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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog – April 2017 Archive (2)

गजल

221   221   212

वह दौर था जो गुजर गया

था इक नशा जो उतर गया

 

देखा था उसने फरेब से

दिल आशिकाना सिहर गया

 

मुफलिस समझ के जनाब वो 

पहचानने से मुकर गया

 

जिस पर भरोसा किया बहुत

वह यार जाने किधर गया

 

जब साथ था तो कमाल था

अब जिन्दगी का हुनर गया

 

इक ठेस ही थी लगी मुझे  

मैं कांच सा था बिखर गया

 

जिस नाग ने था डसा मुझे

मैंने सुना है कि मर…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 7, 2017 at 9:19pm — 10 Comments

शाहजहाँ नहीं था वह

दुनिया का सबसे अद्भुत

पति पत्नी के बीच अमर प्रेम का स्मारक

विश्व के तथाकथित आश्चर्यों में से एक

जहा दफ़न है दो आत्माएं

जिसे बनवाया था

मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ ने 

अपने बेमिसाल पत्नी प्रेम के आडम्बर में

या फिर अपने वैभव की झूठी शान में

जो उसके बेटे ने ही ख़त्म की   

उन्हें कैद में डालकर

 

ताजमहल

जिसे खुद शाहजहाँ ने नहीं बनाया

उसे गढा था

उस युग के बेमिसाल वास्तुकारों ने

स्तब्ध किया था दुनिया…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2017 at 8:54pm — 5 Comments

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