती

कैसे ये संघात

जाओ अपने

देश को पाती

यह पता

कहां आबाद

अपनी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on November 2, 2012 at 1:28pm — 3 Comments

विवाह : एक दृष्टि द्वैत मिटा अद्वैत वर... संजीव 'सलिल'

विवाह : एक दृष्टि

द्वैत मिटा अद्वैत वर...

संजीव 'सलिल'

*

रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।

रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।



पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।

मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।



नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।

नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।



सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।

समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।



अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 11:08am — 3 Comments

गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:

समाधित रहो ....

संजीव 'सलिल'

+

चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,

कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।

दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-

कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।



जो जताते हैं हक वे न सच जानते,

जानते भी अगर तो नहीं मानते। 

'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-

रार सच से सदा वे रहे ठानते।।



दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,

मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।

राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-

बाँटता रौशनी, दीप होता…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments

हाइकु .....

1 - 8 !
*******
अगरबत्ती 
महकता जीवन 
जब जलती .
-------
धुआं ही धुआं 
तेरी यादों का तन 
जब भी छुआ ..
--------
लगे जताने 
छलकते पैमाने 
लोग सयाने ..
-------
जाम  छलके 
हलक तर हुआ 
हुए हलके 
-------
जानवर है 
क्या बिगाड़ पाओगे !
नामवर है ..
------
कागज़ी…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2012 at 8:26pm — 10 Comments

धूप

नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप

कच्‍चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप

खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप

फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप

Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments

लघुकथा :- रंगभेद

उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !

“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 1, 2012 at 3:30pm — 10 Comments

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह '- बस इतना कहने आया था !!!

कैप्शन जोड़ें

इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है .शहीद…

Continue

Added by shikha kaushik on November 1, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

पत्थरों के शहर में

 

मेरे घर  में आँगन नहीं है,

देहरी और  दहलीज नहीं है ,

दरवाजे से सांखल गायब ,

दस्तक  देती तहजीब  नहीं है ,

मेरा घर पत्थरों  के शहर में बसता है

|                                     

मेरे घर की पास की गलियां  ,

जब तब रोतीं हैं बिन घूँघट के,

किसी के आने की उम्मीद लगाये,

रात को भी ये  जागती रहती हैं ,

मेरा घर पत्थरों  के शहर में बसता है

 

वर्तमान को पोषित करती भर्मित…

Continue

Added by Er.vir parkash panchal on November 1, 2012 at 11:30am — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service