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"अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा"

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

अगर वो मुफ़लिसी को रौनक़-ए-बाज़ार कर देगा
कई महरुमियों को बर सर-ए-पैकार कर देगा

सभी ने कर लिया इक़रार, लेकिन जानता है वो
अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा

किताबों में लिखा है उसको जन्नत की बशारत है
वफ़ा की राह में क़ुर्बान जो घर बार कर देगा

मिलाएगा अगर हर बात में जो हाँ में हाँ उसकी
उसे नीलाम वो इक दिन सर-ए-बाज़ार कर देगा

हमारे इश्क़ का चर्चा अभी सरगोशियों तक है
जो बाक़ी काम है वो सुब्ह का अख़बार कर देगा

पुराने ज़ख़्म दिल के भर चुके,अब देख लेना वो
हमारे वास्ते पैदा नया आज़ार कर देगा

अगर आमाल की उसके मज़म्मत की नहीं हमने
हमारा साँस लेना भी "समर"दुश्वार कर देगा
----
महरूमी-ना उमीदी,मायूसी,नाकामी
बर सर-ए-पैकार-जंग के लिए तैयार
बशारत-ख़ुश ख़बरी
सर गोशियों-काना फूसी
आज़ार-दुख, तकलीफ़
आमाल-अमल का बहुवचन
मज़म्मत-निंदा

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by जयनित कुमार मेहता on November 4, 2017 at 8:56pm
सादर प्रणाम आदरणीय! बेहद उम्दा ग़ज़ल है। शत-शत नमन आपको।
Comment by Balram Dhakar on November 4, 2017 at 8:38pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने समर सर। बहुत बहुत बधाई।
सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 4, 2017 at 7:20pm

बहुत उम्दा आ० समर कबीर साहिब

Comment by Gajendra shrotriya on November 4, 2017 at 6:10pm
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार!बहुत अच्छे और अर्थपूर्ण अशआर हुए हैं। पूरी ग़ज़ल बहुत पसंद आई।हार्दिक बधाई आपको।
Comment by मनोज अहसास on November 4, 2017 at 12:47pm
सादर प्रणाम सर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल की हार्दिक बधाई
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 4, 2017 at 11:49am
मिलाएगा अगर हर बात में जो हाँ में हाँ उसकी
उसे नीलाम वो इक दिन सर-ए-बाज़ार कर देगा

हमारे इश्क़ का चर्चा अभी सरगोशियों तक है
जो बाक़ी काम है वो सुब्ह का अख़बार कर देगा

पुराने ज़ख़्म दिल के भर चुके,अब देख लेना वो
हमारे वास्ते पैदा नया आज़ार कर देगा

वाह आदरणीय समर सर, क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। आपकी हर रचना की तरह इस ग़ज़ल में भी ग़ज़ब की रवानी और सादगी है। सभी अशआर शानदार हुए और मक्ता बेहद पसँद आया
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 11:34am
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 11:33am
आपकी सहतयाबी की ख़बर पाकर सुकून मिला,अल्लाह अपनी अमान में रखे,आमीन ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2017 at 6:36am
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by नादिर ख़ान on November 3, 2017 at 11:19pm

अल्लाह का शुक्र है कल हॉस्पिटल से डिस्चार्ज भी हो गए और आज से ड्यूटी जाना भी शुरू कर दिया है ... 

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