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Satish mapatpuri's Blog (95)

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 5

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- पाँच (अंतिम )

भीड़ में खलबली मच गयी थी. जबरन उन दोनों को बाहर खींच निकालने की योजना बनने लगी.

नाजिमा सोच नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए, किस तरह अपने मेहमानों की रक्षा करनी चाहिए, भीड़ में से दो-चार युवक आगे बढ़ने लगे,इसी बीच बड़े मियां आंगन में आ पहुचें. उन्हें देखते ही जमात बांधकर आये लोग सकपका गये. बड़े मियां जैसे ही नाजिमा के पास आये,नाजिमा उनके सीने से लगकर फफक पड़ी.…

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Added by satish mapatpuri on August 26, 2011 at 3:25am — 1 Comment

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 4

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- चार

भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया.

किन्तु नाजिमा ने अपने अब्बा को ऐसा फटकारा कि उनकी बोलती बंद हो गयी . दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते , शायद आँखें भी होती हैं . ना जानें कैसे सुबह रुसुलपुर में यह बात आग की तरह फैल गयी कि रहीम मियां के घर में हिन्दू भाई-बहन को पनाह दिया गया है . फिर क्या था, कुछ लोग रहीम मियां के आंगन में आ धमके. उनमें से दो-चार ही रुसुलपुर…

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Added by satish mapatpuri on August 25, 2011 at 12:02am — 1 Comment

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 3

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- तीन

 

आँगन में आते ही युवक इस तरह उछल पड़ा मानों उसके पाँव तले विषधर आ गया हो

आँगन में बधना देखकर युवक के गले से हल्की चीख निकल पड़ी. वह भयभीत नजरों से नाजिमा की तरफ देखा.

"भाईजान, मुसलमानों के भय से छिपते-छिपाते आपने एक मुसलमान का ही दरवाजा खटखटा दिया है. किन्तु, आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है. गलियों में मजहब और जाति के नाम पर दंगे करने वाले दरअसल न…

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Added by satish mapatpuri on August 24, 2011 at 2:14am — 1 Comment

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक-२

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

करवट बदल कर नाजिमा ने सर तक कम्बल खींच लिया, तभी उसे लगा कि बाहर के दरवाज़े पर कोई दस्तक दे रहा है .................. एकबारगी उसका पूरा बदन…

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Added by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 10:30pm — 1 Comment

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक १

 

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक -- एक

उफ़ ! बड़ी भयानक रात थी .................. हवा की सांय-सांय भी अन्दर तक हिला कर रख देती . दिन के उजालों में तो किसी तरह वक़्त सरक जाते.............. किन्तु, रात के अंधेरों में जैसे थम कर रह जाते हों. कुछ लोग किसी हादसा को हर साल याद दिला कर कटुता एवं नफ़रत को भड़काने से बाज नहीं आते. दिसंबर का महीना शुरू हो चुका था .......................... 6 दिसंबर की उस पुरानी…

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Added by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 2:30am — 1 Comment

मानसरोवर - 6

 

राष्ट्र के कर्णधार उठो , मानवता के पहरेदार उठो .

तुमको वतन पुकार रहा , तेरे पौरुष को ललकार रहा.

भारत माँ का उद्धार करो.

भ्रष्टाचार - संहार करो .

नृप ! बैठ तख़्त क्या सोच रहा ? अवमूल्यन में क्या खोज रहा ?

सत्ता की कुछ मर्यादा है , जनतंत्र से कुछ तेरा वादा है.

दृग मूंद लिए सब सपना है.

आँखे खोलो सब अपना है.

यह जग माया का है बाज़ार , जहाँ रिश्तों के कितने प्रकार .

कोई मातु - पिता कोई भाई है , कोई बेटी और जमाई है.

कोई…

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Added by satish mapatpuri on August 16, 2011 at 12:18am — 2 Comments

आज हिमालय ने हमको ललकारा है

प्यार-एकता की खुश्बू से महके चमन हमारा I



सारी दुनिया में सबसे आगे हो वतन हमारा I

कुर्बानी देकर पायी है आजादी की दौलत I

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो-छोड़ो बैर और नफ़रत I

 

देश के टुकड़े करने को, दुश्मन ने जाल पसारा है I

नींद से जागो, आज हिमालय ने हमको ललकारा है…

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Added by satish mapatpuri on August 15, 2011 at 2:00am — 6 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-3)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

अंक - तीन

विकास के पूछने पर अली ने कहा- 'एड्स के मामले में भला मैं क्या बोल सकता हूँ?...........सच पूछो तो गाँव में इसका रहना उचित भी नहीं है…

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Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 11:30pm — 2 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-२)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -१ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

  • अंक - दो

                   इंसान अगर जीने का मकसद खोज ले तो निराशा स्वत: दम तोड़ देगी. विकास को निराशा के गहरे अँधेरे कुंए में आशा की एक टिमटिमाती रोशनी नज़र आई,उसने मन ही मन सोचा -" क्यों न एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुनर्वास और उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में…

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Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:00am — 5 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-१)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक - एक

                                 अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते…

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Added by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 1:30am — 6 Comments

मानसरोवर - 5

दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.

दिखलाना कार्पण्य समय से पहले ही मरना है.

 

मंदिर के निर्माण हेतु चन्दा देना कोई दान नहीं.

हवन -कुण्ड में अन्न जलाना भी है कोई दान नहीं.

निज तर्पण के लिए विप्र को धन देना भी दान नहीं.

ईश्वर-पूजा की संज्ञा दे भोज कराना दान नहीं.

 

दान नहीं नाना प्रकार से मूर्ति -पूजन करना है.

दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.

 

करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.

जो पर…

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Added by satish mapatpuri on August 5, 2011 at 12:00am — 6 Comments

पावन सोमारी

सखी पावन सोमारी है सावन की .

बेल की पाती -कपूर की बाती.

बेला है थाली सजावन की.

सखी पावन सोमारी है सावन की .

 

सावन में शंकर को दूधो नहाओ.

रोरी और चन्दन का टीका लगाओ.

महीना है शम्भु मनावन की.

सखी पावन सोमारी है सावन की .

 

 …

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Added by satish mapatpuri on July 26, 2011 at 11:00pm — No Comments

मानसरोवर -- 4

(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.

OBO के सभी मित्रों से अनुरोध है कि इस अमानवीय घटना की कड़ी भर्त्सना करें.)
मानसरोवर -- 4

 

दहेज़ -तिलक का यह रिवाज़, मानवता में है एक…
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Added by satish mapatpuri on July 17, 2011 at 6:30pm — 2 Comments

मानसरोवर -३

 

इस दुनिया के निर्माता ने, सृष्टि के भाग्य विधाता ने.

मारुति-कृशानु के संगम से, भूमि -वारि और गगन से.

                 एक पुतला का निर्माण किया.

         मानव का नाम उचार दिया.

मांस -चर्म के इस तन में,नर -नारी के सुन्दर मन में.

एक समता का संचार किया, तन लाल रुधिर का धार दिया .

                  सबको समान दी सूर्य -सोम.

                सबको समान दी भूमि -ब्योम.

सबको चमड़े की काया दी. सबको  सृष्टि की छाया…

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Added by satish mapatpuri on July 11, 2011 at 12:30am — 9 Comments

मानसरोवर ----२

नियति का नीयत नियत होता, यह है कायर का कहना.



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



यदि मनुज चाहे तो उसका, भाग्य बदल सकता है.



पत्थर के सीने से भी, निर्मल जल बह सकता है.



महाशक्ति है पौरुषबल, जो बदल डालता ब्रम्ह्लेख.



अमित बार सुर काँप उठे, मानव का अनुपम तेज देख.



सर्व शक्तिमान है मानव, है उचित पराश्रित रहना ?



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



नियति गौण मानव -जीवन में, कर्म पक्ष की महता… Continue

Added by satish mapatpuri on June 21, 2011 at 2:00am — 1 Comment

मानसरोवर -- एक

ऊपर है नीला आसमान, नीचे विशाल वसुधा ललाम.
सर -सरिता और उत्स भूधर, फैले अरण्य अनुपम सुन्दर.


राकेश -रवि को जेल यहाँ.…
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Added by satish mapatpuri on June 13, 2011 at 2:00am — 9 Comments

ऐसे खेलो फाग

ऐसे खेलो फाग, राग -रंग मन में जागे.
नफ़रत रंग से यूँ धुल जाए, बस अपनापन लागे.
बस अपनापन लागे,यही होली का रंग है.
इसे खेलने का सबका,पर अपना -अपना ढंग है.
कोई दूर से भर पिचकारी,गोरा अंग भिंगाये.
कोई गोरे गाल पे मल-मल,लाल गुलाल लगाए.
दूर -दूर से देखके जिनको, थक गए थे ये  नैन.
वही खड़ी थी पास हमारे, होली की थी रैन.
होली की थी रैन, फ़ायदा झट से उठाया.
उनके रुखसारों पे, धीरे -धीरे रंग…
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Added by satish mapatpuri on March 19, 2011 at 2:46pm — 5 Comments

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