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Arun Sri's Blog – January 2012 Archive (6)

तुम जिन्दा हो

पास हो मेरे ये कितनी

बार तो बतला चुके तुम !

कौन कहता जा चुके तुम ?



आँख जब धुंधला गई तो

मैंने देखा

तुम ही उस बादल में थे ,

और फिर बादल नदी का 

रूप लेकर बह चला था  ,

नेह की धरती भिगोता

और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !

उसके पनघट पर जलाए

दीप मैंने स्मृति के !

झिलमिलाते , मुस्कुराते

तुम नदी के जल में थे !

जब भी दिल धडका मेरा तब

तुम ही उस हलचल में थे…

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Added by Arun Sri on January 31, 2012 at 12:00pm — 6 Comments

उत्तर ढूंढना है

काश !

कोई दिन मेरा घर में गुजरता

बेवजह बातें बनाते

हँसते – हँसाते

गीत कोई गुनगुनाते

पर नही मुमकिन

मैं दिन घर में बिताऊँ!

 

एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले

और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ

थक चुका पर चल रहा हूँ

ढूढता हूँ अंजुली भर जल

जिसे ले

शाम को घर लौट जाऊँ

प्यास को पानी पिला दूँ !

 

मेरे आँगन की बहारों पर

जवानी छा गई है

और मैं

धूप के बाज़ार में बैठा हुआ…

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Added by Arun Sri on January 17, 2012 at 1:30pm — 2 Comments

सूरज भी कतराने लगा

बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा

अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा

हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक

मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा

भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे

दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा

सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह

मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा

घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई

मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा

 

 

 

………………………………….. अरुन…

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Added by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

पहले सी मासूमियत

याद आता है

अपना बचपन,

जब  हम उड़ान में रहते थे

बेफिक्री के असमान में रहते थे

दिन गुजरता था बदमाशियों में

पर रात अपने ईमान में रहते थे !

याद आता है,

दिन भर तपते सूरज को चिढाना

आंधियो के पीछे भागना

उनसे आगे निकलने की कोशिश करना

जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,

और फिर ..............

पता ही नही चला कि

कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर

हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !



दिन से अच्छी थी रातें

हमेशा से

और…

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Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments

बेटियाँ – छन्न पकैयावली

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !

 

 

छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी

सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी

 

छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका

छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका 



 

छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…

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Added by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments

नए वर्ष का नूतन गीत

टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत

आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत

 

नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरनें

तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के

उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है 

तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के 

 

भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत

आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत

 

 

साथ मेरे हो तेरी कोमल फूल सी ऊर्जावान…

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Added by Arun Sri on January 3, 2012 at 12:30pm — 5 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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