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Naveen Mani Tripathi's Blog – August 2016 Archive (7)

ग़ज़ल - लिखता मिला मज़ार पे अरमान आदमी

2212 121 1221 212

खोने लगा यकीन है अनजान आदमी ।

जब से बना है मौत का सामान आदमी ।।



बाज़ार सज रहे हैं नए जिस्म को लिए ।

बनकर बिका है मुल्क में दूकान आदमी ।।



ठहरो मियां हराम न खैरात हो कहीं ।

माना कहाँ है वक्त पे एहसान आदमी ।।



दरिया में डालता है वो नेकी का हौसला ।

देखा खुदा के नाम परेशान आदमी ।।



मजहब तो शर्मशार तेरी हरकतों पे है ।

कुछ मजहबी इमाम भी शैतान आदमी ।।



मतलब परस्तियों का जरा देखिये सितम ।

बेचा…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 30, 2016 at 2:30am — 5 Comments

ग़ज़ल - निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए

(बलोचिस्तान के ताज़ा हालात पर )



2212 1 21 12 212 12

कुछ मुद्दतो के बाद सही फैसले हुए ।

निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए ।।



मत पूछिए गुनाह किसी के हिजाब का ।

देखा कसूरवार के शिकवे गिले हुए ।।



हालात पराये है किसी के दयार में ।

है वक्त बेहिसाब बड़े हौसले हुए ।।



तकसीम कर रहा था हमारा मकान जो।

शायद उसी के घर में कई जलजले हुए ।।



पत्थर न फेंकिए है शहीदों का कारवां ।

कैसे हिमाकतों से लगे सिलसिले हुए ।।



कातिल तेरा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 27, 2016 at 1:33am — 9 Comments

ग़ज़ल - मेरे दर्दे गम की कहानी न पूछो

122 122 122 122



मेरे दर्दो गम की कहानी न पूछो ।

मुहब्बत की कोई निशानी न पूछो ।।



बहुत आरजूएं दफन मकबरे में ।

कयामत से गुजरी जवानी न पूछो ।।



मुझे याद है वो तरन्नुम तुम्हारा ।

ग़ज़ल महफ़िलों की पुरानी न पूछो ।।



हुई रफ्ता रफ्ता जवां सब अदाएं ।

सितम ढा गयी कब सयानी न पूछो ।।



बयां हो गई इश्क की हर हकीकत ।

समन्दर की लहरों का पानी न पूछो ।।



सलामी नजर से नज़र कर गयी थी ।

वो चिलमन से नज़रें झुकानी न पूछो…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2016 at 10:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल - वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले

122 122 122 122



तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।

मैं रोया बहुत गुनगुनाने से पहले ।।



न बरबाद कर दें ये नजरें इनायत ।

वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले ।।



है इन मैकदों में चलन रफ्ता रफ्ता ।

करो होश गुम कुछ पिलाने से पहले ।।



तेरे हर सितम से सवालात इतना ।

मैं लूटा गया क्यूँ जमाने से पहले ।।



बदल जाने वाले बदल ही गया तू ।

मुहब्बत की कसमें निभाने से पहले ।।



ख़रीदार निकला है वो आंसुओं का ।

जो आकर गया…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2016 at 9:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल

सुना है दिल लगाने में बहुत मशहूर है दिल्ली ।

मुझे कह कर गई है वो अभी तो दूर है दिल्ली ।।



जहाँ हर शाम ढलती हो मैकदों को सजाने में ।

कहा अक्सर ज़माने ने नशे में चूर है दिल्ली ।।



चली आती है ख़्वाबों में हजारों दास्ताँ लेकर ।

तुम्हारे जुर्म से होने लगी बेनूर है दिल्ली ।।



सड़क के हादसों के नाम पर लूटी गयी है वो ।

दफ़न कुछ आबरू करके बड़ी मगरूर है दिल्ली।।



सितमगर की कहानी पूछती शरहद की वो लाशें ।

न जाने किस मुरव्वत में लगी मजबूर है दिल्ली… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2016 at 10:51pm — 1 Comment

ग़ज़ल

हरी रंगत गुलाबी सुर्खरूं चेहरा मचल जाए ।

मेरी महफ़िल में आ जाओ मिरा रुतबा बदल जाए ।।



नजाकत से भरी नजरों से छलके जाम है तेरे ।

अंधेरी रात किस्मत में जरा सूरज निकल जाए ।।



बड़ी मासूमियत से कत्ल करने का हुनर तुझमे ।

मेरे कातिल चला शमसीर तेरा दिल बहल जाए ।।



हमारी हर कलम तो सिर्फ तेरी जीत लिखती है ।

तेरी जुल्फों के साये में चलो लिक्खी गजल जाए ।।



खुदा महफूज रक्खे उन रकीबों के नजारों से ।

कहीं ये वक्त से पहले न तेरा हुस्न ढल जाए… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 18, 2016 at 10:02pm — 12 Comments

ग़ज़ल: अंदाज कातिलों के बेहतरीन बहुत हैं

अंदाज कातिलों के बेहतरीन बहुत हैं ।

कुछ शख्स इस शहर में नामचीन बहुत हैं ।।



वो खैर मांगते रहे बुरहान की सदा।

उसकी दुआ में पेश हाज़रीन बहुत हैं ।।



आज़ाद मीडिया है अदावत का तर्जुमा ।

गुमराह हर खबर पे नाज़रीन बहुत हैं ।।



जब भी जला वतन तो जश्ने रात आ गयी ।

दैरो हरम के पास मजहबीन बहुत हैं ।।



मिटते हैं वही मुल्क बड़े जोर- शोर से ।

बैठे जहाँ घरों में फिदाईन बहुत हैं ।।



मेरी बलूच आसुओं पे जब नज़र गई ।

वो हुक्मरान देखिए…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 18, 2016 at 11:00am — 6 Comments

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