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आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन

आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन।

रात दिन मेरे ख़यालो-ख़्वाब में रहता है कौन॥

 

किसके आने से हुई गुलज़ार दिल की वादियाँ,

हर तरफ मंज़र बहारों का लिए बैठा है कौन॥

 

चेहरे पे चेहरा लगाए फिर रहा है आदमी,

है बहुत मुश्किल बताना सच्चा है झूठा है कौन॥

 

कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,

सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥

 

है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,

वरना वीराने चमन में बेसबब आता है कौन॥

 

मुश्किलों के दौर तो रहते हैं मौसम की तरह,

शर्त है इन मौसमों में देर तक टिकता है कौन॥

 

झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,

है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन॥

 

आ रहे होंगे इलेक्शन मुझको लगता है क़रीब,

वरना इतनी सादगी से आजकल मिलता है कौन॥

 

सब यहीं रह जाता है अच्छा बुरा ऐ दोस्तों,

ज़र ज़मीं जागीर लेकर साथ में जाता है कौन॥

 

नूर से किसके हैं रौशन चाँद तारे कहकशां,

रंगो बू गुलशन के फूलों में यहाँ भरता है कौन॥

 

उसको भी होगी जरूरत रौशनी की धूप की,

वरना इतनी देर तक “सूरज” को सह पाता है कौन॥

 

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:55pm

आदरणीय डॉ. बाली सर आपकी ग़ज़ल हमेशा ही बेहतरीन होती है, आपकी ये ग़ज़ल भी लाजवाब है, दिली मुबारक़बाद स्वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 2:12pm

आदरणीय सूर्य बाली सर वाह वा हरेक शेर हकीकत को बयां करता हूँ बेहद शानदार बन पड़ा है बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 1:11pm

आ0 सूर्य बाली जी बहुत सुंदर गजल हुई है हरदिक बधाई । 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 8, 2013 at 4:18pm

गिरिराज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया॥आपकी सलाह सर आंखो पर ॥मतला अब यूं हो गया है॥

दरमियाँ दिल के हमारे आजकल ठहरा है कौन।

रात दिन ख़्वाबों ख़यालों में भला रहता है कौन॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 8, 2013 at 12:55pm

dad ki ummeed to gopal sabko ha yahann

varna dard-e-lafz se khilwad kar pata ha kaun ?    Badhai ho.


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 8, 2013 at 11:27am

आदरणीय सूर्या बाली भाई , बहुत खूब सूरत , आजकी सच्चाई से भ्री पूरी गज़ल के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!

कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,

सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥

उसको भी होगी जरूरत रौशनी की धूप की,

वरना इतनी देर तक “सूरज” को सह पाता है कौन॥ ---  इन शेरों के लिये ढेरों दाद कुबूल करें !!!!

आदरणीय ---आशियाने दिल  मे शायद इजाफत का गलत प्रयोग हुआ है -- शायद - आशियाना - ए - दिल  होना चाहिये !!! गुणी जनो की राय ज़रूरी है !!!!!

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