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Ravi Prabhakar's Blog – August 2014 Archive (5)

पुण्‍य (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

शहर के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाॅक्टर के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा ‘मुफ्त मैडीकल कैंप’ आयोजित किया गया। जहाँ मुफ्त चैकअप करवाने वालों का हजूम उमड़ आया था। डाॅक्टर साहिब व उनकी टीम को निस्वार्थ भाव से सैकड़ों मरीजों का चैकअप करते देख सभी उनकी मुक्त कंठ से सराहना कर रहे थे।



उसी…
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Added by Ravi Prabhakar on August 26, 2014 at 11:30am — 10 Comments

आज़ादी और दीवाने (लघुकथा)

बाजार से गुजरते हुए उसने एक बहेलिए के पास पिंजरे में कैद कुछ पंछी देखे। बहेलिए को पैसे देकर उसने पिंजरा खोल दिया। पिंजरा खुलते ही एक पंछी फुर्र से उड़ता आसमान की तरफ लपका। अनायास कुछ चीलें आई और उन्होनें उस पंछी को दबोच लिया। उड़ने के लिए तैयार बाकी पक्षी सहम कर पिंजरे में दुबक गए।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

एक बड़ा हादसा (लघुकथा)

फैक्ट्री में हुए एक भयानक हादसे में उसे अपनी दोनों टाँगे गंवानी पड़ गई, जबकि उसके तीन साथियों को जान से हाथ धोना पड़ा था.
"तुम्हें ठीक होनें में तो अभी बहुत समय लगेगा, जबकि एक महीने के बाद ही तुम्हारी रिटायरमेंट है। इसलिए मैनेजमेंट ने फैसला किया है कि तुम्हें एक महीना पहले ही रिटायर कर दिया जाए।”  उसका हाल चाल पूछने आए सहकर्मियों में से एक ने उसे सूचित किया

“चलो कोई बात नहीं यार, भगवान…
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Added by Ravi Prabhakar on August 12, 2014 at 6:00pm — 20 Comments

अंधे अंधा ठेलिया (लघुकथा) - रवि प्रभाकर

“अबे ये बकरी किसकी बंधी हुई है यहाँ ?”
“ज़मींदार साब, ये बदरू की बकरी है, खेत में घुस कर नुस्कान कर रई थी तो पकड़ लाये।“
“अच्छा किया, इन सालों को औकात भूल गई है अपनी।“
“सच कहा सरकार, ऊपर से सरकार ने इन लोगों का और भी दिमाग खराब कर रखा है।“
“तो चढायो आज हांडी पर इस ससुरी बकरिया को।“
“मगर सरकार बदरू तो जात का......”
“अबे मूरख आदमी, जात-पात तो इंसानों की होती है जानवरों की नहीं।”

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Ravi Prabhakar on August 6, 2014 at 11:00am — 13 Comments

अभागे (लघुकथा) - रवि प्रभाकर

प्रैस काफ्रेंस देर शाम तक चली। बाल श्रम उन्मूलन के तहत आजाद करवाये बाल श्रमिकों को पुलिस प्रेस के समक्ष लाई थी। फोटो खींचे गए, भाषण दिया गया और थानेदार साहिब का साक्षात्कार भी लिया गया। पत्रकार काफ्रेंस के बाद चाय नाश्ता कर अपने घर की ओर जा रहे थे तो सुबह से भूखे बैठे बाल श्रमिकों की ओर देखकर एक कांस्टेबल धीरे से थानेदार साहिब के कान में फुसफुसाया:

“साहिब! अब इन बच्चों का क्या करना हैे?”

”बड़े साहिब की बिटिया की शादी है अगले हफ्ते, कितना काम होगा वहाँ, छोड़ आयो वहीँ पे इन ससुरों…

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Added by Ravi Prabhakar on August 2, 2014 at 11:00am — 19 Comments

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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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