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Dr Ashutosh Mishra's Blog – July 2015 Archive (2)

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है 

आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है 

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है 

राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए 

डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है 

तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 

जब…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2015 at 10:34am — 15 Comments

तरही ग़ज़ल

तरही ग़ज़ल   

2122  1122  1122 22   

ये तबाही भरे मंजर नहीं देखे जाते

आँखों में गम के समंदर नहीं देखे जाते

फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं

इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते

एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी

रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते

इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए

मुझसे  हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते

रिंद गर सच्चा तू होता तो खुद समझ लेता

खाली क्यूँ मुझसे ये सागर नहीं देखे जाते

खेलती थी…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 1, 2015 at 4:44pm — 18 Comments

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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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