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दिनेश कुमार's Blog – April 2015 Archive (3)

ग़ज़ल -- हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

221-2121-1221-212



हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

मेहनत दिखे सभी को, समर बोलने लगे



उस बेवफ़ा से बोलना तौहीन थी मेरी

लेकिन ये मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर बोलने लगे



तहज़ीब चुप है इल्मो-अदब आज शर्मसार

देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे



आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ

जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे



सब हमको बुतपरस्त समझते रहे मगर

ऐसे तराशे हमने , हजर बोलने लगे



दैरो हरम के नाम पे जब शह्र बँट गया

दोनों तरफ़… Continue

Added by दिनेश कुमार on April 21, 2015 at 8:30pm — 24 Comments

ग़ज़ल -- मेरी बरबाद तमन्ना का जनाज़ा उठ्ठे

अरकान : २१२२-११२२-११२२-२२



मेरी बरबाद तमन्ना का जनाज़ा उठ्ठे

दिल-ए-रेज़ा से शबो रोज़ धुआँ सा उठ्ठे



ये तो मैं हूँ जो ग़मे जाँ से अभी वाबस्ता

मेरे हालात में तो कोई भी घबरा उठ्ठे



झूठ ही झूठ अदालत में दिखाई देता

सच की जानिब से भी तो कोई जियाला उठ्ठे



भूख से मौत के आगोश में जो पहुँचा है

अब न मुफ़लिस का वो सोया हुआ बच्चा उठ्ठे



दुख़्तरे रज़ के तलबगार सभी हैं साक़ी

बस तेरी बज़्म में इक ज़िक्र-ए-पियाला उठ्ठे



लोग दाँतों तले… Continue

Added by दिनेश कुमार on April 14, 2015 at 10:39am — 22 Comments

ग़ज़ल -- मुसीबत में ही याद आते हैं राम

122-122-122-121

ये महँगाई जो बढ़ रही बेलगाम
हमारा तो जीना हुआ है हराम

तिज़ारत में हासिल महारत जिसे
उसे गुठलियों के भी मिलते हैं दाम

न जाने सभी की ये फितरत है क्यूँ
मुसीबत में ही याद आते हैं राम

रखे जो सदा हौसला और उमीद
उसी के ही दुनिया में बनते हैं काम

इसे सिर्फ़ वोटों से मतलब 'दिनेश'
सियासत कहाँ करती फ़िक्रे अवाम

मौलिक व अप्रकाशित

Added by दिनेश कुमार on April 6, 2015 at 8:20am — 23 Comments

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