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Ravi Prabhakar's Blog – June 2014 Archive (5)

प्लस्टिक की श्रद्धा (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अरे ये क्या, प्लास्टिक का हार ?” काम से वापिस आए पति के थैले में से खाने का डिब्बा निकालते हुए उसने पूछा
“हां, मां-बाबू जी की फोटो पर रोज फूलों का हार चढ़ाने की बजाए ये हार पहना दो, मुरझाएगा भी नहीं और मैला होने पर धुल भी जाएगा।” उसने एक ही चारपाई पर फटे कंबल के सहारे ठंड से संघर्ष करते हुए अपने तीनों बच्चों की ओर देखकर कहा

Added by Ravi Prabhakar on June 27, 2014 at 3:40pm — 12 Comments

दंश (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“बहन ! आज मुझे काम से लौटने में देर हो जाएगी, तब तक तुम मुन्नी को अपने पास ही रखना।" उस विधवा ने हाथ जोड़ते हुए अपनी पड़ोसन से आग्रह किया।
“पर अब तो तेरा देवर भी गाँव से आया हुआ है, तो फिर.....।”
”इसीलिए तो तुम्हारे पास छोड़ रही हूँ."

Added by Ravi Prabhakar on June 24, 2014 at 1:00pm — 19 Comments

सूचना क्रांति (लघुकथा) रवि प्रभाकर

कुछ ही मिनट पहले विदेश में जन्मे अपने पौत्र की तस्वीरें इंटरनेट पर देख रहे दंपति को खुशी से झूमते देखकर  कोने में बैठा घर का नौकर भी अपने बेटे के कद काठ के बारे कयास लगा रहा था जिसे वह कुछ साल पहले गांव छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ गया था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Ravi Prabhakar on June 20, 2014 at 10:30am — 11 Comments

वफादारी (लघुकथा) रवि प्रभाकर

मालिक और महा प्रबंधक कंपनी में चल रही हड़ताल को लेकर कुछ गंभीर विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक कुछ आवारा कुत्ते बंगले के अंदर आ घुसे। साहिब का खूंखार पालतू कुत्ता बड़ी फुर्ती से उन आवारा कुत्तों पर झपटा और उन्हें दूर तक खदेड़ आया, तभी एक नौकर धीरे से मालिक के कान में आकर फुसफुसाया

“साहिब,  वो यूनीयन के दूसरी तरफ वाले लीडर आ गए है।”

मालिक के तनावग्रस्त चेहरे पर एकाएक कुटिल मुस्कुराहट आ गई, और उसने मांस का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने वफादार कुत्ते के आगे फैंक दिया…

Continue

Added by Ravi Prabhakar on June 14, 2014 at 11:59am — 14 Comments

कर्मजली (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अबे ओए,  क्या तू ही दीनू है?” अपने दलबल के साथ अचानक आ धमके थानेदार ने अपनी रौबीली आवाज में पूछा

”जी सरकार मैं ही दीनू हूँ ......”

“क्या यही वो लड़की है जिसके साथ आज जबरदस्ती हुई है?” कोने में सिसकती लड़की की तरफ देखकर थानेदार की आंखों में गुलाबी से डोरे तैरने लगे।

“जी सरकार..........”

“जी सरकार के बच्चे... शिकायत क्यों नहीं की थाने में आकर....”

“जी, वो मुखिया जी ने समझौता..... ”

”देखिए…

Continue

Added by Ravi Prabhakar on June 11, 2014 at 3:00pm — 16 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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