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Er. Ganesh Jee "Bagi"'s Blog – February 2015 Archive (4)

तरही ग़ज़ल : तू रात की रानी है (गणेश जी बागी)

          221-1222-221-1222

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो 

चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.



इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के

मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.



क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.



तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा

गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 27, 2015 at 11:00pm — 28 Comments

लघुकथा : प्रीत (गणेश जी बागी)

कुष्ट रोग से ग्रसित बिधवा बुढ़िया अकेली ही रहती थी. इकलौता बेटा शादी कर पता नहीं कहाँ जा बसा था. किसी ने बताया कि रोग से मुक्ति चाहिए हो तो जुम्मे के रोज मजार वाले बाबा के पास जाओ. बुढ़िया अगले ही जुम्मे को मजार पर पहुँच गयी । वहाँ झाड़-फूंक चल रही थी. बाबा के एक शागिर्द ने चढ़ावा लिया और घर-परिवार, रिश्तेदारों आदि के बारे में पूछताछ कर एक तरफ बिठा दिया जहाँ पहले से उस जैसे अन्य मरीज इन्तजार कर रहे थे. खैर कुछ देर इन्तजार के पश्चात उसकी बारी आयी ।

बाबा की…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 4:00pm — 25 Comments

अतुकांत कविता : हिंसा (गणेश जी बागी)

मारते हो पशु

फैलाते हो हिंसा

'नीच' जाति के हो न

असभ्य कहीं के

कभी नहीं सुधरोगे

इतिहास गवाह है...



मारते तो तुम भी हो

'शिकार' के नाम पर

तुम तो 'नीच' न थे

याद है ?

वो शब्द भेदी बाण

जो असमय वरण किया था

अंधों के पुत्र का,

भागे थे हिरण के पीछे

चर्म चाहिए था न

इतिहास गवाह है...



हिंसक तो तुम दोनों ही हो

एक शौक के लिए

तो दूजा भूख के लिए

हाँ जी हाँ, बिलकुल

इतिहास गवाह है…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 4:30pm — 28 Comments

लघुकथा : सोशल स्टडी (गणेश जी बागी)

रसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 10:30am — 38 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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