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Usha Awasthi's Blog (93)

लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं

उषा अवस्थी

लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं

भाव भरे, विभिन्न रस सिंचित

वह जीवन को गहती हैं

जुड़े रहें सम्बन्ध आपसी

प्रेम प्रगाढ़ विरचती हैं

परिवारों के रिश्ते-नाते

नेह- स्वरों से भरती हैं

प्रीति- पगे सुन्दर वचनो से

हो उत्फुल्ल गमकती हैं

सामाजिक समरसता के 

शुभ ताने-बाने बुनती हैं

लोक -कथाएँ "कुछ" कहती हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on December 10, 2022 at 7:17pm — 2 Comments

धरती के पुत्रों उठो

धरती के पुत्रों, उठो

उषा अवस्थी

शरद चन्द्र तुम न दिखे
घटा घिरी घनघोर
गरज - चमक कर बरसता
मेघा,ओर न छोर

जो अमृत था बरसता
हमें मिला न आज
पर्व न उस विधि मन सका
जैसा साजा साज़

वृक्ष, पहाड़ों का किया
अपने हाथ विनाश
अब रोने से है भला
क्या आएगा हाथ?

धरती के पुत्रों उठो
समय नहीं है शेष
चुन उपयोगी पौध को
रोपो , मिटे कलेश

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on October 9, 2022 at 11:05pm — No Comments

हिन्दी

हिन्दी



उषा अवस्थी



एकता का सूत्र हिन्दी

राष्ट्र का यह मान

है हमारा आभरण

सौन्दर्य का प्रतिमान



हिन्दी, हमारे हिन्द का है

समन्वित उदघोष

विश्व में फैला रही जो

ज्योति, गौरव बोध



भारती बागेश्वरी का

है दिया वरदान

हम सदा इसको समर्पित

देश का अभिमान



ज्ञान, भक्ति, कर्म से

अद्भुत सुसज्जित वेश

संत की वाणी सुभाषित

मुक्ति का संदेश



मातृभाषा में समाहित

ऊर्जा का स्रोत

समृद्धशाली,… Continue

Added by Usha Awasthi on September 12, 2022 at 12:31pm — 2 Comments

क्या दबदबा हमारा है!

क्या दबदबा हमारा है!

लोक तन्त्र का सुख भोगेंगे

चुने गए हम राजा हैं

देश हमारा, मार्ग हमारा

हम ही इसके आका हैं



चाहे जितनी गाड़ी रक्खें

फुटपाथों पर, बीच सड़क



हमको भला कौन रोकेगा?

जन प्रतिनिधि ,बेधड़क, कड़क



आस-पास हैं गार्ड हमारे

ले बन्दूकें साथ चलें



डर से जन सहमे रहते हैं

क्या मजाल जो घात करें?



पिए शक्ति-मद हम मतवाले

करते नित्य बवाला हैं

संग चापलूसों का…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 16, 2022 at 8:57pm — 4 Comments

आशा

झरता रहा सावन, तपता रहा मन
आषाढ़ सूखा, कहीं बाढ़, कहीं रूखा
कृषक का धैर्य छूटा

सावन की घड़ियाँ, कुछ बूँदे, कुछ लड़ियाँ
गिर भी गईं तो क्या?

मौसम की मार, जीना दुश्वार
कैसी हरियाली, कचरे की क्यारी

पर आशा ही तो थाती है, ढर्रे पर लौटेगा जीवन
सोच व्यापी है

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on August 13, 2022 at 12:20pm — 2 Comments

विचारणीय

  • विचारणीय



    सत्य है, लोग

    व्यवहारिक हो गए हैं

    कल के रिश्ते

    आज खो गए हैं



    किसी के बाप

    किसी की माँ का पता ही नहीं

    झेलें अवसाद…

Continue

Added by Usha Awasthi on July 11, 2022 at 11:11pm — No Comments

कुछ उक्तियाँ

कुछ उक्तियाँ



उषा अवस्थी



आज 'गधे' को पीट कर

'घोड़ा' दिया बनाय

कल फिर तुम क्या करोगे

जब रेंकेगा जाय?



कैसे - कैसे लोग है

कैसे - कैसे घाघ?…

Continue

Added by Usha Awasthi on July 6, 2022 at 3:30pm — No Comments

सब एक

सब एक



उषा अवस्थी



सत्य में स्थित



कौन किसे हाराएगा?

कौन किससे हारेगा?

जो तुम, वह हम

सब एक



ज्ञानी वही अज्ञानी भी वही…

Continue

Added by Usha Awasthi on July 3, 2022 at 6:56pm — No Comments

सत्य

सत्य

उषा अवस्थी

असत्य को धार देकर

बढ़ाने का ख़ुमार हो गया है

स्वस्थ परिचर्चा को 

ग़लत दिशा देना

लोगों की आदत में 

शुमार हो गया है।

 

असत्य के महल खड़े कर

खिल्ली मत उड़ाओ

अनेकानेक झूठ को

सत्य से,धूल चटाओ

शास्त्र वाक्यों को दोराकर

अभिमान मत जताओ

कर्म में परिणित करो

व्यर्थ मत,समय गँवाओ

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on July 1, 2022 at 7:05pm — 2 Comments

पत्रकार

कलम की धार

सशक्त हथियार

चौबीसों घण्टे

चलता व्यापार



निष्पक्ष समाचार

बुराई पर वार

सम्भावित, हर लम्हा

तलवार की धार…



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Added by Usha Awasthi on May 29, 2022 at 5:30pm — 2 Comments

वसन्त (अतुकान्त )

पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 12:37pm — 6 Comments

चन्द्र

विरहणी; भाई ,पति का

संदेश तुम्ही से कहती थी

अपने भावों को पहुँचाने

तुम्हे निहोरा करती थी



स्वर्ण रश्मियों की डोरी से

चन्द्र उतर कर तुम आते

तपते मन के ज़ख़्मों पर…

Continue

Added by Usha Awasthi on March 24, 2022 at 11:05am — 2 Comments

होली

मन की कारिख धोई कै,  प्रेम रंग चटकाय

मोद सरोवर  डूबिए, काम, क्रोध विलगाय



पाप ताप की होलिका जब जारै कोई बुद्ध

प्रकटै तब आह्लाद संग नित्य, मुक्त जो शुद्ध



ज्ञानाग्नि में दहन कर , सभी शुभ अशुभ कर्म

होली हो वैराग्य की, जाने सत का…

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Added by Usha Awasthi on March 16, 2022 at 11:50pm — 8 Comments

साल पचहत्तर बाद

कैसे अपने देश की
नाव लगेगी पार?
पढ़ा रहे हैं जब सबक़
राजनीति के घाघ

जिनके हाथ भविष्य की
नाव और पतवार
वे युवजन हैं सीखते
गाली के अम्बार

अपने को कविवर समझ
वाणी में विष घोल
मानें बुध वह स्वयं को
उनके बिगड़े बोल

वेद , पुराण, उपनिषद
सत्य सनातन भाष्य
समझ सके न आज भी

साल पचहत्तर बाद

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on January 24, 2022 at 10:18am — 4 Comments

ख़्याली पुलाव

एक साथ यदि सारी दुनिया

क्वारन्टाइन हो जाए

सदा सर्वदा दूर संक्रमण

जग से निश्चित ही जाए

प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्र 

ग़र सभी साथ में नष्ट करें

सारे देश सम्मुनत, हर्षित

सर्व सुखों का भोग करें

वन उपवन से प्रकृति सुसज्जित

मानव का कल्याण करे

नित नवीन होता परिवर्तन

सुखद, सात्विक मोद भरे

सकल विश्व का मंगल तय तब

चँहु दिशि व्यापे खुशहाली

सुन्दर पर कल्पित, सपना है

यह पुलाव तो है…

Continue

Added by Usha Awasthi on January 2, 2022 at 11:31am — 3 Comments

परम चेतना एक (कुछ विचार)

सब धर्मों का सार जो

वह तो केवल एक

बाह्य रूप दिखता अलग

परम चेतना एक

फैलाते भ्रम व्यर्थ ही

जो विवेक से शून्य

वे मतिभ्रष्ट, विवेकहीन

उन्हे चढ़ा अहमन्य

हुए विषमता से परे 

जिन्हे सत्य का बोध

गुण-अवगुण से हो विलग

नित्य बसे मन मोद

प्रकृति और चैतन्य का

आपस का संयोग

उस दर्पण में फलीभूत 

हो ज्ञानी का योग

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on November 3, 2021 at 6:44am — 3 Comments

सत्य (अतुकान्त)

ऊँचे तो वही उठ पाएंगे

जो सत्य की गहराई

झूठ का उथलापन

जान जाएंगे

जो सत्य को कमजोर समझते

विनम्रता का तिरस्कार करते

वैराग्य का उपहास उड़ाते हैं

वह बुद्धि बल से पंगु

अपनी दुर्बलता छिपाते हैं

जो सत्य को तोड़ते, मरोड़ते हैं

वे साहित्यकार नहीं

चाटुकार होते हैं

दिन कहाँ समान रहते हैं?

सत्य है, आज इसकी

कल उसकी झोली भरते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on October 27, 2021 at 10:36pm — 10 Comments

मुझे ना मार पाएगी (अतुकान्त)

खाली हो गई हूँ

इच्छाओं से, आशाओं से

व्यर्थ विचारों से

निरर्थक प्रवाहों से

अस्थिर लगावों से

अनर्गल खिंचावों से

आधुनिक चकाचौंध से

कौन जाने, मौत

कब दरवाजा खटखटा दे

साथ ले जाने को

किन्तु वह क्या साथ

ले जा पाएगी ?

वह तो पंच तत्वों में

तन को मिलाएगी

मुझे ना मार पाएगी

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on September 16, 2021 at 10:59pm — 6 Comments

कोरोना

जिजीवषा जो इन्सा की

वह नहीं  कभी भी हारेगी

जन-जन तक पहुँचाने सुविधा

अपने श्रम बल को वारेगी

उत्पाती कोरोना की यह

सघन श्रृंखला टूटेगी

जकड़न से पाश मुक्त होकर

मानवी हताशा छूटेगी

गहन बुद्धि अन्वेषण से

वैज्ञानिक युक्ति निकालेगा

निर्मित कर अचूक औषधियाँ

 इसको  तो जड़ से मारेगा

भय  जाएगा मन से समूल

कीटाणु सर्वदा हारेगा

मास्क, शुद्धता, शारीरिक 

दूरी का भूत…

Continue

Added by Usha Awasthi on September 8, 2021 at 9:58pm — 4 Comments

गृहणी

झाड़ू -पोंछा कर रही

अन्तर में अनुराग

स्वस्थ रहें सब, उल्लसित

हृदय भैरवी राग

दाल, सब्जियाँ पक रहीं

उफन रही है प्रीत

क्यों ना खा सब तृप्त हों?

जब पवित्र मन मीत

चकले पर  रोटी बिली

तवे पकाया प्यार

उमग खिलाती प्रेम से 

गृहणी नेह सम्हार

बरतन हैं जब मँज रहे

सृजन हो रहा गीत

ताल बद्ध , लय बद्ध हो

बजता नव संगीत

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on August 22, 2021 at 8:30pm — 6 Comments

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