For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – October 2017 Archive (5)

गजल(बाअदब सब....)

2122 2122 212

बाअदब सब हाथ जोड़े हैं खड़े

झाड़ते तकरीर बिगड़े मनचले।1



मामला लंबा चलेगा,सोचकर

कातिलों ने साक्ष्य ही निपटा दिए।2



फिर गवाहों को यहाँ ढूँढा गया,

जो जहाँ जैसे मिले,कटते रहे।3



थे विचाराधीन जो भी कैद में

देखिए अब तो बरी वे हो चले।4



फिर सिसकती आत्मा,कहने लगी---

'कब तलक मैं यूँ रहूँगी मुँह सिए?'5



आँख का अंधा हकीकत तोलता

है गुमां निर्दोष को फाँसी न दे।6



दे चुका अपनी गवाही आदमी

उज्र लाशों… Continue

Added by Manan Kumar singh on October 20, 2017 at 6:59pm — 13 Comments

गजल(दीप जला...)

22 22 22 2
दीप जले, आभा निखरे
हर्षित हो जन- मन मचले।

नेह-निरूपित सुप्त मृदा
ज्योतित करती नेह पिए।

बिखरें किरणें,भेद कहाँ?
जलते हैं अनिमेष दिये।

कौन नियामित कर सकता?
ज्योति-कलश के कौन ठिये।

आज उझकती रश्मि रथी
किसने उसको पंख दिये?
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 19, 2017 at 12:11pm — 8 Comments

गजल(आग जलने...)

2122 2122 2122
आग जलने पर धुआँ होगा बखूबी
रोशनी की हो नहीं लेकिन मनाही।1

क्यूँ अँधेरा साथ चलता है दियों के
पीटते हैं ढ़ोल की जाती मुनादी।2

गुल खिलाते हैं अँधेरे रोशनी में
और मिलती खूब उनको वाहवाही।3

आ गए कुछ दूर इतना मान भी लें
लग रहा है,हो रही अब भी दिहाड़ी।4

बँट गये हम 'वाद' के 'अवसाद' में बस
और जूठन छानती भूखी 'बुलाकी'।5
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 16, 2017 at 9:07am — 10 Comments

गजल(इक गजल की शाम हो तुम...)

2122 2122
--------------------
इक गजल की शाम हो तुम
धड़कनें गुमनाम हो तुम।1

ख्वाहिशों की संगिनी हो
नींद हो ,आराम हो तुम।2

ढूँढ़ता तब से रहा मैं
ख्वाहिशे-आवाम हो तुम।3

घोल दे जो कान में रस
वह सहज-सा नाम हो तुम।4

राधिका हो तुम किशन की
बीन मेरी,'साम' हो तुम।5

टूटता है जब मनोरथ
उस घड़ी में काम हो तुम।6

भागता फिरता बटोही
बस सुफल इक धाम हो तुम।7
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 10, 2017 at 7:30pm — 6 Comments

गजल(रेत कण से...)

2122 2122 2122 2

रेत- कण से इक घरौंदा मैं बनाता हूँ

अनछुए सब ख्वाब फिर उसमें सजाता हूँ।1



कोशिशें कितनी हुई हैं चाँद पाने की

हर दफा बिखरा पसीने में नहाता हूँ।2



हर लहर आभार कहकर लौट जाती है

प्यास का मारा हुआ मैं तिलमिलाता हूँ।3



बादलों की बदगुमानी का रहा कायल

बूँद पड़ जाये जरा नजरें गड़ाता हूँ।4



कह गयी बदली हवा अब रुत बदलनी है

मैं लुटा गठरी,हमेशा ही लजाता हूँ।5



सच कहा जाता नहीं, सब लोग कहते हैं,

आँच अंतर की… Continue

Added by Manan Kumar singh on October 3, 2017 at 8:56am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
36 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service