For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – April 2015 Archive (10)

अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है ( गिरिराज भंडारी )

अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है

********************************* 

मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है

अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी

तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं

कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे

दुनिया को

 

लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,

इस उजाले की पहुँच बाहरी है

किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी

भ्रम में न रहें

 

कानून अगर सही सही पाले जायें

तो, ये व्यवस्था देते…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 28, 2015 at 11:30am — 27 Comments

ग़ज़ल -- कोलाहल थोड़ा सा कोई लाया क्या ? ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  2   

दरवाज़े पर देखो कोई आया  क्या ?

अपने हिस्से का कोलाहल लाया क्या ?

ख़ँडहर जैसा दिल मेरा वीराना, भी

खनक रही इन आवाज़ों को भाया क्या ?

कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को

इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ?

 

फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर

छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ?

 

सारे पत्थर आईनों पर टूट पड़े

कोई पत्थर ,पत्थर से टकराया क्या ?



जुगनू सहमा सहमा सा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 22, 2015 at 6:30pm — 28 Comments

गज़ल - बचपने में ही सभी बच्चे सयाने हो गये ( गिरिरज भंडारी )

तरही ग़ज़ल -

2122    2122   2122   212

तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये

दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये

 

अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है वबाल

बचपना में ही सभी बच्चे सयाने हो गये

 

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये

 

अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ

नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये

 

इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये

आप ये मत…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 5:30pm — 23 Comments

अतुकांत - हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क - ( गिरिराज भंडारी )

हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क

*******************************

कोरी बातों से या आधे अधूरे समर्पण से  

किसी भी परिवर्तन की आशायें व्यर्थ है

जब तक आत्मसमर्पण न कर दें आप

तमाम अपने छुपाये हुये हथियारों के साथ

अंदर तक कंगाल हो के

सद्यः पैदा हुये बालक जैसे , नंगा, निरीह और सरल हो के

सत्य के सामने या

वांछित बदलाव के सामने 

 

आपके सारे अब तक के अर्जित ज्ञान ही तो

हथियार हैं आपके

वही तो सुझाते हैं आपको…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 9:00am — 23 Comments

ग़ज़ल - मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया ( गिरिराज भंडारी )

22    22    22    22    2

शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है

यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है

 

मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया

किस अँधियारे ने इसको भरमाया है

 

याराना कुह्रों से है क्या मौसम का

आसमान तक देखो कैसे छाया है

 

चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की

किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है

 

सूखी डाली करे शिकायत तो किस को

सूरज आँखें लाल किये फिर आया है

 

छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 15, 2015 at 8:30am — 27 Comments

गीत / नवगीत - क्या ये मेरा वही गाँव है --- गिरिराज भंडारी

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

क्या ये मेरा वही गाँव है

सूरज अलसाया निकला है

मुर्गा बांग नहीं देता है 

नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं

ना कौवे की काँव काँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

दो पहरी सोई सोई है

दिवा स्वप्न में कुछ खोई है

यहाँ धूल में सनी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:32am — 22 Comments

ग़ज़ल - सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है -- गिरिराज भंडारी

221    212 1   1221     212 

 

बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है

सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है

 

कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही

चक्की में ज़िन्दगी  की पिसाई हुई तो है

 

बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली

लेकिन जो सच थी बात, उठाई  हुई तो है

 

देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक

तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है  

 

सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा

उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 3:30pm — 32 Comments

ग़ज़ल -- चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है ( गिरिराज भंडारी )

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

22  22  22  22   22  2

***********************************

याद मुझे वो अक्सर ही आ जाती है

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

 

आग चढ़ी वो दूध भरी काली मटकी

वो मिठास अब कहाँ कहीं मिल पाती है 

 

वो कुतिया जो संग आती थी खेतों तक

उसके हिस्से की रोटी बच जाती है

 

छुपा छुपव्वल वाली वो गलियाँ सँकरीं

दिल की धड़कन , यादों से बढ़ जाती है

 

डंडा पचरंगा खेले जिस बरगद…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 6, 2015 at 11:44am — 27 Comments

आपने नहीं पहचाना शायद -- अतुकांत - गिरिराज भंडारी

उड़ानें उसकी बहुत ऊँची हो चुकी हैं

बेशक ,  बहुत ऊँची

खुशी होती है देख कर

अर्श से फर्श तक पर फड़फड़ाते

बेरोक , बिला झिझक, स्वछंद उड़ते देख कर उसे

जिसके नन्हें परों को

कमज़ोर शरीर में उगते हुए देखा है

छोटे-छोटे कमज़ोर परों को मज़बूतियाँ दीं थीं

अपने इन्हीं विशाल डैनों से दिया है सहारा उसे

परों को फड़फड़ाने का हुनर बताया था  

दिया था हौसला, उसकी शुरुआती स्वाभाविक लड़खड़ाहट को

खुशी तब भी बहुत होती थी

नवांकुरों की कोशिशें…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 9:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल -- प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही -- ( गिरिराज भंडारी )

२११२२        २११२२         २११२      

प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही

*****************************************

प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही

ख्वाब तो हो, सच्चा न सही  मुबहम ही सही

 

लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत

आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही 

 

मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो    

धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही

 

कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी 

काँटों लदी हो डाल खिले…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:25pm — 29 Comments

Monthly Archives

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service