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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – August 2016 Archive (13)

फुटपाथ (लघु कहानी )

राजू ! हाँ यही तो नाम था उस बच्चे का जिससे मैं मिली थी कुछ वर्षो पहले । अक्सर उसे अख़बार बाँटते हुए देखा था । बारह -तेरह वर्ष का बच्चा । गाड़ियों के पीछे भागता , सिग्नल होने पर गाड़ियों के कांच से अखवार ख़रीदने की गुहार करता । उसके साथ एक बच्ची शायद उसीकी बहन थी । कई बार सोचती थी रुक कर उससे बात करूँ । मासूम सा चहरा ,अपनी बहन का हाथ थामकर ही सड़क पार करता था ।

एक दिन उसी रास्ते से गुज़र रही थी पर वो लड़का नहीं दिखा । उसकी बहन के हाथों में अखबार थे । गाड़ी से उतर कर मैंने उसको अपने पास बुलाया ।…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 30, 2016 at 3:30pm — 8 Comments

घोड़ा

घोड़े

दौड़ते हुए घोड़े
सरपट अपनी रफ़्तार में
अपने ही कदम
अपनी ही डगर
न रुकते ना ही थकते
कभी चलते
कभी बहकते
दौड़ते रहते
बस
दौड़ते रहते
एक सफर से दूसरे की ओर
न जाने कोई होता भी है छोर
कभी होती काँटों की चुभन
कभी धुप से जलते है पैर
कभी मिल जाती है छाँव बरगद की
कभी नुकीली होती है सैर ।
रुक गए कदम कहीं ।
तो दिखती है सामने
बाहें फैलाती राह
अंजान ही सही ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 29, 2016 at 10:18am — 8 Comments

नेपाल यात्रा - यादों के झरोखे से (संस्मरण)

यह 1980-81 की बात है । मैं दसवी क्लास में थी । स्कूल का आखरी टूर था । पता चला कि नेपाल जाना था । स्कूल के टूर साल में दो बार होते थे गर्मी और विंटर की छुट्टियों में । दिसम्बर में जाना तय हुआ था । प्रिंसिपल सर ने घोषणा की कि दिल्ली , आगरा , पटना , गया से समस्तीपुर होते हुए नेपाल जाना होगा । हम क्लास में आपस में बाते करने लगे थे । अपने अपने मनसूबों के साथ हम में एक उत्साह था । यह स्कूल का आखरी टूर था । हम सब जल्द ही बिछड़ने वाले थे । मेरे मन में था मैं भी जाऊं । पर कैसे ?? एक नोटिस मिलता था ।…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:00am — 9 Comments

खूबसूरत जहां

आकाश ,बादल, चाँद, सितारे

लगते है कितने प्यारे प्यारे

बच्चों की कहानियों में आते

युवा के मन को यह है भाते

सुबह और शाम

दिन और रात

चार पहर की चार बाते

चार बातों की चार सौगातें

पेड़ पौधों की अपनी महफ़िल

परिंदों के अपने कलरव

रेंगते कीड़ों की अपनी वाणी

धरा की बढती खूबसूरती

आकाश को महकाती

क्षितिज देखता चहु और से

नदी सागर का बहना

चट्टानों से बहते झरनें

चमकते पत्थर

सूखे पठार

चुभते काँटे

मिट्ठी मीट्टी की… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 22, 2016 at 9:23pm — 8 Comments

बाल मज़दूरी ( लघुकथा)

मुझे पढ़ना है

"बाल मज़दूर ! यह क्या होता है अंकल । यह आप किसके लिये बोल रहे थे ।"

" ओह ! कल्लू तो तुमने हमारी बातें सुन ली । बच्चे मज़दूर माने मेहनत करने वाला । बाल मज़दूर माने बच्चा जो दिन भर मेहनत करके रोटी कमाये । "

" अच्छा ! पर मेरी अम्मी तो मुझे राजा बेटा बुलाती है और बाबा मुझे कहते है पैसे की खान । पर यह होता क्या है ? खान माने !! "

"अरे तुम्हारे बाबा भी है क्या ? वो क्या करते है ? "

" है न मेरे बाबा , वे तो घर में ही रहते हैं । अम्मी कहती हैं वो जुवारि हैं । कुछ काम… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 15, 2016 at 6:22pm — 1 Comment

बुढ़िया

बुढ़िया

एक पेड़ के साये में एक बुढ़िया रहती थी । कोई नहीं जानता था उसको । बस वहाँ से गुज़रते लोगों को देखती ,चहल पहल देखती और गर कोई उसे कुछ दे देता तो खा लेती थी । उनकी झुर्रियाँ बहुत कुछ कहती थी । पर यह थी कौन कहाँ से आई कोई नही जानता था ।

लोगों का पहले तो ध्यान नहीं था पर रोज़ उसी जगह पर उसे देख वो एक आकर्षण का केंद्र बन गयी थी । "पर यह थी कौन ? "अ ने ब से पूछा जो यह किस्सा सुना रहा था ।

"एक दिन अख़बार की सुर्ख़ियों में इसके मौत की खबर देख एक आदमी आया था ।उसने उस बुढ़िया के लिये थाने… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 3:30pm — 4 Comments

मैदान

मैदान



क्रिकेट के मैदान में

जीवन का खेल खेला जा रहा



वक़्त बॉलर बना है

और हम खड़े है बैट पकड़कर



सोच रहे वक़्त को दे मारा

और पड़ गया क्या बात है



चौका छक्का !



रिश्तेदारों से घिरे हुए

दोस्तों के बीच

कुछ अपनों के साथ

कुछ बेगानों के साथ



इनिंग्स पर इनिंग्स खेल रहे है

देख रहे है मूक दर्शक श्रोता बन



गिरा कोई तो ताली बजती

हारता है कोई हँसता है कोई



स्लिप गली ऑफ साइड

व ओन… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 10, 2016 at 2:32pm — 4 Comments

निज स्वामित्व - हवेली (लघुकथा)

विषय आधारित -निज स्वामित्व

हवेली

मुरारी लालजी जी हवेली पुरे कस्बे में मशहूर थी । कोई भी कस्बे में कोई भी कहीं आता तो इस हवेली को देखने से न चुकता । इस भव्य हवेली के मालिक मुरारी लालजी के लिए तरह तरह की बाते होती थी । कोई कहता पुराना डकैत है , कोई कहता बाप दादाओ का दिया है । पर वे अपने ही मिजाज के व्यक्ति थे । घर में उनके 6 बेटे और पत्नी सहित और भी लोग रहते थे । धीरे धीरे सब एक एक कर इस घर को छोड़ कर चल दिए । " यह इस तरह से हँसने की आवाज़े कहाँ से आती है ? किसीने वहाँ रहने वाले व्यक्ति… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2016 at 2:59pm — 7 Comments

न जानूँ मैं

न जानूँ मैं

न जानूँ मैं
तुम निराकार को
तुम्हारे आकार को
मूर्ति बन कहीं होते हो
कहीं होते हो एक प्रतीक बनकर
कोई कहता है
हो तुम ह्रदय में
कोई खोजता है
तुम्हें मन्दिर मस्जिद में
तुम गरीब में तुम ही अमीर में
तुम ही वन
तुम ही सागर
हर परिंदे की उड़ान तुम ही
हर जगह हो तुम
फिर भी ओझल हो आँखों से
न जानूँ तुमको मैं
प्रेम हो बस यह मानूँ मैं ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 6, 2016 at 11:00am — 3 Comments

बिन पैंदी का लौटा (लघुकथा)

मैं न बदलूंगा

"तुम्हारे जैसा चमचा नहीं देखा आज तक । कितनी चापलूसी कर लेते हो तुम । और देखो तो दोनों मेनेजर तुम्हारी मुट्ठी में हैं ।" अ ने ब से कहा

"अब यह तो अपनी अपनी कला है । हाँ यह सच है दोनों मेनेजर मेरी बात मानते है । पर मैं चमचा हूँ यह कैसे कह दिया तुमने । "

" सुनो अ यह अपनी अकड़ अपने पास ही रखो । मैं ही नहीं सारा ऑफिस स्टाफ यही कहता है । सब बेवकूफ तो नही । वैसे तुम एक बिन पेंदी के लौटे हो । तुम्हारे जैसा बेशर्म इंसान नहीं देखा है मैंने सुना है एक मेनेजर ने तुमको घर बुलाया… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 5:46pm — 8 Comments

निर्जन पगडंडी - एक नयी राह

" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!

"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 4, 2016 at 3:30pm — 11 Comments

गर तुम न होते

गर तुम न होते



सोचती हूँ अक्सर मैं

क्या होता गर

तुम न होते !

क्या बिखर जाती

क्या संवर जाती

दीवारों से पूछ लेती हूँ

शायद यही बता दें

जिसने करी है बातें अनगिनित

वे ही कुछ बतादें।

वो खिड़कियों से झाँकती हुई

कुसुम लताएँ

उस पेड़ पर बने हुए

घोसलें चिड़ियाओं के

आसमान से देखते है जो बादल

यह चाँद जो गवाह था

प्रीत का

यह सूरज जिसने तपते हुए

रिश्तों की लौ को जलाया था ।

बताओ तुम ही किससे पूँछू

क्या होता इस… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 3, 2016 at 7:00am — 1 Comment

वर्षा

वर्षा की बूंदों में कहीं

उमड़ते घुमड़ते बादल है

हरयाली है हर तरफ

प्रेम प्रीत की बौछार है

सावन के हैं गीत कहीं

कहीं त्योहारों की माला है

मौसम है यह सुहाना

हर मन को यह भाता है ।



गिली मिटटी पर फसल होती

देश के लोगों की भूख है मिटती

किसान की खुशहाली से

धरा भी खुश खुश है रहती ।

सुखी प्यासी धरा बनती दुल्हन

हाथों पर महेंदी है रचती ।



कहीं कटे है पेड़ सभी

कहीं नहर को रोका है

पानी भी अपने राह पर चलता

कभी हंसाता… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 2:30pm — 7 Comments

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