For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

November 2015 Blog Posts (159)

छोटी सी इबादत (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (36)

भीड़-भाड़ वाली सड़क पर पड़े केले के छिलके पर हमीद का पैर पड़ने ही वाला था कि उसने खुद को संभाल लिया और तुरंत उसे उठा कर हाथ में ले लिया। शबाना शौहर से बिना कुछ कहे बुरा सा मुँह बनाकर आगे चलती रही। अब्बूजान भी चुपचाप चलते रहे। कुछ दूर चलने पर जब एक गाय दिखाई दी, तो हमीद ने उसके नज़दीक जाकर अपने हाथ से उसे वह केले का छिलका खिला दिया। बाक़ी दोनों यथावत चलते रहे गन्तव्य की ओर । कुछ और दूर चलने पर एक बड़ा सा पत्थर बीच सड़क पर दिखा जिसे फांदते हुए राहगीर निकलते जा रहे थे जिन में कुछ बच्चे व बुज़ुर्ग… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 1:19am — 5 Comments

न जग तेरा है .....

न  जग  तेरा  है .....

न  जग  तेरा  है  न  मेरा है

बस  दो  साँसों  का  डेरा  है 

है पल भर की बस भोर यहां 

पल  अगला  घोर  अँधेरा है 

न जग तेरा है ....

मैं पथ  का  कोई  शूल कहूँ 

या  जीवन  कोई  भूल कहूँ  

इक पल यहाँ पर है उत्सव  

पल  दूजा  दुख का  डेरा  है 

न जग तेरा है ....

स्वर  प्रेम नीड को ढूंढ रहे 

दृग पीर  नीर  में  मूँद रहे 

है नीरवता  हर  ओर यहां 

विष सेज पे सुप्त उजेरा है 

न जग तेरा है ....

अभिलाष हृदय की…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 24, 2015 at 9:35pm — 4 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

२२ २२ २२ २

आयत हो चौपाई हो
तुम रब की परछाई हो

सारा आलम झूम उठा
तुम तो इक शहनाई हो

मेरा गम है छूमन्तर
तुम तो यार दवाई हो

जीवन रोज दिसम्बर गर
तेरी याद रजाई हो

होश हुआ जख्मी देखो
तुम भी तो बलवाई हो

गुमनाम नशीली रुत गो
तेरे घर से आई हो


मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on November 24, 2015 at 7:37pm — 8 Comments

तलाश - लघुकथा

"लाहोल विला कुव्वत! जाने इतनी रात गए कहां आवारगी करता फिरता है ये लड़का।" अम्मीजान की कोशिश के बाद भी जफ़र के रात दूसरे पहर घर में घुसते ही अब्बूजान की आँख खुल गयी और वो बड़बड़ाने लगे।

"कुछ गलत न करे है मेरा ज़फर, अब सारा दिन किताबो में मगजमारी करने के बाद कुछ देर दोस्तों में गुजार ले तो हर्ज ही क्या है?" अम्मी ने उसकी तरफदारी की कोशिश की।

"तो वही जाहिल लोग रह गए है दोस्ती के लिए।" अब्बु ने अम्मी पर तंज भरी नज़र डालते हुए कहा।

"अब्बु अब ऐसे भी जाहिल न है वो लोग।" ज़फ़र चुप न…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 24, 2015 at 6:30pm — 5 Comments

राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

२१२२  ११२२  ११२२  २२

 

अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो

बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो

 

मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर

अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो

 

बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ

तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो

 

सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना

तुम हकीकत नज़र आज  मिलाकर देखो

 

तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ

राह में सबके…

Continue

Added by नादिर ख़ान on November 24, 2015 at 6:30pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दुख देने को आये जो हालात, सुनो-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22---22---2

 

दुख देने को आये जो हालात, सुनो

अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो

 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on November 24, 2015 at 11:25am — 22 Comments

व्यथा

29

आँखों में भय लिये

आज्ञाकारिता तय किये,

क्षुधोदर की भूले

बड़ी देर के बाद बैठ पाया था।

कंपायमान हाथों से

चलायमान श्वासों से ,

भुंजे हुए महुओं की छोटी सी

पोटली बस खोल ही पाया था।

जीवन समर्पित कर

मालिक को अपना कर

स्मृत अहसानों ने

छोटा सा उलहना दे पाया था।

ज्वार की वह बासी रोटी

गिजगिजी बहुत मोटी

महुओं सहित इस अनोखे भोजन को

कर ही न पाया था।

मालिक ने पुकारा...…

Continue

Added by Dr T R Sukul on November 23, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

बड़ा डिजटल जमाना हो गया है

बड़ा डिजटल जमाना हो गया है

1222/1222/122



बड़ा डिजटल जमाना हो गया है

कठिन इज्जत बचाना हो गया है



पला माँ बाप की छाया जो बेटा

वही बेटा बेगाना हो गया है



खुला अस्मत लुटा आई है बेटी

मुहब्बत है बहाना हो गया है



सियासी हो गयी रिश्तों की दुनियां

जटिल रिश्ता निभाना हो गया है



गरीबों का हितैशी हूँ ये जुमला

चुनावी वोट पाना हो गया है



वो क्या जो देख बाबा रो पड़े हैं

कहा की घर पुराना हो गया… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on November 23, 2015 at 2:28pm — 6 Comments

चलो आज रिश्ते बना कर निभालें

चलो आज रिश्ते निभा लें

122/122/122/122



चलो आज रिश्ते बनाकर निभालें.

खयालों को अपना नया घर बनालें.



बढ़ाओ मुलायम हथेली ये प्यारी

पिसाई हिना है इसे संग रचालें



बनोगी गुड़िया तो गुड्डा बनूगां

चलो साथ बैठो की शादी मनालेँ



लगे कुछ बुरा तो मुझें माफ़ करना

मुहब्बत है ऐसी की पागल बना ले



तेरी आँख भीगी न प्यारी लगेगी

तू नजरों में मोती ख़ुशी के सजा ले



न रश्में रिवाजे न मजहब पाबन्दी

मिटा के सभी जद दुनियाँ बसा… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on November 23, 2015 at 2:24pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हो शुरू जंगे- मुस्तहब कोई- शिज्जु शकूर

2122 1212 112/22

हो शुरू जंगे-मुस्तहब कोई

लाये इक इन्किलाब अब कोई



यूँ अदब के बदल गये मा’ने

होता है रोज़ बे-अदब कोई



आज ग़ारतगरों के कहने पर

शह्र फूँके है बे-सबब कोई



लफ़्ज़ तेरे, तेरा तवाफ़ करें

सीख-ले बोलने का ढब कोई



आग फिरका-परस्ती की ऐ दोस्त

और भड़के बुझाये जब कोई



जब उलझ जाये बात बातों में

इक सिरा ढूँढ लेना तब कोई



सूरते-हाल पूछिये न ‘शकूर’

रोज़ नाज़िल हो इक ग़ज़ब कोई



-मौलिक व… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2015 at 12:57pm — 13 Comments

जिन्दगी की ठोकरों ने मुस्कुरा कर ये कहा। " अज्ञात "

जिन्दगी में जीत का तब,                              

कुछ नहीं संशय रहा,                                 

धैर्य का जब जब सहारा,                             

हर घड़ी , हरशय रहा ।

जिन्दगी में दिन सितम के,                        

भी सभी  कट जायेंगे ।                                       

जिन्दगी की ठोकरों ने ,                          

जब मुस्कुरा कर ये कहा।                                              

रात काली भी गुजर…

Continue

Added by Ajay Kumar Sharma on November 22, 2015 at 11:52am — 3 Comments

अब ज़रा थक सा गया हूं, मैं

दुनिया देती मुझे बधाई, कि मैं कितना संभल गया

मुझे ग्लानि, आंख में पानी, कि मैं इतना बदल गया

एक समय होता था जब मैं,

न्याय की बात पर अड़ जाता था

आग धधकती थी सीने में

हर जुल्मी से भिड़ जाता था

अब रोज़ द्रौपदी होती नंगी, खून ज़रा भी नहीं खौलता

कोई सूरज को भी चांद कहे तो, चुप रहता हूं नहीं बोलता

कहते हैं सब भला हुआ कि अब चुक सा गया हूं मैं

सच तो ये है लेकिन अब, ज़रा थक सा गया हूं मैं .

थक गया हूं झूठे रिश्तों  का, बोझ…

Continue

Added by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 22, 2015 at 10:00am — 11 Comments

जो ख़ुशी से दान दे वो ग़म कभी करता नही है।

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम

जो ख़ुशी से दान दे वो ग़म कभी करता नही है।

जो किसी पे जान दे वो आह भी भरता नहीं है ।

है अगर दिल में ख़ुशी तो चैन से सोते सभी हैं,

गम समाया है कहीं तो नींद भी भरता नहीँ है ।

हार हो या जीत हो ये तो कहीं वश में नहीं है ,

दिल लगाकर छोड़ देता वो कभी डरता नहीं है।

राह में चलते हुए भी घर बसा लेते कहीं भी ,

रेत का घर जब गिरे ग़म कोई भी हरता नहीं है ।

फूल हो जब डाल पे झूमे हवा में हर ख़ुशी में ,

तोड़ कर कोई रखे जब आह…

Continue

Added by Shyam Narain Verma on November 21, 2015 at 4:30pm — 2 Comments

जीवन की पाठशाला (लघुकथा)

आगरा से लखनऊ का छ-सात घंटे का सफ़र | ट्रेन खचाखच भरी हुई थी, पर भला हो उस दलाल का,जिसने सौ रूपये ज्यादा लेकर सीट कन्फर्म करा दी थी | वरना सिविल सेवा परीक्षा देने जाना बड़ा भारी लग रहा था | दोनों ही सहेलियों ने गेट से लगी सीट पर धम्म से बैठ कब्ज़ा जमा लिया था | सामने फर्श पर सामान्य कद-काठी का शरीरधारी, किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लग रहा था | मैला-कुचैला सा कम्बल अपने शरीर के चारो तरफ लपेटे बैठा था | रह-रह सुमी उसे हिकारत…

Continue

Added by savitamishra on November 21, 2015 at 10:00am — 11 Comments

" आत्मघात " - [ लघुकथा ] _शेख़ शहज़ाद उस्मानी (35)

एक तरफ मुहब्बत, दूसरी तरफ ममता और दोनों ही तरफ़ सिर्फ उसके फर्ज़ । उलझे हुए रास्ते इस वक़्त सुधीर को बिछी हुई रेल की पटरियों की तरह लग रहे थे। वह करे भी तो क्या। उसके दिमाग़ में अपने और परायों की टिप्पणियाँ बिज़ली के प्रवाह की तरह उसे झकझोर रहीं थीं।



"माँ बीमार रहती है, बहू आ जायेगी तो एक सहारा हो जायेगा "



" ट्यूशन की कमाई से घर-गृहस्थी चलायेगा क्या ?"



"मुहब्बत तो कर ली, प्रेमिका जब बीवी बनेगी तब समझ में आयेंगे आटे-दाल के भाव और बीवी के ताव"



"अरे, उस… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 21, 2015 at 9:27am — 9 Comments

और,सारे देखने में हैं तमाशा (ग़ज़ल)

2122 2122 2122

भागता  ही जा रहा है बेतहाशा..

आदमी के हाथ लगती बस हताशा..

मुस्कराहट लब से गायब हो रही है,

पाँव फैलाए खड़ी जड़ तक निराशा..

नष्ट होती जा रही वो स्वर्ण-मूरत,

वर्षों में पुरखों ने जिसको था तराशा..

सुबह का भूला अभी लौटेगा शायद,

सूर्य की अंतिम किरण तक है ये आशा..

है न भक्तों को कफ़न तक भी मयस्सर,

देवता कुर्सी पे खाते हैं बताशा..

जान पंछी की निकलने पर तुली है,

और सारे…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on November 20, 2015 at 10:02pm — 6 Comments

दिन सुनहरा हो गया- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान -   2122   2122   2122   212

 

आप आये और मेरा दिन सुनहरा हो गया|

आपको देखा तो मेरा फूल चेहरा हो गया|

  

कुछ समय पहले तलक तो थी हरी यें वादियाँ ,

आपके जाते ही तो हर  सिम्त सहरा हो गया|

क़त्ल का ए सिलसिला क्यों और आगे बढ़ गया,

जब से मेरे गाँव में कुछ सख्त पहरा हो गया |

 

लाख चीखो और चिल्लाओ सुनेगा कौन अब,

हाय पत्थर दिल ज़माना आज बहरा हो गया|

 

जख्म तो बस जख्म था जो भर भी सकता था मगर…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 20, 2015 at 10:00pm — 1 Comment

बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है। " अज्ञात "

बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है,             

कुछ पूछो तो कहते हैं, सवाल बुरा है।

पेट्रोल, डीजल, सब्जियां आकाश छू रहीं,

कम होने की उम्मीद का, खयाल बुरा है।



संसद में अमन चैन है, धमाल हो रहा,      

जनता की रसोई में अब, बवाल बुरा है।

      

ठोकते हैं ताल, अपने राग में तल्लीन,        

उठा पटक का इनका सब, चाल बुरा है।



दुश्मन हैं ये आपसी, दुनिया की नज़र में,     

नेता की शकल में हर, दलाल बुरा है…

Continue

Added by Ajay Kumar Sharma on November 20, 2015 at 9:05pm — No Comments

साहित्यकार कलाकार या गिरगिट के अवतार [व्यंग्य]. अखिलेश कृष्ण

अजी सुनते हो ..... पप्पू के पापा ।

 

धीरे बोलो भागवान, पड़ोसी क्या सोचेंगे।

 

मैंने कहा छोटे बड़े मँझले साहित्यकारों और पुरस्कृत कुछ लोग लुगाइयों में सम्मान लौटाने की होड़ लगी है। इन सब के थोपड़े हर चैनल्स में बार बार दिखाया जा रहा है। आप भी अपना सम्मान लौटा दीजिये।

 

कौन सा सम्मान ?

 

ये लो, ऐसे पूछ रहे हो जैसे 10–20  पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुके हो और सिर्फ नोबेल पुरस्कार ही लेना बाकी है। अरे जीवन में एक ही बार तो सम्मानित…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 20, 2015 at 2:19pm — 9 Comments

दोहे

पिय बिन चित चंचल रहे, सावन जारे देह।
बूँद बढ़ाये अगन को, विरहिणि बिछुड़ा नेह।।

बिरहा ढोला लोरिकी, चैती को नही मान।
नंगी धुन पर नाचता, पूरा हिन्दुस्तान ।।

माता जी मम्मी भईं, हुए पिता जी डैड।
यह संस्कृति नंगी हुई, हिन्दुस्तानी मैड।।

क्या था अभिनय भूलकर, आज दिखाते जिस्म।
मजबूती से फाँसता, अश्लीलता तिलिस्म।।

(मौलिक व अप्रकाशित

Added by आशीष यादव on November 20, 2015 at 7:30am — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
7 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service