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Krish mishra 'jaan' gorakhpuri's Blog (45)

मरासिम.............."जान" गोरखपुरी

२२१  २१२१     १२२१   २१२

 

ये हैं मरासिम उसकी मेरी ही निगाह के

तामीरे-कायनात है जिसका ग़वाह के

..

सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के

पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के

 ..

हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के

यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के

 ..

जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा खुद-ब-खुद लें चूम

बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के

 ..

छूटा चुराके दिलको…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 22, 2015 at 9:13am — 40 Comments

''खुशबू ओढ़ कर निकलता है''

२१२   १२१२   २२

 

खुशबू ओढ़ कर निकलता है

फूल जैसे कोई चलता है

..

 

रास्ते महकते हैं सारे

जिस भी सिम्त वो टहलता  है

..

 

हुस्न आफ़रीं कि क्या कहने 

जो भी देखे हाथ मलता  है

..

 

गो धनुक है पैरहन उसका       (धनुक=इन्द्रधनुष)

सात रंग में वो ढलता है

..

 

रंगा मुझको जाफ़रानी यूँ         (जाफ़रानी=केसरिया)

रात-दिन चराग़ जलता है

..

 

इश्क मुझको भी है…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 16, 2015 at 10:00am — 14 Comments

कागज के ख़त...........'जान' गोरखपुरी

२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२

 

मुद्दत से जिसने दुनिया वालों से मेरा नाम छुपा रक्खा है

जलने वालों ने ज़माने में उसका ही नाम बेवफा रक्खा है

 

**

 

रातों-रातों उठ उठ कर हमने आँसू बोयें हैं दिल की जमीं पर  

तुम क्या जानोंगे कैसे हमने बाग़-ए-इश्क ये हरा रक्खा है

 

**

 

वो मेहरबां है तो कुछ और न सुना दे,गर हो जाय खफा तो   

चूड़ी ,कंगन, पायल, बादल..कासिद कायनात को बना…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 5, 2015 at 10:30am — 25 Comments

सच का ओज......'जान' गोरखपुरी

२२२ /२२२ /२२

सच का ओज भरम क्या जाने

रौशनी मेरी तम क्या जाने

*

अँधियारे को झुकने वाले

इक दीये का दम क्या जाने

*

दुधिया रंग नहाने वाले

लालटेन का गम क्या जाने

*

मटई प्याल की सौंधी बातें                       मटई/मटिया (भोजपुरी)= मिट्टी

पालथीन के बम क्या जाने

*

हमको सिर्फ साकी से मतलब…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 9:30pm — 28 Comments

गम नही मुझको............'जान' गोरखपुरी

   २१२  २१२२   १२२२

गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर               (फ़र्द = अकेला)

दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर

 

उनको है नाज गर बर्क होने पर

मुझको भी है गुमां गर्द होने पर

चारगर तुम नहीं ना सही माना

जह्र ही दो पिला दर्द होने पर

 

अपनी हस्ती में है गम शराबाना

जायगा जिस्म के सर्द होने पर

 

डायरी दिल की ना रख खुली हरदम

शेर लिख जाऊँगा तर्ज होने पर

 

तान रक्खी है जिसने तेरी…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2015 at 10:30am — 20 Comments

खुद से खफा हूँ......'जान' गोरखपुरी

2212    2212  2212  222

 

खुद से खफा हूँ जिन्दगी मक्तल हुयी जाती है

कोई खता गो आजकल पल पल हुयी जाती है

 

जबसे मुझे उसने छुआ है क्या कहूँ हाले दिल

शहनाई दुनिया धड़कने पायल हुयी जाती है

 

अब जबकि मै मानिन्द सहरा सा होता जाता हूँ

है क्या कयामत ये??जुल्फ वो बादल हुयी जाती है

 

शम्मा जलाकर मेरे दिल का दाग जिसने पारा

स्याही वही अब चश्म का काजल हुयी जाती है

 

सदके ख़ुदा को जाऊ मै क्या खूब रौशन है…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 10:30am — 10 Comments

गज़ल..........'जान' गोरखपुरी

२ १ २ २

 

इश्क क्या है?

इक दुआ है

 

दिल इबादत

कर रहा है

 

अपना अपना

कायदा है

 

पत्थरों में

भी खुदा है

 

कौन किसका

हो सका है

 

नाम की ही

सब वफा है

 

बस मुहब्बत

आसरा है

 

बिन पिये दिल

झूमता है

 

आँख उसकी

मैकदा है

 

फूल कोई

खिल रहा है

 

कातिलाना

हर अदा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 2, 2015 at 11:30am — 39 Comments

‘’घर का मामला'' (लघुकथा)

‘’आपने आज का अखबार पढ़ा अशफ़ाक मियां” कश्मीर में हालात और बेकाबू हो गये हैं!

“हाँ श्रीवास्तव जी पढ़ा!” इतना कहकर अशफ़ाक मियां चुप हो गये।

‘’आखिर मौकापरस्तों के चंगुल में जनता कैसे फँस जाती है ?" श्रीवास्तव जी फिर बोल पड़े।

कुछ देर चुप रहने के बाद अशफ़ाक मियां गहरी साँस लेते हुए बोले---

‘’घर का मामला जब अदालत में जाये तो यही अंजाम होता है’’!

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 2:30pm — 16 Comments

ये हसीन काम...

२२२       /२२२          /२२२

हाँ ये हसीन काम हमने ही किया

खुद को तो तमाम हमने ही किया

आगाजे-बरबादी तेरा  करम

अंजाम इंसराम  हमने  ही किया                       (अंजाम इंसराम=अंजामिंसराम )  इंसराम = व्यवस्था

 

हुस्न पे तू सनम न कर यूँ गुमान

जहाँ में तेरा नाम हमने ही किया

रोज ये कहना कि न आयेंगे पर

कू पे तेरी शाम हमने ही किया

 

हर सुबह न मुँह को लगायेंगे…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 9:00am — 4 Comments

'मस्तों के कलन्दर भोले पिया' (जान’ गोरखपुरी)

२१२२   २१२२   २१२२   २१२२    २२१२

तेरी महफ़िल के दिवाने को सनम और कोई महफ़िल भाती नही

तू जिसे जलवा दिखा दे,उसको अपनी याद भी फिर आती नही

***

तेरी मस्ती में मै हूँ सरमस्त,मस्तों के कलन्दर भोले पिया

तेरी मूरत यूँ छपी दिल में के,सूरत कोई दिल छू पाती नही

***

यूँ जिया में है भरी झंकार के,धड़कन मेरी पायल बन गयीं

मन थिरकता वरना क्यूँ ऐसे,मिलन के गीत सांसें गाती नही

****

आफताबो-माहताबो-कहकशां रौशन हैं तेरे ही नूर से

इश्क़ बिन तेरे,न टरता कण…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 16, 2015 at 9:00am — 12 Comments

खुदा तेरी ज़मीं का..............

1222 1222 1222 122



खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है

करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है



किसी दिन मिलके तुझमें, बन मै जाऊँगा मसीहा

अना की जंग लड़ता मस्त कतरा बोलता है



बिछड़ना है सभी को इक न इक दिन, याद रख तू

नशेमन से बिछड़ता जर्द पत्ता बोलता है



हुनर का हो तू गर पक्का तो जीवन ज्यूँ शहद हो

निखर जा तप के मधुमक्खी का छत्ता बोलता है



बहुत दिल साफ़ होना भी नही होता है अच्छा

किसी का मै न हो पाया,ये शीशा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:00am — 16 Comments

मै तो बलिहारी............'जान' गोरखपुरी

२१२ २२१२ १२१२

मै तो बलिहारी,अमीर हो गया

इश्क़ में रब्बा फकीर हो गया

***

मेरे रांझे का मुझे पता नही

बिन देखे ही मै तो हीर हो गया

**

उसके जलवे यूँ सुने कमाल के

दिलको किस्सा उसका तीर हो गया

***

शिवशिवा घट-घट मुझे पिलाओ अब

तिश्न मै वो गंग नीर हो गया

**

उसको पहनूं धो सुखाऊँ रोज मै

लाज मेरी अब वो चीर हो गया

***

गाऊँ कलमा मै सुनाऊँ दर-ब-दर

‘’जान’’ज्यूँ मै कोई पीर हो…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments

जो न सोचा था कभी............'जान' गोरखपुरी

२१२२ २१२२ २१२१२

जो न सोचा था कभी,वो भी किया किये

हम सनम तेरे लिये,मर-मर जिया किये

***

तेरी आँखों से पी के आई जवानियाँ

दम निकलता गो रहा पर हम पिया किये

***

आँख हरपल राह तकतीं ही रही सनम..

फर्श पलकों को किये,दिल को दिया किये

***

आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके

और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये

***

जख्म को अपने कभी मरहम न मिल सका

गैर के जख्मों को हम तो बस सिया…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:30pm — 15 Comments

गुलाब आँखें(संशोधित)......................‘जान’ गोरखपुरी

२१२२ २१२२ १२१२२



मेरी दुनिया रहने दो अपनी ख़्वाब आँखें

दो जहाँ हैं मेरी ये दो गुलाब आँखें



***



अब तू सम्हल जिंदगी होश खो चुके हम

साकिया ने है पिला दी शराब आँखे



**



ढूंढ लेंगे हम.....रहो पास तुम अगर बैठे

सब सवालों का देती हैं जव़ाब आँखें



***



मेरी मोहब्बत इबादत नफ़स-नफ़स है

रखती हर पल हैं मेरा सब हिसाब आँखें



**



तुम पलक के मस्त पन्ने उलटते जाओ

पढ़ रहा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 27, 2015 at 10:30pm — 10 Comments

दूसरों को....................'जान' गोरखपुरी

खुशियों में होते है सब हमसफ़र..

गम में साथ कोई खड़ा नही होता!

दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...

कोई बड़ा नही होता!

जाने कितनी खायी ठोकरें

लाख रंजिश की गम ने..!

सामने खींचकर बड़ी लकीर

बड़ा बनना सीखा नही हमने..!!

यही करना था तो सियासत आजमाई होती!

हाथ में कलम की न रोशनाई होती..

जंग अदब की मै लड़ा नही होता!!

दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...

कोई बड़ा नही होता!

जिसने रची है सारी ही सृष्टि!

उसने है…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments

जिसे हर शय में................'जान' गोरखपुरी

१२२२ १२२२

जिसे हर शय में देखा था

नजर का मेरी धोखा था।

भरम तेरी निगाहों का

कोई जादू अनोखा था।

सदी बीती जहां लम्हों

मेरा जग वो झरोखा था।

बरसतीं खार आखें अब

लबों सागर जो सोखा था।

गया न इश्क खूँ रब्बा

चढ़ाया रंग चोखा था।

नसीबी ‘’जान’’ रोये क्यूँ

ख़ुदा का लेखा जोखा था।

******************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 8:12pm — 12 Comments

ए-हुस्न-जाना...............'जान' गोरखपुरी

ए-हुस्न-जाना..

दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...

अब मुझको आया कुछ आराम है।

कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।

ए-हुस्न-जाना..

दिल अब तुझसे बेजार है..

हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।

हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।

ए-हुस्न-जाना..

दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...

मालूम मुझको तेरा मकाम है।

के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 4:00pm — 24 Comments

लोग मिलते हैं ...........'जान' गोरखपुरी

2122  2212  1222

लोग मिलते हैं अक्सर यहाँ मुहब्बत से

दिल हैं मिलते यारब बड़े ही मुद्दत से।

आज कल शामें हैं उदास बेवा सी

याद आये है कोई खूब सिद्दत से।

कोई होता है किस कदर अदाकारां

हम रहे इक टक देखते सौ हैरत से।

उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद

पेश आया मुझसे बड़े ही इज्जत से।

लबसे तेरे हय शोख़ गालियाँ जाना

बस रहे हम ता-उम्र सुन…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 18, 2015 at 4:30pm — 19 Comments

तुमने किया छल! -कृष्णा मिश्रा

तुमने किया छल

भावविभोर विह्वल

जल-थल मन

मन जल-थल !

हर प्रतिमा में ढूंढूँ

बिम्ब तुम्हारे..

अनंतपथ में ढूंढूँ

पदचिन्ह तुम्हारे..

अहा! रहते

तुम सम्मुख सदा..

करते अभिनय नयनों में...

नयनों से ओझल!

तुमने किया छल....

सांझ-सकारे जोहूँ

मै बाट तुम्हारा..

पर सामर्थ्य कहाँ

हृदय में,प्राण में?

भर सकूँ ओज तुम्हारा..

नित्य नए पात्र का

करता मै…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 16, 2015 at 10:35am — 18 Comments

'मेहमान' 'जान' गोरखपुरी

ना हाथों में कंगन,

न पैरों में पायल,

ना कानो में बाली,

न माथे पे बिंदियाँ

कुदरत ने सजाया है उसे!!

न बनावट,ना सजावट

न दिखावट,ना मिलावट

गाँव की मिट्टी ने सवारा है उसे!!

ये बांकपन ,ये लड़कपन

चंचल अदाओं में भोलापन,

जवानी के चेहरे में हय!....

हँसता हुआ बचपन!!

वख्त ने जैसे....संजोया है उसे!!

उसकी बातें सुनती हैं तितलियाँ

उसीके गीत गाती हैं खामोशियाँ

हँसी पे जिसकी फ़सल लेती है…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2015 at 3:38pm — 20 Comments

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