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ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी- पंकज मिश्रा की गजल

22 22 22 22 22 22 22 22

कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी
जब ताप चढ़ा ग़म का बेहद, तब धड़कन ने की मनमानी

चिंगारी पैदा होनी है, इस पत्थर से मत टकराओ
शोला ए इश्क़ ही भड़केगा, ग़र तूने बात नहीं मानी

वो सभी कथानक कल्पित हैं, जिनमें प्रियतम से मिलन हुआ
इस देवदास की प्यास अमिट, जो साथ घाट तक है जानी

ले जाना है तो ले जाओ, ये कुंडल कलम व ग़ज़ल कवच
इतिहास भला कैसे बदले, हर युग में कर्ण परम् दानी

इस दर पर लक्ष्मण का स्वागत, लेकिन वो चरण शरण आये
हे राम अवध में कहीं नहीं, पंडित रावण जैसा ज्ञानी

नज़रें नीची रख कर मिलना, इस ओर उठाना प्रतिबंधित
ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:26pm
आदरणीय आशुतोष सर मनन नाम लिख दिया है आपने मैं पंकज
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:26pm
आदरणीय भाई जी सादर प्रणाम आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत आभार
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:24pm
वैसे एक बात कहना चाहूँगा.. मतले को छोड़कर मक्ते तक पोरी ग़ज़ल में तुकांत आपने "आनी" रक्खा है। मैं समझ तो रहा हूँ की आप तुकांत "ई" लेकर चल रहे हैं किन्तु यदि मतले में भी तुकांत "आनी" हो जाय तो ग़ज़ल की सुंदरता और भी बढ़ जायेगी। कोशिश करके देखें सिर्फ मतले की तो बात है। जहाँ तक मैं समझता हूँ मतले के ऊला में ये परिवर्तन आसानी से हो सकता है जैसे-"कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने है कब जानी।" बस सानी में कुछ कोशिश करें। शेष सब शुभ शुभ
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:24pm
वैसे एक बात कहना चाहूँगा.. मतले को छोड़कर मक्ते तक पोरी ग़ज़ल में तुकांत आपने "आनी" रक्खा है। मैं समझ तो रहा हूँ की आप तुकांत "ई" लेकर चल रहे हैं किन्तु यदि मतले में भी तुकांत "आनी" हो जाय तो ग़ज़ल की सुंदरता और भी बढ़ जायेगी। कोशिश करके देखें सिर्फ मतले की तो बात है। जहाँ तक मैं समझता हूँ मतले के ऊला में ये परिवर्तन आसानी से हो सकता है जैसे-"कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी।" बस सानी में कुछ कोशिश करें। शेष सब शुभ शुभ
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:03pm
आदरणीय भाई पंकज जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है दिल से बधाई लीजिये।
Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:42pm
आदरणीय पंकज मिश्रा जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने ।शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:30pm
आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 12, 2017 at 2:43pm

आदरणीय मनन जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 2:41pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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