For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ashok Kumar Raktale's Blog (67)

श्रावणी हाइकू.

फिर लो आया

झीनी फुहारें लाया

सावन आया.

:

लो फूल खिले

कलियाँ भी…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments

आभास!

“हूँ, कुछ कहा”. “कुछ भी तो नहीं”.”मुझे लगा शायद तुम कुछ बोले”. अक्सर ऐसा होता है जब किसी से बात करने का मन हो किन्तु जुबान खामोश हो.एक आवाज कान में गूंजने का आभास होता है.खामोशी में भी ये आवाज कहाँ से आती है?  ये आभास कैसे होता है? कभी नहीं जान सका. कई बार घर में अकेले बैठे हों और बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है जब हम वहाँ जाकर देखते हैं तो पता चलता है वहाँ तो कोई भी नहीं है.

कई बार पलंग पर पड़े…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 7:30am — 11 Comments

मै वृक्ष हो गया.

पौधा था छोटा था

लगता था अब गया तब गया

कभी बारिश की बुँदे

सुहानी लगती थी

कभी लगता डूब गया डूब गया,

हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई,

नयी कोपलें बिखराई,

अब गगनचुम्बी वृक्षों को

छूने लगी टहनियां,

लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया,

मगर पुष्पों के खिलने तक

अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का,

फलों से लदते ही लगा

मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया,

मै भूल गया

वो छुटपन का अहसास

ना डर रहा कुछ खोने का

ना उत्साह और कुछ पाने का,

दे रहा हूँ आश्रय आने जाने…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on May 19, 2012 at 9:00am — 20 Comments

बचपन

याद तुम्हारी आते ही मन व्याकुल हो जाता है,
छूट गया वो साथ जो कभी नहीं फिर आता है.
 
कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,
कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान…
Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on May 7, 2012 at 6:00pm — 16 Comments

हाइकु

गुमनाम है

बड़ा बदनाम है

हाँ गुलाम है.

....................

रिश्ते नाते हैं

बड़ा ही रुलाते हैं.

टूट जाते हैं.

..................

वृक्ष रोते हैं

जनता हंसती है,

कैसी बस्ती है.

.......................

सुखा कंठ है,

मनवा उदास है,

कैसी प्यास है.

.......................

 तू ही जीत है

तुझसे ही प्रीत है,

तू ही मीत है.

.....................

 भ्रष्टाचार है,

ठोस जनाधार है,

 सरकार है.…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2012 at 6:30pm — 18 Comments

सपने

तम में अपनी तुणीर बाँध कर जब ये चलते हैं,

मेरे ह्रदय मन आँगन से रोज निकलते हैं,

एक बाण और कई लक्ष्य दें मन को छलते हैं,

मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,

सुप्त पड़ी काया में तो निशदिन खेल ये करते हैं,

श्वेतश्याम से आकर मन में रंग ये भरते हैं,

कई बार मुरझाये मन में यह उजियारा करते हैं,

और मानव के जगने तक नैनों में ठहरते हैं,

कभी पूर्णता पा जाएँ सोच कर मन में टहलते हैं,

मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,

छूकर मानव के मन…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on April 9, 2012 at 6:43am — 2 Comments

सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.

तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.

विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

                   

कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,

रक्त से बलिदान के सींचित इस…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on March 25, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service