For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए

फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए

 

आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया

इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए

 

लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम

चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए

 

जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी

देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए                                    

 

जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई

इस पुराने घर में बस चुप्पी के जाले रह गये

 

अब डुबा दे या कि पहुंचा दे मुझे उस पार तू

हम तो सब कुछ भूलकर तेरे हवाले रह गए

 

उनसे बढ़कर इस जहाँ में है नहीं कोई धनी

अपने पुरखों की विरासत जो संभाले रह गए

 

 

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 23, 2014 at 5:49pm

आदरणीय राणा जी
ग़ज़ब का लिखा है आपने..जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है..
ये दो शेर तो बस..लाजवाब

भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए

फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए

जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी

देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए                                   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on February 16, 2012 at 10:21pm

आदरणीया

 rajesh kumari जी

 asha pandey ojha दीदी

और आदरणीय 

 arun kumar nigam जी और  N .B. Nazeel साहब दाद के लिए शुक्रिया|

सौरभ सर आपने गज़ल यहाँ पर देखी भी है और दिल खोलकर दाद भी दी थी

:-):-):-):-):-):-):-)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2012 at 10:15pm

कई-कई बार सुना है आपसे इस ग़ज़ल को. और भरपूर, दिल खोल कर हमने दाद दी है हर एक शे’र पर.  परन्तु,  आज इस ग़ज़ल को यहाँ देखा तो आश्चर्य हुआ कि मैं अबतक इस ग़ज़ल को यहाँ कैसे नहीं देख पाया था !. ..

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 16, 2012 at 6:17pm

जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई

इस पुराने घर में बस चुप्पी के जाले रह गये......वाह एक से बढ़कर एक शेर 

 

Comment by Nazeel on February 16, 2012 at 5:42pm

nice ...:-)

Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 5:16pm

उनसे बढ़कर इस जहाँ में है नहीं कोई धनी

अपने पुरखों की विरासत जो संभाले रह गए I am speechless  really 

  great


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 2, 2011 at 11:35pm

राणा जी , आपके सात शेरों में हमने इंद्र धनुष के सात रंग देखे,  क्रमवार रंग देखिए ;-

1) हालत  2) सियासत  3) हकीकत  4) मोहब्बत  5) रवायत  6) इनायत  और 7) विरासत


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on December 2, 2011 at 9:07am

आदरणीय,

Shyam Bihari Shyamal जी

वीनस केशरी जी

Saurabh Pandey जी

 Raj Batalviजी

 विवेक मिश्र जी

 Lata R.Ojha जी

  dilbag virk जी

और

mrs.kavita verma जी

आप सभी ने अपना अमूल्य समय निकाल कर उत्साहवर्धन किया इसलिए बहुत बहुत आभार|

Comment by Kavita Verma on December 1, 2011 at 6:56pm

bahut khoobsurat ..ek ek sher umda...

Comment by dilbag virk on December 1, 2011 at 3:39pm
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
14 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service