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Dr Ashutosh Mishra's Blog – May 2015 Archive (6)

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ

२१२२  १२१२   २२

हुस्न वाले सलाम करते हैं 

क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं 

वो मसीहा चमन को लूट कहे 

काम ये लोग आम करते हैं 

आग दिल में लगाते गुल दिन में 

रात तन्हाई नाम करते हैं 

काम मेरा हुनर जो कर न सका 

मैकदे के ये जाम करते हैं 

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ 

शेख तो  सुब्हो-शाम करते हैं 

कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती 

रिश्ते जब तय पयाम करते हैं 

उनको बुलबुल…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:06pm — 19 Comments

पगली बदली चाँद को ही खा गयी

2122 2122 212

चाँदनी बदली को इतना भा गयी 

पगली बदली चाँद को ही खा गयी 

जिसको रोता देख हमने की मदद

वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी 

हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब 

गोली इक बन्दूक की दहला गयी 

जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे 

वो उसी पल अश्क से नहला गयी 

जान से मारा मगर जब बच गया 

आ मेरे घावों को वो सहला गयी 

Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2015 at 1:43pm — 12 Comments

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या

१२१२    ११२२   ११२२   २२ 

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या 

घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या 

हमें वो हीन कहें दींन  कहें या मुफलिस 

बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या 

बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो

खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या 

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या 

मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे 

नसीब उन को महल हैं…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments

ये मय भी कडवी है सच की तरह

१२१  २२ १२१  २२

यूं कतरा कतरा शराब पीकर

हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर

सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के

मगर दिए सब जवाब पीकर

ये मय लगी  कडवी सच के जैसी 

न कह सका मैं  ख़राब पीकर

पहाड़ सीने पे दर्दो गम के

नहीं रहा कोई दवाब पीकर

जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 1:54pm — 20 Comments

उम्दा तैराक कभी था तो यकीनन पर सुन

2122   1122   1122   22/112

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं  बुझते दिए आप जरा चुप रहिये 

आईना देख के बालों की सफेदी देखें 

गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये

 

आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर

बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे  बहिये 

इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना 

पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?

लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं 

आप उस मोड़ पे मत दर्दे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 11:00am — 10 Comments

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही

२१२२       २१२२         २१२२       २१२२

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है 

नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है 

कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर 

वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है 

चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ 

ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है 

एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने

जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है 

काम दुनिया में…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 10:30pm — 14 Comments

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