For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,174)

आओ, एक पुल बनाएं

पुल .....

अर्थात ...मिलन

दो गांवों का /दो देशों का

और

नदियों को लांघने का एक संरचना ॥



रिश्तों का पुल बनता है

जब दो परिवार

शादी के बंधन में बंधते है ।



कुछ दिनों पहले पढ़ा था

एक तलाक शुदा दंपत्ति के

१२ वर्षीय पुत्र ने

माता -पिता के दिलो को जोड़ा

पुल बनकर ॥





प्रजातंत्र में भी

पुल बनाया जाता है

नेताओ और वोटरों के बीच

भाषणों का / आश्वासनों का

जो तुरंत ही ढह जाता है ॥



दरअसल… Continue

Added by baban pandey on June 6, 2010 at 11:50am — 5 Comments

Ghazal-7

गुमाँ का बोझ हटा तो संभल गया हूँ मैं
इसी यक़ीन के नीचे कुचल गया हूँ मैं

ये क्या कि मोम कि सूरत पिघल गया हूँ मैं
तेरे क़रीब की हर शय में ढल गया हूँ मैं

इस अंधकार की सीमा तलाशने के लिए
एक आफताब से आगे निकल गया हूँ मैं

अज़ीज़ दोस्त के चेहरे की अजनबी आँखें
बता रहीं हैं कि कितना बदल गया हूँ मैं

मेरा वजूद समंदर की रेत जैसा है
ख़याल छाओं का आते ही जल गया हूँ मैं

Added by fauzan on June 4, 2010 at 5:32pm — 7 Comments

Takdeer

तकदीर
गर रोने सी ही
बदल सकती तकदीर
यह ज़मीन बस सैलाब होती
गर अश्क बहाने सी होती
हर गम की तदबीर
यह नम आंखें
कभी बेआब न होती

Added by rajni chhabra on June 4, 2010 at 8:50am — 9 Comments

Ghazal-6

रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए

उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए

Added by fauzan on June 3, 2010 at 9:47pm — 8 Comments

नेट पे होती है बाते ,

नेट पे होती है बाते ,

फिर होती है मुलाकाते ,

यारो दिल की सुनो ,

कहता हु दोस्ती के नाते,

ये तो सुनहरा मौका ,

देता हैं (ओ बी ओ )

प्यार से मिलो और ,

प्यार में ही जिओ ,

गुरु के संग गणेश जी ,

और सतीश जी ,

पावन स्थल पटना,

मंदिर महाबीर की ,

तीनो जो हम मिले ,

दोस्ती दिल के खिले ,

लगता नहीं था यारो ,

पहली बार हम मिले ,

बरसो की दोस्ती हो ,

हो बरसो से मिलते रहे ,

दिल में बहुत हैं बाते ,

और मैं क्या कहू… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 4:00pm — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के कुछ सदस्यो का मिलन पटना के पवित्र महावीर मंदिर के प्रांगण मे,

आज दिनांक 02/06/2010 को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के कुछ सदस्यो का मिलन पटना के पवित्र महावीर मंदिर के प्रांगण मे हुआ, जिसका चित्र यहाँ देखा जा सकता है |

पटना के पवित्र महावीर मंदिर



रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी



गनेश जी "बागी", रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी…



Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2010 at 10:32pm — 6 Comments

फूलिश

सीना नहीं बना पाए तो क्या ..पेट तो फुला लिया .. अपराध मिटा न सके तो क्या .. अवरोधक तो बना लिया ....

पेट में जो चर्बी है सब आम जनता की अमानत है ..वापस लेना है की नहीं..
. इतनी चर्बी से ना जाने कितने घुप्प घरो के दिए रोशन हुए होते ..



Added by Anand Vats on June 2, 2010 at 12:09pm — 8 Comments

kaash!

काश!


काश!अपना कह देने भर से ही

गैर अपने होते

तो अनजान शहर में भी

अजनबी लोगों से घिरे

खुशनमा सपने होते

मगर हकीकत तो यह की

अपने ही शहर में अपने

बेगानों सा मिला करते हैं

क्यों खफा रहते हैं आप हम से

इस पर यह गिला करते हैं



रजनी छाबरा

Added by rajni chhabra on June 2, 2010 at 9:00am — 7 Comments

MERE BACHPAN ke khel and kuch mastiaa

kya bachpan hota hai yar ab bachpan ki kimat samajh aati hai us waqt lagta tha ki jaldi se bara ho jaun to koi padhne ke liye nahi kahega khele aur ghumne ki puri aajadi hogi. result nikalne se 1 din pehle ye manata tha ki bhagwan is par kisi tarah pass kar do next class me man laga ke padhenge. kya ajib sab khel humlog khelte the



1. budhiya kabaddi

2. kabbadi

3. noon tha

4 Gilli danda

5. Goli

6. Lakri choo

7. cricket jisme wicket 9-10 bricks se bante… Continue

Added by Ajit kumar sinha on June 1, 2010 at 8:22pm — 6 Comments

खुटे की गाय और प्रजातंत्र

वैसे तो
खुटे से बंधी चरती गाय
और प्रजातंत्र में
कोई समानता नहीं दिखती ॥
मगर
थोडा गौर फरमायें
तीन महत्वपूर्ण बिंदु ....
खूंटा , गाय और रस्सी ॥

खूंटा मतलब संबिधान
अपनी जगह स्थिर
गाय मतलब नेता
चारों ओर चरने वाला
और रस्सी यानी वोटर


इस रस्सी को जब चाहो
तोड़ दो , मोड़ दो , काट दो
है ना समानता ॥

क्या हम सब रस्सी
आपस में मिलकर .....
गाय को नियंत्रित नहीं कर सकते ॥

Added by baban pandey on June 1, 2010 at 8:03pm — 6 Comments

बचपन

मैं कोई लेखक नहीं हु लेकिन मेरे अंदर कीड़ा मचला है अब ..शब्दों को पिरोना संजोना नहीं अत्ता है .. लेकिंग जो बातें हैं कही अनकही बस लिख देना है



गर्मी भीषण हो रही है दिल्ली में मगर बचपना याद दिला रही है..झारखण्ड में एक जगह है , साहिबगंज . वह एक तरफ झरने वाली पहाड़ी है दूसरी तरफ उत्तर वाहिनी गंगा ..चिलचिलाती धुप में कभी झरने में नहा के सुकून लेते थे केकड़ो को पकड़ पकड़ कर हमलोग उसके शल्य चिकित्सा किया करते थे . रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती… Continue

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 1:03pm — 9 Comments

अन्दर की चिंगारी को खोजो

मैं

समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं

जो बार -बार गिरती है / उठती है

और

किनारे तक आते - आते

दम तोड़ देती है ॥



मैं

उन घोड़ो की तरह भी नहीं

जिसे

चश्मा लगा देने पर

सुखी घास भी

हरी दूब समझ खा लेते हैं ॥





मैं

उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं

जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर

बुला लिए जाते है ....

राजनेताओ की रैलियो में

भीड़ जुटाने के लिए ॥



मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!

सबके दिल में रहता… Continue

Added by baban pandey on June 1, 2010 at 12:49pm — 7 Comments

क्षमा कीजिये मुझे मैं हाथ जोड़ता हू|

मैं तत्काल प्रभाव से मेरे सारे कार्यों से त्यागपत्र दे रहा हूँ -- मेरे इस्तीफे के लिए कारण है कि मैं आज सुबह काम पर जाने से पहले मुझे एहसास हुआ की बाल मजदूरी आपराध है|| आपसे शिकायत है की आप मुझे एहसास न दिला पाए .

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 11:50am — 6 Comments

बाल श्रमिक

बाल श्रमिक

वह जा रहा है बाल श्रमिक

अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते

तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये

ईंटों से भरी तगारी

सिर्फ तगारी का बोझ नहीं

मृत आकांक्षाओं की अर्थी

सर पर उठाये

नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए

तन मन की व्यथा किसे सुनाये

याद आ रहा है उसे

मां जब मजदूरी पर जाती और रखती

अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी

साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी

जिन हालात मैं खुद जे रही थी

ढाल दिया उसी मैं बालक को भी

माँ के… Continue

Added by rajni chhabra on June 1, 2010 at 1:33am — 7 Comments

इसी जद्दोज़हद में

इसी जद्दोज़हद में
ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ कर ज्यों
सफे भर रहे हैं

अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं

ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
दुष्यंत .............

Added by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 4:31pm — 9 Comments

थमते कदम आ जाइये

चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.

जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.

प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.

कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.

इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.

इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये

याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये

सज… Continue

Added by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:17pm — 8 Comments

तेरे इंतज़ार का.......

एक और साल ख़त्म हुआ तेरे इंतज़ार का...

एक और जाम ख़त्म हुआ हिज़रे -ऐ-यार का

कई रिंद मर गए पीते-पीते,

साकी बता दे पता अब तू मेरे यार का

गिन-गिन के प्याला तोड़ता हूँ,

मै तेरे मैखाने में हर रोज़

कभी तो ख़त्म हो ये पैमाना तेरे इंतज़ार का



तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता

क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को

सारे ज़माने से तनहा होगया

क्यूँ इतना तुझे प्यार किया

मुझे कहीं पागल न समझ बैठे जमाना

इसलिए थाम लिया लबो पे तेरे फ़साने को

अब… Continue

Added by Biresh kumar on May 30, 2010 at 7:30am — 8 Comments

yaad.........

जब याद तेरी तडपाये

रातों को नींद न आये



कोई दर्द समझ न पाए

आने वाले अब तो आजा



सावन बीता जाए

जब याद तेरी तडपाये



बचपन में साथ जो खेले

सब दुःख सुख मिलकर झेले



हम रह गए आज अकेले

jab से वोह परदेस गए हैं



लौट कर फिर न आये

जब तेरी याद तडपाये



जब फैली तेरी खुशबू

सूखे आँखों में आंसू



है तुझमे ऐसा जादू

मिटटी को अगर हाथ लगा दे



तो सोना बन जाए

जब याद तेरी तडपाये



बरसे… Continue

Added by aleem azmi on May 29, 2010 at 9:03pm — 9 Comments

zara soch lo

ज़रा सोच लो
------------
दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते

रजनी छाबरा

Added by rajni chhabra on May 28, 2010 at 2:40pm — 8 Comments

मंजूर न था .........!

जिंदगी को कुछ यूँ गुज़ारना हमें मंजूर न था

हरने को हम तैयार थे पर जीतना उन्हें मंजूर न था

अजी करते भी तो क्या करते,

की आना उन्हें मंजूर न था इंतज़ार करना हमें मंजूर न था

बस जीते चले गए इसी तरह कुछ क्यूंकि

रोना हमें मंजूर न था,और हसना उन्हें मंजूर न था

हम तो कबसे बैठे ही थे उनका दामन थामने

पर क्या करे की हमारा साथ उन्हें मंजूर न था

मिलने की तो भरपूर छह थी,पर फिर वही किस्मत अपनी

की गिरना हमें मंजूर न था और उठाना उन्हें मंजूर न था

राहे तो हर पल मै… Continue

Added by Biresh kumar on May 28, 2010 at 12:51am — 9 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service