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१. फूँक रहा क्यों जिन्दगी, ऐ मूरख इंसान |
मर जाएगा सोच ले, छोड़ धुँए का पान ||

२. बीड़ी को दुश्मन समझ, दानव है सिगरेट |
इंसानों की जान से, भरते ये सब पेट ||

३. शुरू-शुरू में दें मजा, कर दें फिर मजबूर |
चले काम या ना चले, ये चाहिए जरूर ||

४. जला-जला के फेफड़ा, भरते जाते टार |
कर अंदर से खोखला, कर देते बेकार ||

५. रोगी बनता मुँह-गला, दिल होता बीमार |
कभी साँस अटके कभी, सिर को लगती मार ||

६. जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार ||

७. घिसट-घिसट के है मिला, ये जीवन अनमोल |
नहीं उड़ाने के लिए, आग-धुँए के मोल ||

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 11:05pm

गौरव जी

         नमस्कार,

 जला-जला के फेफड़ा, भरते जाते टार |
कर अंदर से खोखला, कर देते बेकार ||

बहुत सुन्दर और आवश्यक सन्देश देते दोहे के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

 

Comment by Albela Khatri on August 1, 2012 at 9:48pm

बढ़िया काम किया आपने.......अभिनन्दन !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 1, 2012 at 9:44pm

आदरणीया रेखा जी आपका हार्दिक आभार.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 1, 2012 at 9:43pm

वैचारिक समर्थन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीया प्राची जी........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 1, 2012 at 9:41pm

अलबेला भैया, सिगरेट-शराब ये सब ऐसी चीजें हैं जो धीरे-धीरे लोगों को खातीं हैं.......लोग समझते नहीं और इनका सेवन किये जाते हैं.....इसी प्रवृति के विरोध में मेरे ये दोहे हैं......प्रशंसा के लिए आभार.......

Comment by Rekha Joshi on August 1, 2012 at 8:32pm

जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार || बढ़िया सन्देश देती हुई रचना पर आपको हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 1, 2012 at 11:45am

इस सार्थक जिम्मेदाराना संदेशपरक दोहावली रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, कुमार गौरव जी.

Comment by Albela Khatri on August 1, 2012 at 11:23am

वाह कुमार गौरव जी
सार्थक दोहे............

६. जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार ||

७. घिसट-घिसट के है मिला, ये जीवन अनमोल |
नहीं उड़ाने के लिए, आग-धुँए के मोल ||

__बधाई

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