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Nilesh Shevgaonkar's Blog – July 2014 Archive (5)

रावण को तू राम बता

२२/२२/२२/२ 
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रावण को तू राम बता,
और सहाफ़त काम बता. ...सहाफ़त-पत्रकारिता 
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बिकने को तैयार हैं सब,
तू भी अपने दाम बता.
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सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता. 
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झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.   
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चाहे काट हमारा सर,
पर पहले इल्ज़ाम बता.    

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क़ातिल ख़ुद मर जाएगा,
बस मक़्तूल का नाम बता. 
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निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 28, 2014 at 9:00am — 11 Comments

ग़ज़ल-निलेश "नूर"-न कोई कशिश है न कोई में ख़ला है

१२२/१२२/१२२/१२२

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न कोई कशिश है न कोई ख़ला है,

ये दिल बावला था ये दिल बावला है.

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गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम,

वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.   

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टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 

जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है.....  आबला- छाला 

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चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,

नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.         

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उठाऊंगा मुद्दा क़यामत के दिन ये,

मेरे हक़ का हर फ़ैसला क्यूँ टला है.  

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समझना है मुश्किल…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 2:30pm — 20 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर" लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,

२१२२/१२१२/२२ 

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लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,

देखना कोई हादसा होगा.

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ख़ूब ईमानदार बनता है,

नौकरी पर नया नया होगा.    

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जब कहा, सिर्फ़ सच कहा उसने,

वो कभी आईना रहा होगा.

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जिसकी सुहबत सुकून देती थी,

कैसे मानें कि बेवफ़ा होगा. 

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एक मुद्दत के बाद धड़का दिल,

ज़ख्म-ए-दिल आज फिर हरा होगा. 

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टूटता दिल भी एक नेमत है,

शायरी का चलो भला होगा.

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शक्ल पर कुछ नहीं लिखा उसने,

कौन कैसा है, कौन…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 8:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर"--कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.

२१२२, ११ २२, ११२२, २२/ ११२ 

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आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,

अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना.

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ये सफ़र ज़ीस्त का था, साथ चली रुसवाई,

देखना बाक़ी रहा...राह का मंज़िल होना.

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इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक,

एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना.

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जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम,

रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.  

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बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,

कितना आसान है आसान का मुश्किल…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 2:00pm — 21 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर" - कभी वो मेहमां रही है मेरी

आ. तिलक राज कपूर सर के मार्गदर्शन से एक ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है ..  उम्मीद है आप का स्नेह प्राप्त होगा

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12122/ 12122/ 12122/ 12122 

हया के मारे वो वस्ल के पल, नज़र का पर्दा गिरा रही है,

मगर ये गालों की सुर्ख़ रंगत, हर एक ख्वाहिश बता…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2014 at 5:00pm — 19 Comments

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