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Rajesh kumari's Blog – November 2015 Archive (4)

'संबोधन' (लघु कथा 'राज')

संबोधन  

“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है  लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और  बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा  मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा”  सतबीर ने कोमल से कहा |

कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन  कोसते हुए  कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव…

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Added by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:32pm — 9 Comments

रँगेहाथों कोई पकड़े तो हक हकलाता बहुत है (हास्य व्यंग ग़ज़ल 'राज'

१२२२ २१२२  १२२२ २१२२

नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है

छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है

 

जरा रखना जेब भारी करेगा फिर काम तेरा

सदा भूखी तोंद उसकी भले ही खाया बहुत है

 

वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू  

दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है

 

दरोगा वो  गाँव  का देखिये तो  मक्कार कितना

शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है

 

मुहल्ले में शांत रहता मगर उसने बारहा ही   

भिड़ाया है…

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Added by rajesh kumari on November 7, 2015 at 6:18pm — 9 Comments

'दूसरा पहलू' (लघु कथा 'राज')

“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए  पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन  दोनों ही  विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?

“पापा मैं तो दोनों में  ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं…

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Added by rajesh kumari on November 3, 2015 at 11:38am — 14 Comments

परवाह उसको है कहाँ कितने शज़र गए(ग़ज़ल 'राज')

221  2121  1221  212

 

उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये                                                                                                                                       नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये

आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें

,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए

 …

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Added by rajesh kumari on November 1, 2015 at 6:30pm — 15 Comments

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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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