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SALIM RAZA REWA's Blog (70)

मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा - सलीम रज़ा रीवा

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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा

भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा   

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जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले 

उन चराग़ों को हवाओ से बचाना…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 13, 2017 at 11:00am — 24 Comments

हरेक ज़ुल्म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं - सलीम रज़ा रीवा ( ग़ज़ल )

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    हरेक ज़ुल्‍म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं.

    जिन्हे है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं 

    -

    न…
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Added by SALIM RAZA REWA on November 12, 2017 at 10:00am — 28 Comments

नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के  साथ - सलीम रज़ा रीवा

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नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के  साथ.

रहते हैं ग़म हमेशा ही यारों खुशी के साथ

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नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ.

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

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माना कि लोग जीते हैं हर पल खुशी के साथ.

शामिल है जिंदगी में मगर ग़म सभी के साथ

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आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे.

कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी जिंदगी के साथ

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ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में.

यूँ ही नहीं है  प्यार हमें   शायरी के…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 3:30pm — 16 Comments

जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले - सलीम रज़ा रीवा

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जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले-

वैसे ही जिंदगी तुम्हें महकी हुई मिले  



ये है दुआ तुम्हारा मुकद्दर  बुलंद …

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Added by SALIM RAZA REWA on November 6, 2017 at 11:00am — 8 Comments

जिधर देखो उधर मेहनत कशों की - सलीम रज़ा रीवा

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जिधर देखो उधर मिहनत  कशों की ऐसी हालत है-

ग़रीबों  की  जमा अत पर अमीरों की क़यादत…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 9:30am — 15 Comments

बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ - सलीम रज़ा रीवा

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बातों ही बातों में उनसे प्यार  हुआ.

ये मत  पूछो  कैसे कब इक़रार हुआ

.      

जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.

तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ

.

वो शरमाएँ जैसे  शरमाएँ…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 29, 2017 at 8:30am — 21 Comments

सबसे बड़ी रदीफ़ में ग़ज़ल का प्रयास, सिर्फ रदीफ़ और क़ाफ़िया में पूरी ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा

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वतन की बात  करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .

अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ …

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Added by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 12:30am — 29 Comments

दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं - सलीम रज़ा रीवा : ग़ज़ल

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दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,

मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही

..

ये और बात है कि वो मिलते  नहीं मगर,

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

..

तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,

होता  जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

..

वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,

जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं

..

ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,

मेरे, सुख़न  का  रंग…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल : ज़रा  सोचिए दिल लगाने से पहले : SALIM RAZA REWA

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महब्बत  की राहों  में जाने से पहले.

ज़रा  सोचिए  दिल  लगाने से पहले.

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बहारों का इक शामियाना  बना  दो.

ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.

.

गिरेबान में  झांक  कर अपने देखो.

किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.

.

ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.

ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.

.

कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.

महब्बत  की  बस्ती  जलाने से पहले.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 3:00pm — 17 Comments

शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है : सलीम रज़ा रीवा ग़ज़ल

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शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है

मिल गए तुम जाम का क्या काम है

.. 

ये वज़ीफा़ मेरा सुब्ह-ओ-शाम है

मेरे लब पे सिर्फ तेरा नाम है

..

तू मिला मुझको सभी कुछ मिल गया

ये मुक़द्दर का बड़ा इनआम है



तुम हो सांसों में तुम्ही धड़कन में हो

ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है

..

हम किसी से दुश्मनी करते नहीं

दोस्ती तो प्यार  का  पैग़ाम है 

..

मेरा घर खुशिओं से है फूला फला 

मेरे रब का ये  बड़ा  इनआम… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 3:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल : उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा - सलीम रज़ा रीवा

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.....

जो बनकर के जीता है  इंसान सदा,

उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा

..

क्या अफसोस कि शाख़ से पत्ते टूटे हैं,

गुलशन में तो आते हैं तूफ़ान सदा

..

हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं,

माना  की बहकाता है शैतान सदा 

..

धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें,

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा

..

रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है,

जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा

..

भेद भाव से दूर "रज़ा" जो रहता है,

महफ़िल… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 12:00pm — 30 Comments

मेरे  वतन पे  आते हैं सारे जहाँ से लोग - सलीम रज़ा रीवा

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मेरे  वतन  में  आते  हैं  सारे  जहाँ  से लोग.

रहते हैं इस ज़मीन पे अम्न-ओ-अमाँ से लोग.

..

लगता है कुछ खुलुसो  महब्बत मे है कमी.

क्यूं उठ के जा रहे हैं बता दरमियाँ से लोग.

..

तेरा  ख़ुलूस  तेरी  महब्बत  को  देखकर.

जुड्ते  गये हैं आके  तेरे  कारवाँ  से लोग.

..

कैसा  ये  कह्र   कैसी   तबाही   है    खुदा.

बिछ्डे हुए हैं अपनो से अपने मकाँ से लोग.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 4, 2017 at 9:30am — 26 Comments

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं - सलीम रज़ा रीवा

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नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे खुदी नहीं.

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं.

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गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 2, 2017 at 7:30pm — 8 Comments

आएं न आएं वो लेकिन - सलीम रज़ा रीवा

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.........................................

आएं न आएं वो  लेकिन हम आस लगाए .बैठे हैं 

दिन ढलते ही शमए मुहब्बत घर में जलाए बैठे हैं 

..

आख़िर दिल की बात ज़ुबाँ तकआये तो कैसेआये 

अपनी  ख़ामोशी  में  वो  सब  राज़  छुपाये बैठे हैं 

..

हैरत है जो प्यार मुहब्बत से ना वाकिफ़ हैं यारो 

वह  इल्ज़ाम दग़ाबाज़ी का मुझ पे लगाए  बैठे हैं

..

कौन है अपना कौन…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 24, 2017 at 10:00am — 25 Comments

खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में - सलीम रज़ा रीवा

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खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में

उनकी  ही खुशबू है मेरी साँसों में

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दिल के हाथों था मजबूर बहुत वरना

आता कब  मैं  उनकी मीठी बातों में

.

उनको खो देने का भी अहसास हुआ

रंग-ए-हिना जब देखा उनके हाथों में

.

खो कर दुनिया आख़िर उनको पाया है

यूँ  ही  नहीं  है नाम मेरा अफसानों में

.

हर शय में उनका ही चेहरा दिखता है

उनके  ही  सपने  हैं मे री  आँखों …

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Added by SALIM RAZA REWA on September 21, 2017 at 8:30am — 7 Comments

जिसे ख़यालों में रखता हूँ - सलीम रज़ा रीवा



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जिसे ख़यालों में रखता हूँ शायरी की तरह.

मुझे वो जान से प्यारा है जिंदगी की तरह.

.

क़सम जो खाता था उल्फ़त में जीने मरने की.

वो सामने  से गुज़रता है अजनबी की तरह.

.

यूँ ही न बज़्म  से  तारीकियाँ  हुईं रुख़सत.

कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह.

.

खड़े हैं छत पे  हटा कर…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 9:30am — 22 Comments

ग़ज़ल - शर्मिन्दा कर रहा है कोई " सलीम रज़ा

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अपने हसीन रुख़ से हटा कर निक़ाब को,  

शर्मिन्दा  कर  रहा  है  कोई माहताब को 

.

कोई  गुनाहगार   या   परहेज़गार    हो,

रखता है रब सभी केअमल के हिसाब को 

.

उनकी निगाहे नाज़ ने मदहोश कर दिया,

मैं  ने  छुआ  नहीं है क़सम से शराब को 

.

दिल चाहता है उनको दुआ से नावाज़ दूँ,

जब देखता हूँ बाग में खिलते गुलाब को 

.

ये ज़िन्दगी तिलिस्म के जैसी है…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 13, 2017 at 8:00am — 17 Comments

ग़ज़ल - दिलबर तुम कब आओगे " सलीम रज़ा

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दिलबर तुम कब आओगे सबआस लगाए बैठे हैं "

देखो  फूलों  से  अपना  घर - बार सजाए बैठे हैं "

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हम तो उनके प्यार का दीपक दिल में जलाए बैठे हैं " 

जाने  क्यों  वो  हमको  अपने  दिल से भुलाए बैठे हैं "

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किसको ख़बर थी भूलेंगे वो बचपन की सब यादों को "

उनकी  चाहत आज तलक हम दिल में बसाए बैठे हैं "…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 8, 2017 at 10:00pm — 5 Comments

जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है: सलीम रज़ा रीवा

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जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है !

रोशनी बन के दिलो  जाँ मे समा जाता है !!



उस हसीं शोख़ का दीदार हुआ है जब से !

उसका ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!



मै मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको !

मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है !!



क्यूं भला मान लूँ ये इश्क़ नहीं है उसका !

छु्‍पके तन्हाई में  गीतों को मेरे गाता है !!



मैं तुझे चाँद कहूँ  फूल कहूँ या  खुश्बू !

तेरा ही चेहरा हरेक शै…

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Added by SALIM RAZA REWA on August 22, 2017 at 11:00pm — 21 Comments

ग़ज़ल - दर-दर फिरते लोगों को : सलीम रज़ा रीवा

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दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला :

बंजारों को  भी अपना घर  दे  मौला :



जोऔरों की खुशियों  में खुश होते  हैं :

उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला :



दूर गगन में उड़ना चाहूँ   चिड़ियों सा :

मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला :



ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी :

अम्नो अमां की यूं बारिश  कर  दे मौला :



भूके प्यासे मुफ़लिस और  यतीम हैं जो :

नज़्र-ए-इनायत उनपर भी कर दे मौला :



जो करते हैं खून…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 22, 2015 at 2:00pm — 10 Comments

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