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क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्‍हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

उजड़े उपवन के माली से
प्रस्‍तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

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Comment

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Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on September 27, 2012 at 10:04am

प्रिय आर.कुमार जी बहुत सुन्दर आपको दिल से बधाई.......!!!!

Comment by seema agrawal on September 26, 2012 at 6:59pm

दिल को छूती हुयी प्रस्तुति राजेश जी हार्दिक बधाई 
भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं....सुन्दर पक्तियां 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2012 at 5:49pm
जिस राग में तुझे सुख मिलता हो 
उसकी ही तू राज अपलाप 
दिनकर की दहाड़ में आवाज बुलंदी 
गुप्त की साकेत काव्य में है रसबंदी,
जो भावे उसीका तू अमृत पान कर 
भूलने की तू प्रियवर से बात न कर 
जो भी तुझे लगता हो सुखकर 
उसको ही तू गला लगा यादकर |

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Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 5:03pm

बहुत बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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