For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – June 2015 Archive (15)

ग़ज़ल -- ये मेरा असर है ( गिरिराज भंडारी )

122    122 

ले, कदमों पे सर है

लो, अब भी कसर है

 

जो मर ही चुके हो

तो अब किसका डर है

 

नहीं ख़त्म होगा

ये मेरा असर है

 

नहीं कोई मंज़िल

महज़ रह ग़ुज़र है

 

तो घर में ही बैठो

अगर तुमको डर है

 

लिखे शह्र जिसको

हमें वो शहर है

 

नहीं है जो कड़वा

वो मीठा ज़हर है

 

लो, अन्धों से  सुन लो 

कहाँ रह गुज़र है

****************

मौलिक एवँ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:58am — 29 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- खार सीने से लगाता कौन है ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122    212 

छोड़िये , हमको बुलाता कौन है

खार सीने से लगाता कौन है

आप हैं गमगीन , खुद रोते रहें

अब यहाँ कन्धा बढाता  कौन है

 

हाथ अंगारों में रख कहते हैं वो

हमसा खुद को आजमाता कौन है

 

सोई खोई बस्ती की तनहाई में

ग़ज़ले-ग़ालिब गुनगुनाता कौन है

  …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:30am — 28 Comments

गज़ल - फिल बदीह -- हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया ( गिरिराज भंडारी )

122   122   122  12

 

अँधेरों के मित्रो,  हवा दीजिये

मै जलता दिया हूँ बुझा दीजिये

 

लिये आइना सब से मिलता रहा

सभी अब मुझे बद्दुआ दीजिये

 

हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया

हमे जुगनुओं का पता दीजिये

 …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:00am — 25 Comments

तरही गज़ल - ( फिल बदीह मे दिये मिसरे पर )तुम्हारे हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है ( गिरिराज़ भंडारी )

1212    1122    1212   22 /112

फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है

वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है

 

अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं  

तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है

 

जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको

कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 23, 2015 at 9:00am — 22 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- मुझमें पैठा हुआ कोई डर ज़िन्दगी ( गिरिराज भंडारी )

212       212       212        212

के छू तो कभी बामो दर ज़िन्दगी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 22, 2015 at 6:30am — 12 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं ( गिरिराज भंडारी )

 २१२    २१२    २१२    २१२

 *******************************

दोस्त निर्लिप्त है, टोकता भी नहीं

और पूछो अगर बोलता भी नहीं  

 

बोलना जब मना,  फाइदा भी नहीं

बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं 

रात तारीकियों से घिरी इस क़दर

मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं

 

तुम अभी तो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 5:30pm — 24 Comments

प्यार - एक वैचारिक अतुकांत -'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ '' ( गिरिराज भंडारी )

प्यार - एक वैचारिक अतुकांत --'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ ''

********************************************************************

वाह !

किसने कह दिया ?

आपके दिल में प्यार भरा है, सागर सा

खुद ही दे दिये सर्टिफिकेट , खुद को ही

वाह ! क्या बात है

बिना जाने सच्चाई क्या है ? कैसी है ?

प्यार है भी कि नहीं दुनिया में

प्यार नाम की चीज़ होती कैसी है ?

रहता कहाँ है प्यार ?

किन शर्तों में जी पाता है ?…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 10:00am — 10 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- अब ज़रा सा मुस्कुराना आ गया ( गिरिराज भंडारी )

 2122    2122    212

क्या वही फिर से ज़माना आ गया ?

आदमी को दोस्ताना आ गया

 

शर्म उनकी आँखों मे दिखने लगी

इसलिये नज़रें चुराना आ गया

 

फ़िक्र अब करते नहीं यादों की हम

अब हमें उनको भुलाना आ गया

 

ऊब कर रोने से दिल को देखिये  

अब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 9:00am — 22 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- फिर किसी सलमान को ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122     212

***************************************

दें सहारा, लड़खड़ाते आ रहे नादान को

पूछ तो लें बोझ कितना है, भले इंसान को

 

तू समन्दर पास आँखें खोल के रखना नहीं

ठेस लग जाये न तेरे ज्ञान के अभिमान को  

 

ओ मेरे फुटपाथ पे सोये हुये मित्रों,  जगो !

क्यों बुलावा दे रहे हो फिर किसी सलमान को

 

कोशिशें तो खूब की आँसू गिरे, महफिल ने…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 8:00am — 16 Comments

गज़ल - फिल बदीह --- वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है ( गिरिराज भंडारी )

122    122   122   122

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है

वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

 

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

 

तबीयत से इक फूँक भारो तो यारों

जलाने को दुनिया, शरारा बहुत है

 

ये मजहब का ठेका हटा लो यहाँ से …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 14, 2015 at 7:30am — 28 Comments

ग़ज़ल -- ये ज़मीं सारी मेरा घर कह लें ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212    22  / 112 

ये ज़मीं सारी मेरा घर कह लें

आप आयें जहाँ से, दर कह लें

 

जो कमाता है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 13, 2015 at 9:00am — 28 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह --- फिर उसी रह गुज़र गया कोई ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212   22  / 112

  

"क्या ज़माने से डर गया कोई

एह्द क्यूँ तोड़ कर गया कोई"

ख़्वाब मेरे कुतर गया कोई…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 6:30am — 23 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह -- वहीं आज मैने बग़ावत लिखी है ( गिरिराज भंडारी )

122     122     122    1222

 

जहाँ ने जहाँ पर शराफत लिखी है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 6:00am — 22 Comments

गज़ल -( फिल बदीह ) - हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"

-----------------------------------------------------------------------

2122   2122    2122   212

 …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 7:30am — 30 Comments

ग़ज़ल - फिल बदीह - मिसरा - खूब सूरत है मगर ये आपसे प्यारा नहीं ( गिरिराज भंडारी )

2122 2122 2122 212



है कोई क्या इस जहाँ में जो कभी हारा नहीं

"सिर्फ़ पाया हो यहाँ पर और कुछ खोया नहीं"



पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह

दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं



ख़्वाब की बातें कहूँ क्या, नींद जब दुश्मन हुई

माँ का साया जब से रूठा , तब से मैं सोया नहीं



बादलों में खेमा बन्दी भी हुई क्या ? आज कल

क्यों मेरे घर से गुज़रते वक़्त वो बरसा नहीं



मरहले के और पहले थक गया था काफिला

आबला पा था…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 9:30am — 32 Comments

Monthly Archives

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service