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लघुकथा : गिफ्ट (गणेश जी बागी)

साफ साफ बताओं, आख़िर बात क्या है ? जबसे तुम अपनी छोटी बहन की शादी से लौटी हो, तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा है और ढंग से बात भी नही कर रही हो, प्रकाश नें अपनी पत्नी नीतू से पूछा | 
"कुछ नही बस यूँ ही" 
"देखो 'बस यूँ ही' कहने से काम नही चलने वाला, तुम्हे मेरी कसम, सच सच बताओं हुआ क्या ?"

"प्रकाश आपने मेरी बहन की शादी मे जो अँगूठी गिफ्ट की थी न, वह किसी को पसंद नही आयी, भाभी और माँ ने आपका खूब मज़ाक उड़ाया, वो लोग कह रही थीं कि यह घटिया अँगूठी कहाँ से खरीदी है, एक तो बेहद हल्की है और डिजाइन भी देहाती टाइप, चेहरा लटकाए नीतू एक साथ बोल गयी | 

"हूउउउ तो यह बात है, अरे भाई तुम्हे तो पता ही है आजकल पैसे की दिक्कत चल रही है इसलिए अँगूठी खरीदी कहाँ, शादी में तुम्हारी माँ ने जो अँगूठी मुझे दी थी वो नई ही पड़ी थी उसी को साफ करवा कर गिफ्ट कर दिया था |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:17am

नायक के सादगीपूर्ण व्यक्तित्व को खूब उभारा है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:15am

हा हा हा .... गज़ब सर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 18, 2013 at 2:25pm

ऐसा नहीं है आदरणीय मेरा कहना है कि "लघु कथा में गिफ्ट से जुड़े भावनात्मक सम्बन्ध,महंगाई की मार और मार्मिक

दर्द की झलक बताने में सफल रही है | इसके लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री गणेशजी" आपकी लघु कथा पढ़ते समय मुझे

बचपन में जो बाते सुनता था उसका समारंण हो आया, जिसका जिक्र किया था | आपकी कथा तो मार्मिक होने के साथ ही  

संदेशात्मक भी है | इसके लिए पुनः हार्दिक बधाई  

Comment by DR SHRI KRISHAN NARANG on October 18, 2013 at 7:44am

Gnesh Baghi ji, aap ki laghu katha, "Gift" bahut achhi lagi. man ko chhoo gayee. Bahut dinon ke baad mein yeh shabad likh raha hun.  Bahut sateek aur zameen par likhi hai yeh katha. laga ke mere saath hi yeh ghatna ghati hai.  Aap ki kalam aise hi chalti rahe, prabhu yeh prarthana hai. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 11:13pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया शशि पुरवा जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 11:12pm

//पति की यह बात पत्नी का मूड और बिगाड़ गयी// 

//लघु कथा में गिफ्ट से जुड़े भावनात्मक सम्बन्ध,महंगाई की मार और मार्मिक दर्द//

आदरणीय लक्ष्मण लडिवाला जी, आपकी टिप्पणी से स्पष्ट है कि लघुकथा आपके आस पास भी नहीं पहुँच सकी है जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ , शायद यह लेखन की कमी है । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 11:09pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी सदैव आत्मबल प्रदान करती है, सादर आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 11:07pm

आदरणीय सौरभ भईया जी, आपकी टिप्पणी इस लघुकथा की सार्थकता है, बहुत बहुत आभार आदरणीय । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 9:25pm

तोहफा लेते हुए ही सारी डिजाइन, वज़न आदि की बातें मन में आयीं... देते हुए इस बारे में सोचा भी न गया 

तोहफों के लेन देन की परिपाटी का खोखला सतही स्वरुप और रिश्तों में व्याप्त घटिया मानसिकता को दर्शाती संदेशपरक सार्थक लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० गणेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 9:23pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जवाहर भाई साहब, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है । 

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