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मनोज अहसास's Blog (149)

ट्रेन यात्रा .एक अतुकान्त कविता-मनोज कुमार अहसास

अनारक्षित ट्रेन थी

खचाखच भरी थी

भरे थे लोग भूसे की तरह

सीटों पर

ऊपर सामान रखने की जगह पर

फर्श पर

लेकिन

मुझे तो जाना ही था ।

खड़ी बोली के सहारे

चार मित्रो और बलिष्ट भुजाओ की सहायता से

मैंने मार्ग बनाया ।



कितने लोग!

इतने लोग?

सब बहुत घुले मिले थे आपस में

क्या कर रहे हैं?

कहाँ जा रहे हैं?

काम से आ रहे हैं

काम पर जा रहे हैं

इतनी दूर से काम पर आ रहे है

अरे?



क्या ये साप्ताहिक गाड़ी… Continue

Added by मनोज अहसास on December 6, 2015 at 2:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212





कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन

इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन



उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है

मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन



बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ

मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन



एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल

फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन



प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है

वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…

Continue

Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm — 18 Comments

वो जाग रहे हैं

वो जाग रहे हैं

दिन है फिर भी जाग रहे हैं

अक्सर वो रात में जागते है

अँधेरी और खामोश रात में

अब वो दिन में भी जाग रहे हैं

रात रौशन जो हो रही है

उन्हें एतराज़ है इस बात पर

रात रौशन क्यों है

वो बहुत गुस्से में है

वो बहुत गुस्से में है

वो साबित करना चाहते है

वो भी प्रहरी है

सूखी हुई खेती के

और उसको काटने नहीं देगे

और अपने मुलायम आसान से उतर आये है

वो अनशन भी कर सकते है

उन्हें डायबटीज़ है मानसिक

मीठा नहीं खा… Continue

Added by मनोज अहसास on October 21, 2015 at 8:21pm — 10 Comments

तरही ग़ज़ल_मनोज अहसास

1222 1222 1222 1222





मेरी आँखों से ऎसे दर्द का रिश्ता निकल आया

जिसे रक्खा निग़ाहों में वही कतरा निकल आया



वो जिसको सारी दुनिया की खुदा ने बख्श दी दौलत

उसी के घर मेरा खोया हुआ कांसा निकल आया



न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी

बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया



मैं दसरथ मांझी का किस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ

किसी की जिद के आगे नूर का रस्ता निकल आया



जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी

मेरे सिर… Continue

Added by मनोज अहसास on October 11, 2015 at 2:30pm — 6 Comments

तरही ग़ज़ल

रोटी कपडा दयार थे सदमे

मुफलिसी मे हज़ार थे सदमे



एक मुद्दत से साथ चलते थे

जान के दावेदार थे सदमे



खूब रोया था कहके चारागर

क्यों मेरा रोजगार थे सदमे



शाइरी भी फंसी सियासत मे

पहले ही बेशुमार थे सदमे



सारी बातें गलत तबीबों की

तेरे गम का गुबार थे सदमे



उनकी आँखों से नूर बहता है

हर तरफ मेरी हार थे सदमे



आज कह डाले तेरी महफ़िल है

मुझपे तेरा उधार थे सदमे



इश्क वालो के बीच कहता हु

रौशनी मे दरार… Continue

Added by मनोज अहसास on September 28, 2015 at 7:32pm — 2 Comments

अ से अंधेरा~~~~~मनोज अहसास

बड़े दिनों के बाद में आखिर

उनका बुलावा आ ही गया

सरकारी शिक्षक होने का

मन में कितना हर्ष हुआ

घर से दूर जाना था मुझको

लेकिन सोचा कोई बात नहीं

यही सत्य है इस जग का

कुछ खोकर ही कुछ पाना है

रात से बेहतर होता सवेरा

भले ही बादल वाला हो

पहुँच गया जब शिक्षा मंदिर

देखकर मन बस टूट गया

ऐसा लगा

उन्नत समाज साफ़ सुथरा जीवन

कितना पीछे छूट गया

घोर कालिमा खुरदरी भूमि

श्यामपट्ट से चेहरों तक

मैले कपड़ो में नन्हा भारत

आँखों में… Continue

Added by मनोज अहसास on September 21, 2015 at 9:26pm — 12 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2212 2212 2212 12





सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया

साकी ने मेरे आंसुओं को जाम लिख दिया



सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं

बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया



खुद को मिला के आ गया दुनिया की भीड़ में

उसने उदासियां का मेरी दाम लिख दिया



इस ज़िन्दगी के घाव कितने कम लगे मुझे

मैंने तड़फती सोच मे जब राम लिख दिया



हाथों के ज़ख्मो पेट की सिलवट को देखकर

घबरा के चारागर ने भी आराम लिख दिय



लपटों मे घिर न जाये कहीं… Continue

Added by मनोज अहसास on September 9, 2015 at 4:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल_ इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 1212 22

आज इस बात पर ही हँसते है

अश्क़ खुशियों से कितने सस्ते है



तुझसे मिलने में वो ही बंदिश है

सारी दुनिया में जितने रस्ते है



वो मुझे रात दिन सताते है

तेरी आँखों से जो बरसते है



जब तेरा ज़िक्र कहीं आता है

होठ कुछ कहने को तरसते है



चल ज़रा बेखुदी में चलते है

बस वहीँ इश्क़ वाले बसते है



मुझमे रोती थी उनकी नादानी

वो मेरी बेबसी पे हँसते है



देखकर तेरे चेहरे की जर्दी

बेबसी मुठ्ठियों…

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Added by मनोज अहसास on September 1, 2015 at 2:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212



लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद

धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद



सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का

और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद



ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत

खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद



खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम

ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद



सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर

चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के…

Continue

Added by मनोज अहसास on August 13, 2015 at 9:30pm — 15 Comments

तेरी बातें (कविता)____मनोज कुमार अहसास

पढ़ा है दर्द की आँखों में तराना तेरा

तुझको मालूम हो शायद मेरा बेरंग सफ़र

मैंने हर लम्हा तेरी याद को पेशानी दी

तुझपे कुर्बान रही मेरी अकीदत की नज़र





मैं सुलगता हूँ तेरा साथ निभाने के लिए

हलाकि कुछ भी नही बाकि है जलने को इधर

ख़त्म हो चुकी इक रस्म की सांसो के लिए

ज़बी हर लम्हा ढूंढती है तेरी रहगुजर





तुझको पा लेना किसी हाल में मुमकिन ही न था

तुझको खोने की तमन्नाये उठी पर कैसे

जब थे मजबूर किसी बात की परवाह न थी

आज इन जमते हुए… Continue

Added by मनोज अहसास on August 9, 2015 at 10:39pm — 12 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212



इश्क़ मे बेहाल होकर इतना हासिल हो गया

तेरी आहट से यहाँ हर लम्हा महफ़िल हो गया



फैसला करना मुझे ये आज मुश्किल हो गया

दिल से मुझको गम मिला या गम से यूँ दिल हो गया



रात सी चादर लपेटे बर्फ से वो सामने

आखिरी लम्हा मेरा जीने के काबिल हो गया



यूँ तो उसने बेबसी के सब फ़साने लिख दिए

ये नहीं कह पाया कैसे खुद का कातिल हो गया



डबडबाया कुछ ज़रा फिर जज्ब सब कुछ हो गया

किस कदर महफूज़ उन झीलों का साहिल हो गया…



Continue

Added by मनोज अहसास on July 26, 2015 at 4:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल - इस्लाह के लिए

2122 2122 2122 212



या तो चाहत इश्क़ में थी या खुदा पाने में थी

एक समंदर की सी तमन्ना आँख के दाने में थी



बेगुनाही एक जिद इक़बाल जब तेरी ख़ुशी

और मेरी हर सजा तेरे बिछड़ जाने में थी



होश के इस फैसले से क्या मुझे हासिल हुआ

ज़िन्दगी की हर ख़ुशी छोटे से पैमाने में थी



सांस लेता है ये जाने कौन किसका जिस्म है

ज़िन्दगी तो अपनी तेरे गम के वीराने में थी



ये नहीं हासिल हुआ या वो नहीं मुमकिन हुआ

कशमकश ये हर घडी इस दिल को थर्राने में…

Continue

Added by मनोज अहसास on July 13, 2015 at 8:30am — 14 Comments

मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल____Manoj kumar ahsaas

सुबह आयी

तेरे इंतज़ार की खुशबू लेकर

फिर तमाम दिन मुझे तेरा इंतज़ार रहा

शाम आयी

तेरे ना आने की मायूसी लेकर

फिर तमाम रात अंधेरो मे ढूढ़ा है तुझे

और बांधी है उम्मीद अगली सुबह से

मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल

तू कहाँ था?

आज आया है

तो मेरी आँखों में चमक ही नहीं

बुझ गया है तेरा इंतज़ार

जला कर खुद को

तुझको पाने को लगाया था खुद को दाँव पर

ऐसा लगता है

तुझ को पाया है खोकर खुद को

मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल

तू कहाँ था?

साथ लेकर… Continue

Added by मनोज अहसास on July 1, 2015 at 1:45pm — 13 Comments

मेरी बेटी( तीसरी कविता)___मनोज कुमार अहसास

आज दोपहरी जब कमरे पर

पहुँचा थका थकाया सा

सबसे पहले पहुँच गया था

वहाँ कोई भी अभी नहीं था

चला के पँखा लेट रहा था

चीं चीं की आवाज़ सुनी तो

बाहर जाकर देखा मैंने

दो चिड़ियाएँ फुदक रही है

चीं चीं चीं चीं

पास गया तो उड़ जाती थी

फुदक फुदक फिर आ जाती थी

पहले कभी नहीं देखा था

आज यें पहली बार मिली है

याद तुम्हारी दिला रहीं है

मेरी बिटिया

चिड़िया सी बिटिया

तेरी बोली इन चिड़ियों में मिल सी गयी है

घुल सी गयी है

इनके आजाने पर… Continue

Added by मनोज अहसास on June 16, 2015 at 5:48pm — 20 Comments

कोशिश ___इस्लाह के लिए __मनोज कुमार अहसास

1222 1222 1222 1222





हमे ये गम हमारी ही खताओं से मिला होगा

सहारे इस कबूलत के नज़र को हौसला होगा





खुदा हमको ही लौटा देता है फेकें हुए पत्थर

हक़ीक़त जानकर किससे भला शिकवा गिला होगा





दुआ ये करता हूँ दिल में न कोई अब कभी उतरे

ज़रा नज़दीकियों से फिर नया एक फासला होगा





तसव्वुर बोझ बन जाये ज़माने मे तो फिर क्या हो

फक़त इस्लाह के हाथों से तब अपना भला होगा





बता'अहसास'तेरी बज़्म से उठ जाता तो कैसे

कदम कुछ जम… Continue

Added by मनोज अहसास on June 6, 2015 at 5:00pm — 24 Comments

पेड़ की पुकार ___मनोज कुमार अहसास

घर सजाते रहे ग़र मुझे चीर कर सारी दुनिया किसी दिन उजड़ जायेगी

हम हरें हैँ तो रौशन है सारा जहाँ वरना जीवन की सूरत बिगड़ जायेगी





हम खड़े धूप में तुमको छाया दिये फल मुहब्बत से तुमको सब दे दिये

तुमने अंधी कटाई न रोकी अगर तुमसे मीठी सी छाया बिछड़ जायेगी





साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे

यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी





हमसे बारिश मिले हमसे महके चमन बिन हमारे अधूरा रहे आचमन

हम न… Continue

Added by मनोज अहसास on June 4, 2015 at 11:41pm — 11 Comments

मेरी बेटी( दूसरी कविता) मनोज कुमार अहसास

मेरी बेटी

तपता सूरज

जब माथे पर सुलग रहा है

दो बातें अपने सीने की तेरे हिस्से मे रखता हूँ

ये सूरज एक बड़ा परीक्षक

ये सूरज एक बड़ा तपस्वी

ये सूरज एक सत्य अटल है

ये सूरज एक महा अनल है

इस सूरज के संरक्षण मे

जीवन के सब अर्थ खुलेगे

इस सूरज के साथ तू चलना

देख गगन से शब्द मिलेगें

चुपके चुपके....सुलग सुलग कर

चमक में हिस्सा मिल जाता है

तपते रहने से रंग जीवन का

एक ना एक दिन खिल जाता है

तपना जीवन को रंगना है

वरना सब फीका… Continue

Added by मनोज अहसास on May 26, 2015 at 7:16pm — 26 Comments

कोशिश______मनोज कुमार अहसास

122 122 122 122









हक़ीक़त नहीं मैं धुँआ चाहता हूँ

तिरी ओर से बस दगा चाहता हूँ



तु मुझको सफ़र में कही छोड़ देना

फकत दो कदम को सना चाहता हूँ



जहाँ तक मुझे तोड़ देगा ज़माना

वहीँ तक सदा की हवा चाहता हूँ



नहीं साथ तेरा अगर ज़िन्दगी में

तिरी रहगुजर में कज़ा चाहता हूँ



ज़रा तोड़कर ये परत बेबसी की

कहीं दूर अब मै उड़ा चाहता हूँ



फ़क़ीरी मेरी वो कदम से लगा लें

अमीरी का उनकी नशा चाहता हूँ



बहुत… Continue

Added by मनोज अहसास on May 23, 2015 at 4:30pm — 3 Comments

आसमां ____मनोज कुमार अहसास

जैसी ज़मीन हो गयी वैसा ही वो हुआ

दूरी से नहीं बेरुखी से आसमां हुआ



पत्थर का शहर हाथ में खंज़र लिए हुए

रोता था मेरी याद में सर नोचता हुआ



ऐसी भी भरी भीड़ न देखी कभी दिलबर

एक ज़िन्दगी में दर्द का मेला लगा हुआ



वैसे तो तुझे भूल भी जाऊ मै जिंदगी

लेकिन ये तेरी याद का जीवन बना हुआ



उस पार का भी गम मेरी आँखों में है मगर

लेकिन ये कफ़न वक़्तका मुझपर पड़ा हुआ



जाता नहीं है आँख से मंज़र कभी भी वो

मै ख़त जला रहा था उसी का लिखा… Continue

Added by मनोज अहसास on May 22, 2015 at 5:30am — 4 Comments

नतीज़ा_____मनोज कुमार अहसास

तेरे दामन से लगाकर मै भरी आँखों को

ज़िन्दगी भर की तसल्ली का नतीजा चाहूँ



रौशनी तेरी ज़िन्दगी में ठहर जाये अगर

कौन सी चीज़ मैं मालिक से हमेशा चाहूँ



जो सुबह मुझको मिली है मै करू क्या इसका

बिन तेरे जीत ज़माने की भला क्या चाहूँ



हिज्रकी रात में भी आँख न जल जाये अगर

और मै चुपचाप तेरे गम में उबलना चाहूँ



हो सके तो मेरे ही दिल को बदल दे मालिक

अपने हिस्से से बड़ा और मैं कितना चाहूँ



रात का ज़िक्र ना कर मेरे हसीं दिल तनहा

मैं… Continue

Added by मनोज अहसास on May 20, 2015 at 4:48pm — 3 Comments

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