22 22 22 22 22 2 ..
बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ.
ये मत पूछो कैसे कब इक़रार हुआ
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जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.
तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ
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वो शरमाएँ जैसे शरमाएँ…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on October 29, 2017 at 8:30am — 21 Comments
1222 1222 1222 1222
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वतन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .
अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ …
Added by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 12:30am — 29 Comments
221 2121 1221 212
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दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,
मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही
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ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर,
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
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तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,
होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं
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वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,
जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं
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ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,
मेरे, सुख़न का रंग…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:00pm — 14 Comments
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महब्बत की राहों में जाने से पहले.
ज़रा सोचिए दिल लगाने से पहले.
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बहारों का इक शामियाना बना दो.
ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.
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गिरेबान में झांक कर अपने देखो.
किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.
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ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.
ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.
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कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.
महब्बत की बस्ती जलाने से पहले.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 3:00pm — 17 Comments
Added by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 3:30pm — 13 Comments
Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 12:00pm — 30 Comments
221 2121 1221 212
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मेरे वतन में आते हैं सारे जहाँ से लोग.
रहते हैं इस ज़मीन पे अम्न-ओ-अमाँ से लोग.
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लगता है कुछ खुलुसो महब्बत मे है कमी.
क्यूं उठ के जा रहे हैं बता दरमियाँ से लोग.
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तेरा ख़ुलूस तेरी महब्बत को देखकर.
जुड्ते गये हैं आके तेरे कारवाँ से लोग.
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कैसा ये कह्र कैसी तबाही है ऐ खुदा.
बिछ्डे हुए हैं अपनो से अपने मकाँ से लोग.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 4, 2017 at 9:30am — 26 Comments
221 2121 1221 212
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नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे खुदी नहीं.
उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं.
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गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 2, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
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