For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (801)

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं

प्रेम धरा है प्रेम गगन है

प्रेम मिलन है प्रेम विरह है

श्वास श्वास का प्रेम बंधन है

प्रेम ईश है प्रेम है पूजा

स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है

पावन गंगा सा प्रेम समेटे

लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है

मौन अधरों में गुन गुन करता

प्रेम में डूबा प्रेम कम्पन है

आत्मसात का भाव समेटे

प्रेम हकीकत प्रेम स्वप्न है

प्रेम अलौकिक अपरिभाषित

हृदय नयन का प्रेम अंजन…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 23, 2015 at 7:30pm — 16 Comments

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

और किसने नीर बहाये //

क्योँ बसंत में आखिर …

पुष्प बगिया के मुरझाये //

प्रेम ऋतु में नयन देहरी पर …

क्योँ अश्रु कण मुस्काये //

विरह का वो निर्मम क्षण ….

धड़कन से बतियाये //

वायु वेग से वातायन के ….

पट क्योँ शोर मचाये //

छलिया छवि उस निर्मोही की …

तम के घूंघट से मुस्काये //

वो छुअन एकान्त की ….

देह विस्मृत न कर पाये //

तृषातुर अधरों से विरह की ….

तपिश सही न जाए…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 17, 2015 at 7:42pm — 26 Comments

मेरी पलकों को......

मेरी पलकों को......एक रचना 

मेरी पलकों को अपने ख़्वाबों की  वजह दे दो

अपनी साँसों में  मेरे जज़्बातों को जगह दे दो

जिसकी  नमी  तुम ये  दामन सजाये बैठी हो

उसके  रूठे  सवालों को जवाबों में जगह दे दो

बंद हुआ  चाहती हैं  अब थकी हुई पलकें मेरी

अपनी तन्हाई में रूहानी रातों  को जगह दे दो 



ये ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी तेरे हिज्र के सहारे 

इन हाथों में कुछ रूठे हुए वादों को जगह दे दो

कल का वादा न करो  कि अब न…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 12, 2015 at 8:00pm — 24 Comments

मैं अपनी मुहब्बत को …

मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना 



मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ

इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ



जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने

मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ



जिसकी मौजूदगी  में खामोशी भी बतियाती थी

अब्र की  चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ



बन के  हयात  वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए

उनकी  दहलीज़ पे  मैं  हर  आहट छोड़ आया हूँ



हिज्र का  दर्द  चश्मे  सागर में न सिमट पायेगा…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:02pm — 18 Comments

ऐ दिल ……

ऐ दिल ……



ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है

हर किसी के आगे क्यूँ  व्यर्थ में रोता है

कौन भला यहां  तेरा दर्द समझ पायेगा

हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है

ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है ……

ये सांझ नहीं अपितु सांझ का  आभास है

पल पल क्षरण होते रिश्तों  का आगाज़ है

भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है

पाषाणों में कहाँ  प्यार  का सृजन होता है

ऐ दिल  तू क्यूँ  व्यर्थ  में परेशान होता है…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 1, 2015 at 2:00pm — 12 Comments

मानव का मान करो ….

मानव का मान करो ….

सिर से नख तक

मैं कांप गया

ऐसा लगा जैसे

अश्रु जल से

मेरे दृग ही गीले नहीं हैं

बल्कि शरीर का रोआं रोआं

मेरे अंतर के कांपते अहसासों,

मेरी अनुभूतियों के दर पे

अपनी फरियाद से

दस्तक दे रहे थे

दस्तक एक अनहोनी की

एक नृशंस कृत्य की

एक रिश्ते की हत्या की

दस्तक उन चीखों की

जिन्हें अंधेरों ने

अपनी गहराई में

ममत्व देकर छुपा लिया

मैं असमर्थ था

अखबार का हर अक्षर

मेरी आँखों की नमी से

कांप रहा…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 28, 2015 at 3:03pm — 22 Comments

तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं…

तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं…

राही प्रेम पगडंडी पर

क्योँ तूने कदम बढाये हैं

हर कदम पर देते धोखे

छलिया हुस्न के साये हैं

तेरे निश्छल भाव को समझें

किसके पास ये फुर्सत है

पल भर में ये अपने हैं

अगले ही पल पराये हैं

व्यर्थ है बादल भटकन तेरी

प्रेम विहीन ये मरुस्थल है

तुझे पुकारें तुझसे लिपटें

कहाँ वो व्याकुल बाहें हैं

हर और लगा बाजार यहाँ

हर और मुस्कानों के मेले हैं

छद्म वेश में करती घायल

बे-बाण यहाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 24, 2015 at 12:30pm — 20 Comments

प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो ....

प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो ....

तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो

प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो

नयन आँगन का तुम मधुमास हो

रक्ताभ अधरों की तुम ही प्यास हो

तुम ही सुधि हो मेरे मधु क्षणों की

मेरे एकांत का तुम ही अवसाद हो

नयन पनघट का  मिलन  पंथ हो

तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो

प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो



इस  जीवन  की  तुम  हो परिभाषा

मिलन- ऋतु  की  तुम  अभिलाषा

भ्रमर  आसक्ति  का  मधु  पुष्प हो…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 23, 2015 at 1:06pm — 19 Comments

सांस है मुसाफिर......(एक रचना )

सांस है मुसाफिर.......(एक रचना )

सांस है मुसाफिर इसको  राह में ठहर जाना है

जिस्म के  पैराहन को  जल के बिखर जाना है

दुनिया को मयखाना  समझ नशे में ज़िंदा रहे

होश आया तो समझे कि ख़ुदा  के घर जाना है

याद किसकी सो  गयी  बन के अश्क आँख में

धड़कनें समझी न ये  जिस्म  को मर जाना है

ज़िंदगी समझे जिसे  दरहक़ीक़त वो ख़्वाब थी

सहर होते ही जिसे बस रेत सा बिखर जाना है

कतरा-कतरा  प्यार  में जिस के हम मरते रहे …

Continue

Added by Sushil Sarna on January 22, 2015 at 3:30pm — 18 Comments

प्यार का समन्दर हो .....

प्यार का समन्दर हो .....

किसको लिखता

और क्या लिखता

भीड़ थी अपनों की

पर कहीं अपनापन न था

एक दूसरे को देखकर

बस मुस्कुरा भर देना

हाथों से हाथ मिला लेना ही

शायद अपनेपन की सीमा थी

खोखले रिश्ते

बस पल भर के लिए खिल जाते हैं

इन रिश्तों की दिल में

तड़प नहीं होती

यादों का बवण्डर नहीं होता

बस एक खालीपन होता है

न मिलने की चाह होती है

न बिछुड़ने का ग़म होता है

इसलिए ट्रेन छूटने के बाद

मैंने उसे देने के लिए

हाथ में…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 19, 2015 at 3:55pm — 17 Comments

ग़म मौत के .......(एक रचना )

ग़म मौत के ......(.एक रचना )

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं

चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं



इतने  अपनों  में  कोई  अपना नज़र नहीं आता

अब  तो  रिश्ते  स्वार्थ  की कड़वाहट में पलते हैं



दोस्ती  राहों  की  अब राह में ही दम तोड़ देती है

अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं



मिट  जाते  हैं  गीली  रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ

फिर  भी  क्यूँ  लोग  गीली रेत पे साथ चलते हैं



सच  को छुपा कर लोग…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 15, 2015 at 4:10pm — 10 Comments

युग्मों का गुलदस्ता …

युग्मों का गुलदस्ता …



एक  पाँव  पे  छाँव  है  तो  एक  पाँव  पे   धूप

वर्तमान  में  बदल  गया  है  हर रिश्ते का रूप



अब  मानव  के  रक्त  का  लाल  नहीं   है   रंग

मौत  को  सांसें  मिल  गयी  जीवन हारा  जंग



निश्छल प्रेम अभिव्यक्ति के बिखर गए हैं पुष्प

अब  गुलों  के  गुलशन  से  मौसम  भी  हैं रुष्ट



तिमिर  संग  प्रकाश  का  अब  हो गया  है मेल

शाश्वत  प्रेम अब बन गया है शह मात का खेल



नयन  तटों  पर  अश्रु  संग  काजल…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 9, 2015 at 12:30pm — 20 Comments

ये किसकी हया को .... (एक रचना)

ये किसकी हया को .... (एक रचना)

ये किसकी हया को  छूकर  आज बादे सबा आयी है

दिल की हसीन  वादियों में ये किसकी सदा आयी है

होने लगी है सिहरन क्यूँ अचानक से इस जिस्म में

किसकी पलक ने अल-सुबह ही आज ली अंगड़ाई है

छोड़ा था इक ख़तूत जो  कभी हमने उस दहलीज़ पे

छू के उसकी आग़ोश  को ये सुर्ख़ हवा आज आयी है

बिन पिये ही मयख़ानों से  क्यूँ रिन्द सब जाने लगे

किसने अपने  रुख़्सार  से  चिलमन आज हटायी है

हमारी  तरह  बेताबियाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 6, 2015 at 8:28pm — 10 Comments

नव वर्ष कहलायेगा.............

नव वर्ष कहलायेगा.......

ऐ भानु

तुम न जाने

कितनी सदियों को

अपने साथ लिए फिरते हो

सृजन और संहार को

अपने अंतःस्थल में समेटे

खामोशी से

न जाने किस लक्ष्य की प्राप्ति में

प्रतिदिन स्वयं की आहुति देते हो

आश्चर्य है

धरा के संताप हरने को

अपने सर पर ताप लिए फिरते हो

आदिकाल से

प्रतिदिन अपनी केंचुली बदलते हो

हर आज को काल के गर्भ में सुलाते हो

फिर नए कल के लिए

नए स्वप्न लिए भोर बन के आते हो…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 2, 2015 at 1:00pm — 14 Comments

साथ मेरे ज़िंदगी की …

साथ मेरे ज़िंदगी की …(एक रचना )

साथ  मेरे ज़िंदगी  की रूठी किताब रख देना

जलते चरागों में  बुझे  वो  लम्हात रख देना

रात भर सोती रही शबनम जिस आगोश में

रूठी बहारों में वो सूखा  इक गुलाब रख देना

कहते कहते रह गए  जो थरथराते से ये लब

साथ मेरी  धड़कनों  के वो जज़्बात रख देना

आज तक न दे सके जवाब जिन सवालों का

साथ मेरे  वो सिसकते कुछ जवाब रख देना

मिट गयी थी दूरियां  भीगी हुई जिस रात में

एक मुट्ठी…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 1, 2015 at 1:22pm — 18 Comments

करके घायल .....

करके घायल ......

करके घायल नयन बाण से 

मंद-मंद मुस्काते हो
दिल को देकर घाव प्यार के
क्योँ ओझल हो जाते हो
प्यार जताने कभी स्वप्न में
दबे पाँव आ जाते हो
कुछ न कहते अधरों से
बस नयनों से बतियाते हो
क्षण भर के आलिंगन को
तुम बरस कई लगाते हो
फिर आना का वादा करके
विछोह वेदना दे जाते हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 29, 2014 at 3:26pm — 14 Comments

ये शज़र आज भी......

अपने  वज़ूद  की  ख़बर   इस तरह  हम  देते हैं

मुट्ठी  में  रेत उठाकर  हम  हवा  में उड़ा देते हैं



क्या हुआ जो  इस  उम्र में  हम बे-समर हो गए

ये शज़र आज भी  गुज़री  बहारों  की हवा देते हैं



अब हंसी भी  लबों पे  पैबंद  सी  नज़र  आती हैं

जाने लोग आँखों में कैसे नमी को  छुपा  लेते हैं



रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी

हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं



जागते  रहे  तमाम  शब्  हम  उसके इंतज़ार में

बार बार  चरागों…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 7:00pm — 16 Comments

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे

ख़ामोश थी खून की चीखें सभी

ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….

खूनी चेहरों के मंजर ने

हर धर्म का फर्क मिटा डाला

क्या अपना और बेगाना क्या

हर दुःख को अपना बना डाला

हर चेहरे पे इक दहशत थी

और सपनें सहमे सारे थे

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….

बिखरे चूडी के टुकडों…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 12:02pm — 12 Comments

मौसम भी नीर बहायेगा ………….

मौसम भी नीर बहायेगा …



भोर होते ही

चिड़ियों का कलरव

इक पीर जगा जाएगा

सांझ होते ही सूनेपन से

हृदय पिघल जाएगा

मुक्त- केशिनी का संबोधन

इक छुअन की याद दिलायेगा

बिना पिया के राह का हर पग

अब बोझिल हो जाएगा

निष्ठुर पवन का वेग भला

कैसे दीप सह पायेगा

रैन बनी अब हमदम तुम बिन

चिरवियोग तड़पायेगा

जाने जीवन के पतझड़ में

मधुमास कब आयेगा

अश्रु बूंदों से तब तक दिल का

स्मृति आँगन गीला हो जाएगा

प्राण प्रिय तुम प्राण…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 15, 2014 at 11:23am — 14 Comments

आभास हो तुम ......

आभास हो  तुम  ........

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो

तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो

जिन मधु पलों को मौन भी तरसे

तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 

तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो .........

अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो

अभिलाष कलश  के  विरह नीर हो

जिस प्रकाश  को  तिमिर भी तरसे

तुम उस  जुगनू  का प्रकाश नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 

तुम रूठी…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service