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नज़्म (मेरे अब्बू) मरहूम के नाम

  1. किस क़दर तल्ख़ियां हैं दुनिया में

नीम रिश्तों में जेसे दर आया

हर तरफ़ तीरगी सी फेली है

रूह घायल है और सहमी है

अपका साथ अब न होने से 

ज़िन्दगी जैसे एक मक़तल है 

और मक़तल में मैं अकेला हूं

ज़िन्दगी की तवील राहों में

ख़ुद को बेआसरा सा पाता हूँ 

साथ एसे में राहबर भी नहीं 

दिल की मेहफ़िल में रोशनी भी नहीं 

रूह में कोई ताज़गी भी नहीं 

मैं हूँ बेआसरा सा सहरा में

ढ़ूंढ़ता हूं वही शफ़ीक़ नज़र

जानता हूँ कि तुम गए हो जहाँ

उस जगह से कभी न लौटोगे

दिल हक़ीक़त से आशना है मगर

फिर भी बैचेन मानता ही नहीं 

एक उम्मीद पाले बैठा है 

इन बयाबान ,आसमानों से

और माज़ी की इन चटानों से

ऐक आवाज़ फिर से उभरेगी

"मद भरी वौ सदाएँ अब्बु की"

"एक दिन तो ज़रूर आएँगी"

"एक दिन तो ज़रूर आएँगी"

मोलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Samar kabeer on October 5, 2018 at 5:48pm

ख़ुश रहो अज़ीज़म,ख़ूब तरक़्क़ी करो ।

Comment by vijay nikore on October 5, 2018 at 2:58pm

नज़्म बहुत ही खूबसूरत बनी है। आपको बधाई, जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब।

Comment by mirza javed baig on October 5, 2018 at 1:02am

जनाब ब्रजेश जी आदाब 

हौसला अफ़जा़ई का शुक्रिया 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 7:26pm

वाह बहुत ही उम्दा नज़्म हुई है आदरणीय...बधाई

Comment by mirza javed baig on October 4, 2018 at 7:11pm

जनाब अजय तिवारी जी आदाब ,

हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया 

Comment by Ajay Tiwari on October 4, 2018 at 5:01pm

आदरणीय जावेद साहब, बहुत अच्छी नज़्म हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by mirza javed baig on October 4, 2018 at 1:38pm

बहुत शुक्रिया मोहतरम आरिफ़ साहब ,

बेहतरीन दाद से नवाज़ने के लिए ममनुन ए करम हूँ

इमले की बारीकियों की तरफ़ मुतवज्जा कराने के लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Mohammed Arif on October 4, 2018 at 8:08am

आदरीय मिर्ज़ा जावेद जी आदाब,

  1.                             अपने वालिदे मोहतरम को समर्पित लाजवाब नज़्म । इस नज़्म में आपने सबकुछ बयाँ कर दिया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जैसे:- जेसे/जैसे , फेली/फैली ,ऐक/एक, हूं/हूँ आदि ।
Comment by mirza javed baig on October 3, 2018 at 11:04pm

जनाब लक्षमण धामी जी आदाब, 

दाद ओ तहसीन से नवाज़ने के लिए दिली शुक्रिया। 

Comment by mirza javed baig on October 3, 2018 at 11:02pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, 

आपकी दाद से हौसलों को परवाज़ मिली है। 

बहुत बहुत ॆॆशुक्रिया 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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