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Tasdiq Ahmed Khan's Blog – July 2018 Archive (3)

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)

क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |

जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |

आँख में तेरी अश्के नदामत न थे

इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |

ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर

आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |

ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे

गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |

यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है

यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 29, 2018 at 3:21pm — 18 Comments

ग़ज़ल (हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे)

(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)

हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l

सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l

आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया

हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l

बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी

खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l

जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता

मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l

ज़िंदगी में इस तरह आएंगे…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 7:30am — 17 Comments

ग़ज़ल (जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है)

(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)



याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |

जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |

हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ

आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |

भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर

दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|

इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं

मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |

घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2018 at 5:30pm — 20 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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