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Dr. Vijai Shanker's Blog – August 2014 Archive (9)

क्षणिकाएँ -1--डा० विजय शंकर

क्षणिकाएँ

आकर्षित करती हैं , लुभाती हैं ,

क्षण भर को चौंका भी देतीं हैं ,

स्तब्ध भी कर देती हैं , बस .

फिर हम अपने - अपने

महाकाव्य में लौट आते हैं||



* * * * * * * * * * * * * * * * * *

हर व्यथा को हर कथा को

हर छोटी बड़ी बात को

साहित्य में छाप देने भर से

समस्याओं का अंत नहीं होता ,

समस्याओं से जूझना पड़ता है

उनकें हल यूँ नहीं मिलते

उन्हें ढूंढना पड़ता है ||



* * * * * * * * * * * * * * * * * *

सोहबत का असर होता… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 30, 2014 at 11:00am — 11 Comments

एक ऐसी सास -- डा० विजय शंकर

श्वसुर के निधन पर रात भर की यात्रा पूरी करके वह घर में घुसी ही थी कि एक बार फिर जोर से रोना शुरू हो गया . वह अपनी सास से लिपट के रोये जा रही थी और उन्हें सांत्वना भी देती जा रही थीं . रिश्तेदार दोनों को समझाने, चुप कराने में लगे थे . थोड़ी देर बाद सब आगे की व्यवस्था में लग गए पर उसके आंसू जैसे रुक ही नहीं रहे थे , रोते रोते बोली , " यह कल ही होना था , कल मेरा जन्मदिन था . अब मैं अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाऊँगीं " . सास अब तक कुछ संयत हो चुकी थीं , बड़े प्यार से बहू का सर सहलाते हुए बोलीं, " नहीं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2014 at 11:22pm — 10 Comments

प्रगति आत्मबल से होती है --डा० विजय शंकर

सड़क आने जाने के लिए है ,

आवागमन को गति देने के लिए है

गढ्ढे प्रक्रिया की नैसर्गिक देन हैं ,

गत्यावरोध गति नियंत्रण का विधान है ,

व्यवधान ही प्रगति का सही समाधान है ॥



इंटरनेट , विश्व व्यापी सम्पर्क सूत्र है ,

दुनिया को कंप्यूटर के माध्यम से

पल भर में जोड़ देता है , युग की देन है ,

हमारा संपर्क सूत्र प्रायः टूटा रहता है ,

क्यों , यही तो हमारे लिए शोध का विषय है ,

नेटवाला बताएगा, फोन लाइन चेक कराओ ,

फोन वाला कहेगा , नेट चेक कराओ… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2014 at 9:44am — 8 Comments

एक मैं ही तो गैर था -- डा० विजय शंकर

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने

कोई दुआएं दे के ले गया

कोई दबाव बना के ले गया

सब अपने ही थे ,कोई गैर नहीं था ||

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने

कोई आँखें झुका के ले गया

कोई आँखें दिखा के ले गया

सब अपने ही थे कोई गैर नहीं था ||

कोई हंस के मिलता था ,

कोई जल के मिलता था ,

कोई मिल के छलता था ,

कोई छल के मिलता था ,

सब अपने लिए मिलते थे ,

कोई मुझसे नहीं मिलता था ||

लोग , सच कुर्सी पसंद होते हैं

हर मिलने वाला मुझसे नहीं

कुर्सी से… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 23, 2014 at 10:16pm — 21 Comments

गिरने पे चोट नहीं लगती--डा० विजय शंकर

आजकल गिरने पे चोट नहीं लगती , तभी तो

लोग कहीं भी कितना भी गिरने को तैयार रहते हैं

चोट लगेगी भी कैसे , जब भी कोई गिरता है ,

कहीं भी गिरता है , पहले से वहां

काफी गिरे हुए लोग होते हैं ,

जो उसको गिरते ही हाथों हाथ ले लेते हैं ,

उसे चोट लगने ही नहीं देते हैं

उसके बाद तो और गिरने का डर भी नहीं रहता

गिरे को और क्या गिरने का डर होगा

बस गिरे रहिये , पड़े रहिये , रेंगते रहिये

ऊंचाई में, थोड़ा ऊपर जाने में

हमेशा गिरने का डर बना रहता है

कौन कब,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 20, 2014 at 11:17pm — 20 Comments

बचपन को बचपन ही रहने दो - डॉ o विजय शंकर

( चित्र काव्य पर एक अलग द्दृष्टि - चामत्कारिक कल्पनाओं से हट कर )



एक हाथ में राखी का भार

दूसरे में ध्वज बना तलवार ,

पैर पादुका नहीं ,वस्त्र नीवी नहीं

सामने कोई रास्ता दिखता नहीं ,

मंजिल कोई उसे बताता नहीं

उमंग छोड़ कुछ भी पास है नहीं ,

दूर कहाँ तक जाएगा यह अबोध

जल्दी ही लौट आएगा यह अबोध |

अर्द्धनग्न आधा पेट खायेगा सो जाएगा

दिन ढले रात ढलेगी नया सवेरा आएगा

वो उत्साहित फिर थोड़ी दौड़ लगाएगा

ऐसे ही उसका जीवन बढ़ता जाएगा |

सरसठ… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2014 at 11:23am — 12 Comments

नहीं बदले हम - डॉo विजय शंकर

समय सरसठ साल

कम नहीं कहलाता है

एक अबोथ शिशु

वयोवृद्ध हो जाता है |

बदले कोई तो दुनियाँ

जहान बदल जाए

न बदले तो जमीं क्या

पावदान न बदल पाये |

बहुत कुछ बदला , नहीं बदला ,

आदमी का आदमी के प्रति रुख

नहीं बदला आदमी का

आदमी के प्रति व्यवहार |

बदले हैं तो उपकरण ,

कपड़े और कीमतें ,

सत्ता के नायक और आका

सत्ता के गलियारों के लोग |

नहीं बदली हमारी दृष्टि ,

न ही हमारी सोच |

सरकार हम बन गए ,

सरकार हम दे न पाये… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 14, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

कोई तो मकसद होगा दुनियाँ में हमारा -डा० विजय शंकर

कोई तो मकसद होगा दुनियाँ में हमारा -डा० विजय शंकर



लोगों ने तेरी दुनियाँ को

क्या से क्या बना दिया

हम तुझे ही बनाते

और तराशते रह गए ॥



लोगों ने तेरी दुनियाँ को

गुल-गुलिस्तां बना दिया

हम जो फूल मिले वो भी

तुझे ही चढ़ाते रह गए ॥



तुमने हमें क्यों भेजा था

इस दुनियाँ जहाँन में

वो सब छोड़ हम तुझे

ही तलाशते रह गए ॥



कोई तो मकसद होगा

दुनियाँ में हमारा भी

हम उसको छोड़ तुझको ही

मकसद समझते रह गए… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2014 at 10:55am — 10 Comments

दर्द कुछ और नहीं --डा० विजय शंकर

पूछा किसी ने मुझसे

दर्द क्या है ,

कैसा है ये , इसका

एहसास कैसा है .



दर्द कुछ और नहीं

सिर्फ एक नाम तुम्हारा है

दर्द कुछ और नहीं

सिर्फ एहसास तुम्हारा है .



दर्द टूटने का नहीं है,

दर्द बिखर जाने का है

दर्द कुछ खोने का नहीं है ,

खुद के खो जाने का है .



दर्द उसे खोनेका नहीं

जो अपना था, खो गया .

बल्कि उसके खोने का है ,

जो अपना कभी था ही नहीं .



यूँ तो कुछ था नहीं

जो वो ले गया

एक उम्मीद… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2014 at 7:46pm — 10 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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