For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नया बीज फिर अंकुरित होने वाला है

मैंने हिटलर को नहीं देखा

तुम्हें देखा है

तुम भी विस्तारवादी हो

अपनी सत्ता बचाए रखना चाहते हो

किसी भी कीमत पर

 

तुम बहुत अच्छे आदमी हो

नहीं, शायद थे

यह ‘है’ और ‘थे’ बहुत कष्ट देता है मुझे 

अक्सर समझ नहीं पाता

कब ‘है’, ‘थे’ में बदल दिया जाना चाहिए 

 

तुम अच्छे से कब कमतर हो गए

पता नहीं चला

 

एक दिन सुबह 

पेड़ से आम टूटकर नीचे गिरे थे

तुम्हें अच्छा नहीं लगा

पतझड़ में पत्तों का गिरना

तुम्हें नहीं सुहाता

बीजों का अंकुरण

किसी तने में नए कल्ले फूटना

तुम्हें नहीं भाता 

 

इस पूरी धरती को रौंदकर

तुम ऊसर बना देना चाहते हो

जिससे इस पर केवल तुम्हारे पद चिन्ह रहें 

 

तुम सोचते हो

तुम अलग हो/ अनोखे 

शायद कुछ अंग अधिक हैं तुम्हारे पास

कुछ किताबें ज्यादा बाँची हैं

अधिक है बुद्धि

अधिक पैनी है तुम्हारी सोच

कबीर से भी अधिक 

 

लेकिन देखो

तुम्हारी कनपटी के बाल

धीरे-धीरे सफ़ेद हो रहे हैं

 

बदलाव किसी का इंतज़ार नहीं करते

ज्वालामुखी से जब लावा फूटता है न

तो सब कुछ भस्म हो जाता है;

सुनामी सबको निगल जाती है

 

हिटलर का साम्राज्य नेस्तनाबूत हो गया

तुम भी बच न सकोगे

समुद्र में तेज़ लहरें उठने लगी हैं

ज्वालामुखी धधक रहा है

 

एक नया बीज फिर अंकुरित होने वाला है  

- बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1236

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2014 at 10:02pm

अच्छी कविता है बृजेश जी, बधाई स्वीकार कीजिए।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 6, 2014 at 10:01pm

प्रिय बृजेश जी, सरल शब्दों और प्रतीकों से पगी यह अतुकांत कविता एकदम से आकर्षित करती है, इस कुशल अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामना प्रेषित है ।  

Comment by बृजेश नीरज on July 6, 2014 at 9:12pm

भाई अरुण जी आपका हार्दिक आभार! मैं तो अब भी सोचता हूँ कि आपके जैसा कब लिख पाउँगा! अभी तक तो सफल नहीं हुआ!

Comment by बृजेश नीरज on July 6, 2014 at 9:10pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपका हार्दिक आभार! यह आपका मेरे प्रति स्नेह है और कुछ नहीं! 

Comment by Arun Sri on July 6, 2014 at 6:58pm

आपकी कविता पढते हुए लगता है कि कविताई बीहड़ वन प्रांतर में बस जाने का नाम नहीं है बल्कि उसे लगातार समतल बनाने का प्रयास करना है ! ये कविता भी वैसी ही है ! काश कि ये सहजता सहज प्राप्य होती !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 6, 2014 at 6:48pm

ब्रिजेश भाई

मैंने यूँ ही नहीं लिखा था  'एक समर्थ कवि के आने की आहट ' i यकीनन आप समर्थ कवि है और उसका एक प्रमाण आपकी यह कविता है i इसमें कही उलझाव  नहीं i ऐसे बिम्ब नहीं जिनके समझने में बुद्धि चकरा जाय i कथ्य पुर्णतः स्पष्ट है i क्या कसी हुयी रचना है i एक भी शब्द फिजूल नहीं i मै नत - मस्तक हूँ i सादर i  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service