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योगराज प्रभाकर's Blog – October 2010 Archive (5)

सलाम (लघुकथा)

सूरज ने फक्कड़ से कहा:

"मुझे झुक कर सलाम कर !"

"तुझे सलाम करूं ? मगर क्यों?"

"ये दुनिया का दस्तूर है, चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं !"

"करते होंगे, मगर मैं तेरे आगे सिर नहीं झुकऊँगा !"

"मगर क्यों ?"

"क्योंकि तू बहुत कमज़ोर और निर्बल है, जिस दिन सबल हो जाएगा मैं तेरे आगे सर ज़रूर झुकाऊंगा !"

"कमज़ोर और निर्बल ? और वो भी मैं ?"

"हाँ !"

"तो अगर मैं ये साबित कर दूं कि मैं सबल हूँ, तो क्या तुम मुझे सलाम करोगे?"

"एक बार नही सौ सौ बार सिर झुकाकर सलाम…

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Added by योगराज प्रभाकर on October 28, 2010 at 9:30am — 42 Comments

वो भारत (लघुकथा)

आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:

"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"

उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:20pm — 18 Comments

बेग़ैरत (लघुकथा)

महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:

"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"

"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !

तो उधर से एक और आवाज़ आई:

"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"

द्रौपदी ने शर्म से… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 23 Comments

मुलजिम (लघुकथा)

मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:

"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"

दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,

"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"

"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा

"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से…

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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 7 Comments

OBO लाईव तरही मुशायरा-४ में पेश की गई ग़ज़लें

जनाब नवीन चतुर्वेदी जी



खारों के पास ही नाज़ुक गुलों का घर क्यूँ है|

मुद्दतों से वही मसला, वही उत्तर क्यूँ है|१|



पेट भरता चला आया युगों से जो सब का|

भाग्य में उस अभागे के, फकत ठोकर क्यूँ है|२|



सालहासाल जिसके वोट खींच रहे - संसद|

'थेगरों' से पटी उसकी शफ़क चद्दर क्यूँ है|३|



और कितनी बढ़ाएगा बता कीमत इसकी|

दृष्‍टि में तेरी, मेरे भाग की शक्कर क्यूँ है|४|



जो कि अल्लाह औ भगवान दोनो हैं इक ही|

फिर जमीँ पे कहीं… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 8, 2010 at 10:30am — 1 Comment

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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