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Nilesh Shevgaonkar's Blog – May 2018 Archive (6)

ग़ज़ल-ग़ालिब की ज़मीन पर

था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और

उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और. 

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रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और 

शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और

.

ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं  

उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?

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इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम    

दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.

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आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही 

होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.

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करते हैं…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments

ग़ज़ल नूर की -कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?

कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?

मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.

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ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ

चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.

.

उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन

ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.

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इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,   

मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.

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दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा  

मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.

.

अब कि बरसात में…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2018 at 8:43pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की - याद आया है गुज़रा पल कोई

याद आया है गुज़रा पल कोई
लेगी अँगड़ाई फिर ग़ज़ल कोई.
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कोशिशें और कोई करता है
और हो जाता है सफल कोई.
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ज़िन्दगी एक ऐसी उलझन है
जिस का चारा नहीं न हल कोई.
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इश्क़ में हम तो हो चुके रुसवा
वो करें तो करें पहल कोई.
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हिज्र में आँसुओं का काम नहीं   
ये इबादत में है ख़लल कोई.
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इक सिकंदर था और इक हिटलर
आज तू है तो होगा कल कोई.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित  

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 7:54am — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना

तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना

शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.

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जीतना हो अगर जंग तो सीखिये

हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.

.

खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल

धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.

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देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है

हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.

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कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं

मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.

.

एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र

मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.

.

निलेश…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 8:30pm — 11 Comments

तस्वीर (लघुकथा)

छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.

दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.

आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 7:30am — 18 Comments

ग़ज़ल नूर की- पड़ गयी जब से आपकी आदत

पड़ गयी जब से आपकी आदत,

फिर लगी कब मुझे नई आदत. 

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ज़ाया कर दी गयीं कई क़समें

ज्यूँ की त्यूं ही मगर रही आदत.

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मुझ को तन्हा जो छोड़ जाती है

शाम की है बहुत बुरी आदत.

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पैरहन और कितने बदलेगी? 

रूह को जिस्म की पड़ी आदत.   

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चन्द साथी जो बेवफ़ा न हुए,  

अश्क, ग़म, याद, बेबसी, आदत.

.

ज़िन्दगी यूँ न तू लिपट मुझ से

पड़ न जाए तुझे मेरी आदत.

.

आदतन याद जब तेरी आई

रात भर आँखों से बही आदत.

.

ये…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 3:19pm — 16 Comments

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