For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृजेश नीरज's Blog – September 2013 Archive (12)

दोहे/ प्रेम

प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!

देह-पिपासा जब जगी, गए देह में खोय!

 

मीरा का भी प्रेम था, गिरधर में मन-प्राण!

राधा भी थी खो गयी, सुन मुरली की तान!!

 

राम चले वनवास को, सीता भी थीं साथ!…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 11:13pm — 26 Comments

भोर लो आ गयी

थाल किरणों का सजाकर

भोर देखो आ गयी

रात भी थक-हारकर

फिर जा क्षितिज पर सो गयी

 

चाँद का झूमर सजा

रात की अंगनाई में

और तारे झूमते थे

नभ की अमराई में

चाँदनी के नृत्य से

मदहोशियाँ सी छा गयी

तब हवा की थपकियों से

नींद सबको आ गयी

 

सूर्य के फिर आगमन की

जब मिली आहट ज़रा

जगमगाया आकाश सारा

खिल उठी ये धरा

छू लिया जो सूर्य ने

कुछ यूँ दिशा शरमा गयी

सुर्ख उसके गाल…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 29, 2013 at 6:30pm — 30 Comments

माँ! शब्द दो!

जन्मा-अजन्मा के भेद से परे

एक सत्य- माँ!

 

तुम ही तो हो

जिसने गढ़ी

ये देह, भाव, विचार,

शब्द!

 

रूप-अरूप-कुरूप में

झूलती देह

गल ही जाएगी

 

भाव, विचार

थिर ही जायेंगे

 

अभिव्यक्ति को तरसते

स्वप्न-चित्र

तिरोहित हो जायेंगे

 

फिर भी चाहना के

उथले-छिछले जल में

डूबते-उतराते

बहक ही जाते हैं  

उस राह पर

जिसके दोनों तरफ हैं…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:00pm — 26 Comments

मैं क्या हूँ

मैं क्या हूँ

बहुत सोचा

पर सुलझी न गुत्थी

 

शब्द से पूछा तो वह बोला,

‘मैं ध्वनि हूँ अदृश्य

रूप लेता हूँ

जब उकेरा जाता है

धरातल पर’

 

पेड़ से पूछा तो बोला

‘मैं हूँ बीज का विस्तार’

‘और बीज क्या है?’

‘वह है मेरा छोटा अंश’

 

अजब रहस्य

विस्तार का अंश

अंश का विस्तार

खुलती नहीं रहस्य की पर्तें

एक सतत क्रम-

सूक्ष्म के विस्तार

विस्तार के सूक्ष्म होने…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 11:00am — 42 Comments

प्राण भरे

इक हलचल सी चौखट पर

नयनों में हैं स्वप्न भरे

 

उड़ता-फिरता इक तिनका

पछुआ से संघर्ष रहा

पेड़ों की शाखाओं पर

बाजों का आतंक रहा

 

तितली के इन पंखों ने   

कई सुनहरे रंग भरे

 

दूर क्षितिज की पलकों पर

इक किरण कुम्हलाई सी

साँझ धरा पर उतरी है

आँचल को ढलकाई सी

 

गहन तिमिर की गागर में

ढेरों जुगनू आन भरे

 

इन शब्दों के चित्रों में

दर्द उभर ही आते हैं

जाने…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 18, 2013 at 10:30pm — 22 Comments

भाषा-१

भाषा 

भाषा अभिव्यक्ति का ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों और भावों को प्रकट करता है और दूसरों के विचार और भाव जान सकता है।

संसार में अनेक भाषाएँ हैं, जैसे- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि।

भाषा दो रूपों में प्रयुक्त होती है- मौखिक और लिखित। परस्पर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 2:30pm — 15 Comments

आस सजायी

हमने घर की दीवारों में    

जीवन की इक आस सजायी

 

रत्ती-रत्ती सुबह बटोरी

टुकड़ा-टुकड़ा साँझ संजोई

इस चुभती तिमिर कौंध में

दीपों की बारात सजायी

 

तिनका-तिनका भाव बटोरे 

टूटे-फूटे सपन संजोये

साँसों की कठिन डगर पे

आशा ही दिन-रात सजायी  

 

भूख सहेजी, प्यास सहेजी 

सोती-जगती रात सहेजी 

यूँ चलते, गिरते-पड़ते 

कितनी टूटी बात सजायी

 

तेरे हाथों के स्पर्शों ने   

इन होठों…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:00pm — 30 Comments

कान्हा

एक पुरानी रचना को कुछ गेय बनाने का प्रयास किया है। देखें, कितना सफल रहा।

 

इन नयनों में आज प्रभू

आकर यूं तुम बस जाओ

जो कुछ भी देखूं मैं तो

एक तुम ही नजर आओ

 

धरती-नभ दूर क्षितिज में

ज्यों आलिंगन करते हैं

मैं नदिया बन जाऊं तो

तुम भी सागर बन जाओ

 

वह सूरत दिखती उसको

जैसी मन में सोच रही

सब तुमको ईश्वर समझें

मेरे प्रियतम बन जाओ

 

देर भई अब तो कान्हा

मत इतना तुम…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 10, 2013 at 7:30pm — 18 Comments

देख तिरंगा लहराता

देख तिरंगा लहराता

मन उठा, भ्रमर सा जागा है

 

पुलकित सूरज की किरनें

रंग तीन यह जो चमकें

इस मंद हवा की लहरों पर

मन झूम-झूमकर गाता है

 

सोंधी खुशबू माटी की

अलकें खिलतीं फूलों की

खेतों में लहराती फसलें

अब उमग-उमग मन जाता है

 

जीवन मेरा धन्य हुआ

भारत में जो जन्म हुआ

ये प्राण निछावर हैं इस पर

यह धरती अपनी माता है

.

बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Added by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 10:30pm — 32 Comments

हमारी हिन्दी

करें हम

मान अब इतना

सजा लें

माथ पर बिन्दी।

बहे फिर

लहर कुछ ऐसी

बढ़े इस

विश्व में हिन्दी।।

 

गंग सी

पुण्य यह धारा

यमुन सा

रंग हर गहरा

सुबह की

सुखद बेला सी

धरे है

रूप यह हिन्दी।।

 

मधुरता

शब्द आखर में

सरसता

भाव भाषण में

रसों की

धार छलके तो

करे मन

तृप्त यह हिन्दी।।

 

तोड़कर

बॅंध दासता के

सभी…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 10:30pm — 32 Comments

ठिठक गए

पाँव मेरे वहीं पर ठिठक से गए

जिस जगह तुम गए थे मुझे छोड़कर

मैं वहीं पर खड़ा ये ही देखा किया

कैसे जाता है कोई मुँह मोड़कर

 

कितने वादे किए थे तुमने मगर

इन कलियों को खिलना कहाँ था लिखा

इन शाखों पर चिड़िया चहकती नहीं

कब पेड़ों से पतझड़ हुआ था विदा

अब बहारें उधर से गुजरती नहीं

जो राहें तुम तन्हा गए छोड़कर

 

अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं

सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए

चाँदनी मेरी छत पर ठहरती…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 3:00pm — 25 Comments

हाथी

हाँफता काँपता सा

हाथी भागा जा रहा था

चीखता हुआ

‘वो निकाल लेना चाहते हैं

मेरे दाँत

सजाएँगे उन्हें

अपने दीवानखाने में

मूर्तियाँ बनाकर

जैसे पेड़ों को छीलकर

बना डालीं फाइलें

और प्रेमपत्र।‘

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Added by बृजेश नीरज on September 3, 2013 at 6:00pm — 28 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service