For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – January 2016 Archive (8)

पोजीटिव टाइम (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

खिड़की से झांकते हुए बाहर का दृश्य आज पति-पत्नी दोनों को कुछ संतुष्टि दे रहा था। आज दोनों बच्चे स्वेच्छा से कुछ कर पा रहे थे।



" देखो, हम दोनों टीचर होते हुए भी बच्चों को कभी सकारात्मक समय नहीं देते ! उनको प्रकृति के समीप रहने दो, डांटना- फटकारना नहीं!"



"हां, सही कह रहे हैं आप! आज यहाँ पर उन्हें जानने दो कि कैसे पानी सींचते हैं? कैसे पलाश , गेंदे के फूल खिलकर यूँ झर जाते हैं! सूखे पत्तों का क्या हश्र होता है!"



"बांस कैसे पैदा होता है, ताड़ का पेड़ क्या होता है,… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 30, 2016 at 2:23pm — 5 Comments

रंग बदलती दुनिया (लघुकथा) ['रंग' संदर्भित- 2] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

जितने मुँह उतनी बातें । ख़ुशख़बरी सुनकर जिन लोगों ने असीम बधाइयां और शुभकामनाएँ व्यक्त कीं थीं, अब उनकी अभिव्यक्तियां रंग बदलने लगी थीं।



कुछ ईर्ष्या के, तो कुछ शंकाओं के, और कुछ हीन भावनाओं के , तो कुछ भविष्य की योजनाओं या 'जुगाड़' जैसे लोभ के रंगों से रंगे बोल सुनायी दे रहे थे। जिन्होंने मीठा मुँह कराया था, अब वे कुछ मीठे सपने देखने लगे थे।



मामला यह था कि एक मामूली रिक्शे वाले की चौथी संतान, इकलौता बेटा आइ. ए. एस. अफ़सर बन गया था।

वह माँ-बाप, बहिनों, दोस्तों,… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 29, 2016 at 7:25pm — 2 Comments

अक्षम्य कर्म (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"अक्षम्य कर्म"- (लघुकथा)



पड़ोसन के लिए बहुत ही जिज्ञासा का विषय था कि सामने वाले मकान से कल की तरह आज रात को भी ज़ोर से रोने की आवाज़ें क्यों आ रहीं थीं। खिड़की से झांक कर देखा तो पाया खन्ना साहब की पत्नी प्रियंका ही रो रही थी।



साहस जुटाते हुए , उनके घर जाकर जब उसने प्रियंका से वज़ह पूछी तो मुश्किल से उसने कहा- "मेरे पिताजी ने मायके आने के लिए सख़्ती से मना कर दिया है! पति ने मुझसे किनारा कर लिया है। सास देवरानी के यहाँ चली गई हैं ! सब मुझे ही कोस रहे… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 25, 2016 at 9:31pm — 9 Comments

उल्टी गंगा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मम्मा, छोड़ो भी अब यह सब! देशभक्त सैनिकों की तस्वीरें दिखाने, उनकी दिलेरी के किस्से सुनाने और देशभक्ति गीत और भाषण सुनाने से भी मुझ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला!" -आदित्य ने ध्वज फहराते सैनिक पिता की तस्वीर एक तरफ रखकर अपनी माँ से कहा।



"तो तुम अपने पापा और दादा जी के सपने पूरे नहीं करोगे?"



"नहीं, मुझे नहीं रही कोई रुचि सैनिक जीवन में! क्या मिला है मुझे? न दादा जी का प्यार, न पापा का और न ही बड़े भाई का? सैनिकों की शहादत और सम्मानों से उनके परिजनों को प्यार नहीं, सिर्फ कुछ… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 23, 2016 at 12:29pm — 7 Comments

चाय के बोलते कप (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

मोर्निंग-वॉक से लौटते वक़्त आज ख़ान साहब मुहल्ले के कुछ घरों की खिड़की पर रखे चाय के कपों की कुछ दिलचस्प फोटो लेकर घर लौटे ही थे कि अपने घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर छज्जे पर भी चाय के दो कपों को देख कर चौंक गये। ये वाले कप पिछले महीने ही तो मेले से ख़रीद कर लाये थे। बड़ी हैरानी से बेगम साहिबा से उन्होंने पूछा- "क्यों जी, ये क्या माज़रा है, दो कप वहां क्यों रखे हुए हैं?"



"अरे, वो मालती बाई आती है न, अपने मुहल्ले की साफ.-सफ़ाई करने वाली, उसको चाय पिलाने के लिए! कभी-कभी उसके आदमी को भी!… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2016 at 7:45am — 13 Comments

सात सहेलियां, सात रंग (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"बार-बार मुझसे एक ही सवाल मत पूछो। पहले सात सहेलियों की यह तस्वीर देखो, फिर बताता हूँ तुम्हें कि मैं कल से अपसेट सा क्यों हूँ?" - बेडरूम में जाते हुए योगेन्द्र ने अपनी पत्नी से कहा।

"ये तो छह-सात लड़कियाँ हैं माँ दुर्गा मुद्रा में नृत्य करती हुई!"- पत्नी ने आश्चर्य से कहा।

"हाँ, ये वे सात सहेलियां हैं जो एक साथ मिलकर मेरे ग्रुप के लिए मंचीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं!"

"तो इनका तुम्हारे मूड से क्या संबंध है?"

"सम्बंध है न.. इनमें से एक लड़की बलात्कार पीड़िता थी, दूसरी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 16, 2016 at 1:55pm — 2 Comments

स्टिअरिंग पर ज़िन्दगी (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

ज़िन्दगी कार के स्टिअरिंग से बोली - "भाई, तुम भी ग़ज़ब करते हो ! पल भर में इंसान के सफ़र को नया रुख़ दे देते हो , इस लोक से उस लोक पहुंचा देते हो !"

यह सुनकर मौत बोली - "इसमें उसका क्या क्या कसूर? इंसान की बुद्धि को 'स्टिअर' तो मैं करती हूँ! मनचाही दिशा में मोड़ देती हूँ इंसानी बुद्धि को अपनी 'स्टिअरिंग' से! जब अपने पर आती हूँ न, इंसान के सारे ज्ञान और अनुभव का घमंड चूर करके पल भर में इंसान पर 'बुद्धि' या 'मति' वाले सारे मुहावरे और लोकोक्तियां लागू कर देती हूँ! चाहे वह शादी में शामिल…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 5, 2016 at 7:00pm — 7 Comments

वजूद बनाम सरहदें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सुनो, मैं वक़्त पर ही और भी ज़्यादा पैसे भेज दिया करूँगा, तुम्हें नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है अब, अम्मी और अब्बूजान को ख़ुश रखने में ही हमारी और तुम्हारी ख़ुशी है , वरना....!"



सेल फोन पर सरहद से सरहदें फिर तय की जा रही थीं, तो ग़ुस्से में शबाना ने फोन बिस्तर पर फैंक दिया ! फिर वही बातें, मैं ज़ल्दी ही छुट्टी पर आऊँगा , ये मत करना, वो मत करना , यहाँ मत जाना, वहां मत जाना !! शबाना ने कभी सोचा न था कि पढ़ा लिखा सैनिक भी मज़हब के मामले में इतना कठोर व कट्टर हो सकता है ! काश वह भी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 5, 2016 at 2:32am — 13 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
11 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
19 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
17 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service