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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog – February 2015 Archive (6)

सवैये में होली

मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु )  कुल वर्ण 22

 

चेतन-जंगम के उर में  अविराम  सुधा सरसावत है

रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल  पीर बढ़ावत है

बालक वृद्ध युवा सबके  यह अंतस हूक जगावत है

पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है

 

सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु )   कुल वर्ण 23

 

मरोर उठी  वपु में  जब से यह लक्षण  भेद बताय गयी

सयान सबै  सनकारि उठे तब भावज भी  समुझाय गयी

हुयी अब  बावरि  वात अनंग अनीक अली नियराय गयी

मथै…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 1:00pm — 27 Comments

नए कल्प में सागर मंथन

फिर हुआ सागर-मंथन

नए कल्प में

इस बार रत्न निकले तेरह   

देवता व्यग्र ! विष्णु हैरान !

कहाँ गया अमृत-घट ?

 

समुद्र ने कहा

अब वह जल कहाँ

जिसमे होता था अमृत

जिसे मेरी गोद में

डालती थी गंगा

जिससे भरता था घट

 

अब तो शिव ने भी

दो टूक कह दिया है 

नहीं…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 5:00pm — 6 Comments

ग्रहण

सुना सहसा उसने

और दिल बैठ गया

तड़प रहे अंतस में  

नया डर पैठ गया

 

तकिये पर सिर छिपा

विवश वह लेट गया

आंसुओं की परतें अनगिन

दर्द में समेट गया

 

अगले रविवार फिर  

वही मंजर आयेगा

मौन-प्रेम सिसकेगा

तडपकर मर जाएगा

 

एक कन्या बेमन से अनचाहा वर वरेगी

प्यार के शव पर ही मांग वह भरेगी

अभी उसके व्याह का…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 7:38pm — 24 Comments

टिकट (लघु कथा )

‘दो टिकट बछरावां के लिए’ –मैंने सौ का नोट देते हुए बस कंडक्टर से कहा I

‘टूटे दीजिये, मेरे पास चेंज नहीं है I’

‘कितने दूं ?’

‘बीस रुपये ‘

   मैंने उसे बीस रूपए दे दिये और पर्स सँभालने में व्यस्त हो गया I वह रुपये लेकर आगे बढ़ गया I

-'क्या कंडक्टर ने टिकट दिया ?'- सहसा मैंने पत्नी से पूछा i

‘नहीं तो ‘ उसने चौंक कर कहा I  तभी बगल की सीट पर बैठा एक अधेड़ बोल उठा –‘टिकट भूल जाइये साहेब , बछरावां के दो टिकट तीस रुपये के हुए उसने आपसे बीस ही तो लिए i दस का…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 21, 2015 at 8:39pm — 19 Comments

साक्षी

 दशाश्वमेध घाट पर

कुछ उत्तर आधुनिक भारतीय

कर रहे थे स्नान

शैम्पू और विदेशी साबुन के साथ

 

दूर –दूर तक फैलकर झाग

धो रहा था अमृत का मैल

गंगा ने उझक कर देखा

फिर झुका लिया अपना माथ

 

साक्षी तो तुम भी हो

काशी विश्वनाथ !

 

(मौलिक व्  अप्रकाशित )

 

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 4:16pm — 24 Comments

चांदनी और छाँव

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

तस्करों का हरा-हरा गाँव

जालिमो में कुछ अधेड़

कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़

 

कुछ घर थे गरीबों के भी

दांतों के बीच जीभों के भी

सचमुच बदनसीबों के भी   

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

सन्नाटे में डरा-डरा गाँव

एक गरीब बुढ़िया के द्वार

तेजी से आया इक घुड़सवार

 

बुढिया की बेटी को…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 10:54am — 14 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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