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क्षणिकाएं।

इतने बड़े जहां में,
क्यों तू ही नहीं छिप सका,
ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,
कि, हर नए ज़ख्म पर,
नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1

सुना-सुना सा लगता है,
वो सदा है उसके वास्ते,
जीया-जीया सा सच है,
वो खुद ही है खुद के वास्ते,
हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2

कहते थे,
भरोसा करके देखो।
किया, तो,
नज़ारा ही बदल गया।......... 3

अजीब हो दोस्त,
रिश्ते की परतें उधेड़ रहे हो,
पर ख़्याल रहे,
परत जो ज़िन्दगी ने बदली,
सह न पाओगे ।............. 4

मौलिक व अप्रकाशित।

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Comment

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Comment by Usha on November 27, 2019 at 8:09am

आदरणीय विजय शंकर सर। क्षणिकाओं को पसंद करने व उनपर सकारात्मक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आभार। सादर।

Comment by Usha on November 27, 2019 at 8:08am

आदरणीय सलीम रज़ा रेवा सर। मेरी रचना पर सकारात्मक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आभार। सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2019 at 11:45pm

आदरणीय सुश्री उषा जी , अच्छी क्षणिकाएं बनी है , जीवन के अनुभवों को सांकेतिक करती हुयी , बधाई , सादर।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 26, 2019 at 8:43pm

उषा जी ख़ूबसूरत कविता हुई है मुबारकबाद स्वविकारें।

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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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